रविवार, 11 अप्रैल 2010

माया के नोटों की माला की माया

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट // 
बहन मायावती ने नोटों की माला क्या पहनी भाइयों के पेट में दर्द होने लगा। इस देश में यहीं दिक्कत है, बहनें कुछ करें तो भाइयों को हज़म ही नहीं होता। तैतीस प्रतिशत् आरक्षण के मुद्दे पर हम देश भर में भाइयों का हड़बोंग देख ही चुके हैं। भाइयों को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं है कि लोकतांत्रिक लूटमार के उनके अभियान में बहनें भी हिस्सेदार बनें।

यूँ देखा जाए तो गुप्त आदान-प्रदान के इस जमाने में बहन मायावती के इस पारदर्शितापूर्ण नोट्यार्पण कार्यक्रम की आलोचना करने का अधिकार किसी को नहीं है। आखिर ऐसा किया क्या है उन्होंने ! चोरी तो की नही है! ना ही डाका डाला है! लोग, दबे-छुपे इस चतुराई से नोट ले लेते हैं कि किसी को कानों-कान खबर नहीं होती। दाएँ हाथ को सूचना नही मिल पाती कि बाएँ हाथ ने भ्रष्टाचार कर कुछ ले लिया है। मगर बहन मायावती ने ऐसा कुछ नहीं किया। चमचों के सत्कार को दुर्लभ विनम्रता के साथ खुलेआम, सारी दुनिया के सामने स्वीकार किया है। उनकी किस्मत से उन्हें करोड़ों नोटों की लाटरी लग गई तो इसमें उनका क्या कुसूर। उन्होंने औरों की तरह चुपचाप इस कमाई को अन्दर कर रजाई-गद्दों, डबल बेडों में तो छुपा नहीं दिया! ना संडास-बाथरूम के फर्श के नीचे गाड़कर रखा। परवारे-परवारे स्विस बैंक में भी नहीं पहुँचाया। बल्कि कलात्मक रूप से माला में गुँथे हाथों के इस मैल को अपने कीमती गले में अर्पणवाया है। नोटों का युक्तिसंगत आदान-प्रदान भी हर किसी के बस की बात नहीं है, इस मामले में बहन मायावती को मानना ही पडे़गा। भेंट-पूजा का ऐसा सार्वजनिक कार्यक्रम भारतीय राजनीति के इतिहास में पहले कभी देखना नसीब नहीं हुआ।

मुझे लगता है कि बहनजी के गले की यह माला अब मील के पत्थर की तरह हमेशा उनके गले में पड़ी रहने वाली है और मासूम फूलों को दुष्टों के गले में पड़े रहने की मजबूरी से छुटकारा मिलने वाला है। माल्यार्पण की जगह अब नोट्यार्पण का नया चलन अस्तित्व में आ जाएगा। यही अब नेताओं का कद नापने का नया पैमाना हो चलेगा। किसके गले में पड़ी माला कितने-कितने के कितने नोटों की पाई गई, इससे तय होगा कि कौन ज़्यादा कद्दावर नेता है। जितने ज़्यादा नोट माला में, उतने बड़े कद का नेता। माया बहन का कद छोटा दिखाने के लिए उस ऐतिहासिक माला से दो-चार पेटी ज़्यादा की माला तुरंत अगर किसी नेता ने अपने गले में नहीं पड़वाई तो फिर बहनजी को निर्विवाद बड़ा नेता माने जाने से कोई नहीं रोक पाएगा। वे ऐसी ही बड़ी-बड़ी मालाएँ पहनकर अपनी आकांक्षा की कुर्सी की ओर लगातार बढ़ती चलीं जाएंगी, बाकी लोग मुँह ताकते रह जाएंगे।

फूलों की मालाओं का तो बुरा हश्र होने को है, उसकी तुलना जूतों की माला से होने लगेगी। जिस मात्रा और कोटि की बेइज्जती कोई नालायक जूतों की माला पहनकर महसूस करता है उसी मात्रा और कोटि की बेइज्जती अब फूलों की माला से उपजा करेगी। लोग विरोधियों को जूते मारने के लिए जानबूझकर सार्वजनिक रूप से फूलों की माला पहना जाएंगे।

नोटों की माला के लोकप्रिय होने से मान-सम्मान के सारे प्रतिमान ध्वस्त होते नज़र आएंगे। लोग शिकायतें करते मिला करेंगें, हम पाँच हज़ार की माला के पात्र थे, कम्बख्तों ने पाँच सौ एक की माला पहनाकर चलता कर दिया, घोर बेइज्जती हो गई। इधर दूसरों को नीचा दिखाने के लिए चूरन के नकली नोटों का चलन भी निश्चित रूप से बढे़गा। आजकल यह चूरन का नोट बाज़ार में मिलता है कि नहीं पता नहीं, परन्तु नेता लोग बाज़ार में उपलब्ध तमाम चूरन के नोट उठाकर उसे कौशलपूर्वक माला में गुँथवाकर एक दूसरे की टोपी उछालने का काम किया करेंगे। कुछ तो शुद्ध बदमाशी और ठगी पर उतर आऐंगे, रद्दी पेपर, कॉपी-किताब के रंगीन पन्नों की माला गुथवाकर उसी को गले में पड़वा लेगे और चमचों के माध्यम से अफवाह उड़वाऐंगे कि-नेताजी पर दस करोड़ की माला की चढ़ी, अब उन्हें राष्ट्रीय स्तर का नेता होने से कोई नहीं रोक सकता।

माया की नोटों की माला की माया और भी ना जाने क्या-क्या परिवर्तन लाने वाली है। हो सकता है फानी दुनिया से रुख़सत हो गए लोगों के ऊपर भी श्रद्धाजंलि स्वरूप लोग नोटों की माला ही अर्पण करने लगें, ताकि इस फानी दुनिया में उसकी औकात का खुलासा हो जाए।

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

क्रिकेट के भगवान का आविर्भाव

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
    बहुत सालों से हम भगवान की तलाश कर रहे थे, जो अब जाकर पूरी हो पाई है।  पिछले दिनों भगवान ने ग्वालियर के रूपसिंह स्टेडियम में डबल सेंचूरी ठोक कर अपने मौजूद होने का प्रमाण दे दिया।  सारा देश अपने भगवान की इस लीला से आल्हादित है।
    बड़ी समस्या थी, तैतीस करोड़ देवी-देवताओं में से किसी ने भी अपने जमाने में क्रिकेट नहीं खेला, पुराणों में ऐसा कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है कि किसी देवी-देवता ने बल्ला भी पकड़ा हो, ऐसे में क्रिकेट के भगवान का पद युगों-युगों से खाली पड़ा था। इस पद पर अब सचिन तेंदुलकर की पदस्थापना हो गई है। कुछ बड़े-बड़े अखबार, पत्र-पत्रिकाएँ अगर यह घोषणा नहीं करते तो हमें पता ही नहीं चलता कि भगवान अवतरित हो चुके हैं और उनकी पहचान मास्टर-ब्लास्टर के रूप में हो चुकी है। उन्होंने मुंबई के उपनगर बांद्रा में जन्म लिया था और बालपन से ही बल्ला-लीलाओं का प्रदर्शन करते हुए वे अब ढलती उम्र में भी मजबूती से जमे दुनिया भर में चौकों-छक्कों की बरसात करते घूम रहे हैं।
    यूँ तो सचिन भगवान ने गेदों की पिटाई के अलावा अब तक कुछ भी ऐसा नहीं किया है कि उनकी भगवान के रूप में पहचान हो पाती, परंतु भगवान का तो ऐसा ही होता है, वे तो एखाद घटना भर से दुनिया को बता देते हैं कि मैं भी भगवान हूँ, जैसे तेंदुलकर भगवान ने साउथ अफ्रीका के खिलाफ वन-डे मैच में नाबाद दोहरा शतक मारकर बता दिया और लोगों ने श्रद्धा से नतमस्तक होकर मान भी लिया।
    अच्छा हुआ जो यह खुलासा जल्दी हो गया, वर्ना अब तक क्रिकेट की भगवानी करते आ रहे, दूसरे कोई अज्ञात देव डबल चार्ज से मुक्त ही ना हो पाते। चूँकि क्रिकेट का घोषित भगवान अब तक कोई था नहीं, इसलिये निश्चित रूप से दूसरे कोई भगवान ही अपनी मूल जिम्मेदारी के साथ-साथ क्रिकेट की भगवानी का काम भी देखते होंगे, और चूँकि क्रिकेट खेला भी खूब जा रहा है आजकल, तो काम के बोझ से दबे काफी झल्ला भी रहे होंगे। लेकिन अब उन्हें बिना भत्ते की इस डबल ड्यूटी से छुटकारा मिल जायेगा क्योंकि अब अंजली-पति भगवान तेंदुलकर ब्रम्हांड भर के लिए ना सही क्रिकेट बिरादरी के उत्थान के लिए ज़रूर अवतरित हो चुके हैं।
    बड़ी परेशानी थी। क्रिकेट में भविष्य बनाने की जद्दोजहद करने वाले गली-कूचे के खिलाड़ियों को सर्वसुलभ हनुमान जी के चरणों में, या क्रिकेट मैदान के रास्ते में उपलब्ध किसी भी पसंद-नापंसद भगवान के मंदिर में नाक रगड़ने जाना पड़ता था, ताकि बॉल बार-बार बल्ले पर आए और वे सम्मानजनक स्कोर बनाकर अपनी इज्ज़त बचाने में सफल हों या बॉल बराबर विकेट पर फिक जाए, कोई कैच अनलपका ना रहे, या फिल्डिंग में बॉल सुभीतेपूर्वक पकड़ में आ जाए। दूसरे भगवान अन्य दुखियारों की माँगों को निपटाने के भारी काम के बोझ के मारे उन भक्त क्रिकेटरों की ओर ध्यान ही नहीं दे पाते थे जो मैदान में हर काम आसमान ताकते हुए ही सम्पन्न करते हैं। अब यह समस्या खत्म हो जायेगी। जल्द ही तेंडुलकर भगवान के मंदिरों की स्थापना हर छोटे-बड़े क्रिकेट मैदान के भीतर ही कर ली जायेगी ताकि भक्त खिलाड़ी वहीं दंडवत लेटकर, चौकों-छक्कों अथवा बॉलर होने की दशा में ज़्यादा से ज़्यादा विकेटों की माँग कर धूप-बत्ती कर सकें नारियल फोड़ सके, चरणामृत और प्रसाद का वितरण कर फिर पिच की धूला लेने पहुँचें। बाकी क्रिकेट भक्त आम जनता के लिये यह व्यवस्था देश भर में फैले उत्साही मंदिर निर्मातागण अतिक्रमण के माध्यम से मदिरों की श्रृंखला खड़ी कर स्वयं ही कर देंगे। लोग बीच सड़क में अपनी श्रद्धा उढेल कर सचिन भगवान की आराधना कर सकेंगे।

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

1 अप्रैल 2010, 0000 आवर्स से महँगाई खत्म

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
    31 मार्च 2010 समय 2400 आवर्स, कमाल ही हो गया। सरकार ने महँगाई बढ़ाने वाले तमाम बदमाशों को बुलाकर सीधे-सीधे कह दिया कि देखो अगर तुमने फौरन से पेश्तर हमारा हुक्म मानते हुए महँगाई खत्म नहीं की तो हर एक को चुन-चुनकर जेल में डाल दिया जाएगा। जेल में डालने के बाद भी अगर महँगाई नीचे नहीं आई तो तुम लोगों को काला पानी भेज दिया जाएगा। उसके बाद भी अगर तुम नहीं सुधरे और कीमतें ज़मीन पर नहीं आईं तो तुम सबको तोप के मुँह से बांधकर उड़ा दिया जाएगा।
    इतनी खतरनाक धमकियों के बाद सुनते हैं महँगाई बढ़ाने वाले तमाम बदमाशों में बला की घबराहट फैल गई है और उन्होंने समझौता करने की गरज से सरकार के सामने कुछ महत्वपूर्ण प्रस्ताव रखे हैं। उन्होंने कहा है कि हम कारों की कीमत पाँच हज़ार से आठ हज़ार के बीच में फिक्स कर देते हैं। टी.वी., फ्रिज, ए.सी. इत्यादि दो सौ से पाँच सौ रुपये कर देंगे। स्वतंत्र डुप्लेक्स बंगलों और फ्लेटों की कीमत छः हज़ार से नौ हज़ार तक की जा सकती हैं। ज़मीनों की कीमत हज़ार-बारह सौ रुपये प्रति वर्ग किलोमीटर हो सकती है। हवाई जहाज़ का किराया पैतीस रुपये और ट्रेन का किया तीन से सात रुपये करने में भी उन्हें कोई हर्ज नहीं है। बड़ी-बड़ी सितारा होटलों में खाना दस रुपये से बीस रुपये थाली, शराब दो-दो रुपये पैग और स्पा, तेल मालिश, सोना बाथ, एक-एक रुपये में दिया जाएगा।
    सरकार के प्रतिनिधियों ने महँगाई बढ़ाने वाले बदमाशों की इस स्वयंस्फूर्त पहल पर काफी प्रसन्नता व्यक्त की है और उनसे आटा, दाल, चावल, शक्कर, तेल, घी, मिट्टी का तेल, गैस सिलेन्डर, कॉपी-किताब, शिक्षा, चिकित्सा, दवाइयों और बेबी फूड की कीमतों को भी कम करने का अनुरोध किया है परन्तु बदमाशों ने इस मुद्दे पर सरकार से चरण छूकर माफी माँग ली है। उन्होंने कहा है कि चाहे तो हमें बीच चौराहे पर कोड़े लगा लो, पत्थर मार-मारकर संगसार कर दो, फाँसी पर चढ़ा दो मगर आटा, दाल, चावल और इन सारी चीज़ों के भाव कम करने में हम असमर्थ हैं। बदमाशों के प्रतिनिधि ने सरकार से कहा है कि  वे इन सारी आम जनसाधारण के उपयोग में आने वाली ज़रूरी चीज़ों को घर-घर जाकर मुफ्त में बाँटने के लिए राजी है परन्तु इनके दाम कम कर पाप का भागीदार बनने का उनका कोई इरादा नहीं है।
     बदमाशों के इस खतरनाक इरादे से सरकार के लिए हालाँकि व्यवस्था भंग होने का गंभीर खतरा पैदा  हो गया है परन्तु 1 अप्रैल 2010 को समय 0000 आवर्स से यह व्यवस्था लागू होने जा रही है।
    मुझे पता है कि चूँकि 1 अप्रैल, फूल डे होता है, इसलिए अधिकतर बेवकूफ लोग इस समाचार पर भरोसा नहीं करेंगे, लेकिन मेरी इल्तजा है कि थोड़ी देर के लिए बेवकूफ बनने में किसी के बाप का आखिर जाता क्या है ?