गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

कविता - हमारा सोचना चन्द लमहों में फिज़ूल हो गया - प्रमोद ताम्बट

सोचा था,
रासायनिक युद्ध का यह परीक्षण
उन्हें बहुत महंगा पडे़गा
भोपाल, उठ खड़ा होगा और लडे़गा
हमारा सोचना चन्द लमहों में फिजूल हो गया
जब सारा शहर
मुआवजा और अन्तरिम राहत में खो गया।

सोचा था,
मेहनतकशों के साथ
साम्राज्यवाद का यह षड़यंत्र
उन्हें बहुत महंगा पड़ेगा
पूंजी का निरंकुश तंत्र अब सडे़गा
हमारा सोचना चंद लमहों में फिजूल हो गया
जब न्याय,
कानून और अदालत की चौखट पर सो गया।

सोचा था,
लाशों का यह व्यापार
उन्हें बहुत महंगा पडे़गा
देश, उनके आदमखोर मुंह पर तमाचा जडे़गा
हमारा सोचना चंद लमहों में फिजूल हो गया
जब दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र
साम्राज्यवाद की गोद में सो गया।

20 टिप्‍पणियां:

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  2. सोचा गया आज की दुनिया में पूरा हो जाए ..बड़ा मुश्किल है...बढ़िया कविता ..धन्यवाद

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  3. एक गंभीर विषय को लेकर भावपूर्ण कविता है. जब फैसले पूंजीवादी और भ्रष्ट अधिकारियों के हाथ में हों तो किसी के भी न्यायपूर्ण संभावित आशान्वित अधिकारों के विषय में सोचना फिजूल हो जाता है किंतु फिर भी मस्तिष्क के अचेतन में तो यह सोच समय समय पर झकझोरती ही रहेगी.
    एक सार्थक रचना है जिसके लिए आपको बधाई.

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  4. बेहतर..
    एक कील का हिलना भी, जंग लगना भी...
    उसका दिखना भी...

    ऐसी ही उम्मीदों का परचम खड़ा कर देता है...
    खासकर तब और...जब आंखों में ऐसे ही सपने भरे होते हैं...

    आभार !

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  5. प्रमोद जी बहुत गहरी बात कह गए आप सोचने का नहीं कुछ करने का विषय है . जितना बड़ा लोक तन्त्र उतनी ही विडम्बनाएँ.उतने ही गर्व से सीना उठाये नेता ,राजनेता मैं तो यहाँ तक कहूंगी कि हम पूरे साल किसी न किसी कि जन्म जयंती या शहीदी दिवस मन रहे होते हैं उसकी जगह अगर एक ही दिन सबको याद कर लें तो जितना भी पैसा इन इंतजाम में खर्चा होता है उसे जरुरत मंद लोगों पर खर्च करें तो तो शायद दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र सही मायने में लोक तंत्र कहा जा सके rachanaravindra.blogspot.com

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  6. भावनात्‍मक तीव्रता का कविताई आक्रोश बहुत उम्‍दा है. बधाई

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  7. मुझे आपकी कविता का मंतव्य तो ठीक लगा, लेकिन कविता की बुनावट बहुत ही सपाट है.

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  8. जब न्याय कानून और अदालत की चौखट पर सो गया .देश साम्राज्यबाद की गोद मे सो गया और मुआबजा के चक्कर मे युद्ध का परीक्षण भूल गया । बहुत उत्तम । सचाई भी और व्यंग्य भी

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  9. Hello tambath ji,
    Congrates for Ur poemes.
    I have read Ur poemes on Bpl gas treasidy. It'very appropriate & sensful now we can call U a poet & vyangkar. U should write again & again.
    Er Ashok

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  10. दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र

    साम्राज्यवाद की गोद में सो गया !!!!!

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  11. bhopal gas peedito ko aaj tak nyay nahio mil paaya hai ........aapke kavita achche se likhi..........shukria.........

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  12. "trasadi aur dukh ke kshanon mein bhi kavi ke man mein jo bhav uthate hain woh geet ban jaate hain aise geeton ki mala unhein pehna deni chahiye jo is trasadi ke jimmevar hote hue bhi apni jimmedari nahin nibhate."

    sheel nigam

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  13. bahut gahri bat kahi hai pramodji,gahra vayng,sateek chot.itana bada loktantra,utana hi majboor,bhrasht rajniti aur afsarshahi.sach hai sharm aati hai aise vakyon par.
    bahut khoob rachna

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  14. bahut sharmnaak faisla hai....aapkee kavita me nihit vyangy aapkee peeda ko swar de raha hai...iseeliye achchhe hai...

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  15. Apki is kavita ne logon ko kuchh to raht awashya
    di hai.Aap isi tarah apni kavita ke dwara awaaz uthayenge to awashya ek
    na ek din bahri satta ko bhi sunne ke liye badhya kr dege.

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  16. सोचा था,

    लाशों का यह व्यापार

    उन्हें बहुत महंगा पडे़गा

    देश, उनके आदमखोर मुंह पर तमाचा जडे़गा

    हमारा सोचना चंद लमहों में फिजूल हो गया

    जब दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र

    साम्राज्यवाद की गोद में सो गया।
    ....bahut samvedansheel rachna...

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