सोमवार, 5 अप्रैल 2010

क्रिकेट के भगवान का आविर्भाव

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
    बहुत सालों से हम भगवान की तलाश कर रहे थे, जो अब जाकर पूरी हो पाई है।  पिछले दिनों भगवान ने ग्वालियर के रूपसिंह स्टेडियम में डबल सेंचूरी ठोक कर अपने मौजूद होने का प्रमाण दे दिया।  सारा देश अपने भगवान की इस लीला से आल्हादित है।
    बड़ी समस्या थी, तैतीस करोड़ देवी-देवताओं में से किसी ने भी अपने जमाने में क्रिकेट नहीं खेला, पुराणों में ऐसा कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है कि किसी देवी-देवता ने बल्ला भी पकड़ा हो, ऐसे में क्रिकेट के भगवान का पद युगों-युगों से खाली पड़ा था। इस पद पर अब सचिन तेंदुलकर की पदस्थापना हो गई है। कुछ बड़े-बड़े अखबार, पत्र-पत्रिकाएँ अगर यह घोषणा नहीं करते तो हमें पता ही नहीं चलता कि भगवान अवतरित हो चुके हैं और उनकी पहचान मास्टर-ब्लास्टर के रूप में हो चुकी है। उन्होंने मुंबई के उपनगर बांद्रा में जन्म लिया था और बालपन से ही बल्ला-लीलाओं का प्रदर्शन करते हुए वे अब ढलती उम्र में भी मजबूती से जमे दुनिया भर में चौकों-छक्कों की बरसात करते घूम रहे हैं।
    यूँ तो सचिन भगवान ने गेदों की पिटाई के अलावा अब तक कुछ भी ऐसा नहीं किया है कि उनकी भगवान के रूप में पहचान हो पाती, परंतु भगवान का तो ऐसा ही होता है, वे तो एखाद घटना भर से दुनिया को बता देते हैं कि मैं भी भगवान हूँ, जैसे तेंदुलकर भगवान ने साउथ अफ्रीका के खिलाफ वन-डे मैच में नाबाद दोहरा शतक मारकर बता दिया और लोगों ने श्रद्धा से नतमस्तक होकर मान भी लिया।
    अच्छा हुआ जो यह खुलासा जल्दी हो गया, वर्ना अब तक क्रिकेट की भगवानी करते आ रहे, दूसरे कोई अज्ञात देव डबल चार्ज से मुक्त ही ना हो पाते। चूँकि क्रिकेट का घोषित भगवान अब तक कोई था नहीं, इसलिये निश्चित रूप से दूसरे कोई भगवान ही अपनी मूल जिम्मेदारी के साथ-साथ क्रिकेट की भगवानी का काम भी देखते होंगे, और चूँकि क्रिकेट खेला भी खूब जा रहा है आजकल, तो काम के बोझ से दबे काफी झल्ला भी रहे होंगे। लेकिन अब उन्हें बिना भत्ते की इस डबल ड्यूटी से छुटकारा मिल जायेगा क्योंकि अब अंजली-पति भगवान तेंदुलकर ब्रम्हांड भर के लिए ना सही क्रिकेट बिरादरी के उत्थान के लिए ज़रूर अवतरित हो चुके हैं।
    बड़ी परेशानी थी। क्रिकेट में भविष्य बनाने की जद्दोजहद करने वाले गली-कूचे के खिलाड़ियों को सर्वसुलभ हनुमान जी के चरणों में, या क्रिकेट मैदान के रास्ते में उपलब्ध किसी भी पसंद-नापंसद भगवान के मंदिर में नाक रगड़ने जाना पड़ता था, ताकि बॉल बार-बार बल्ले पर आए और वे सम्मानजनक स्कोर बनाकर अपनी इज्ज़त बचाने में सफल हों या बॉल बराबर विकेट पर फिक जाए, कोई कैच अनलपका ना रहे, या फिल्डिंग में बॉल सुभीतेपूर्वक पकड़ में आ जाए। दूसरे भगवान अन्य दुखियारों की माँगों को निपटाने के भारी काम के बोझ के मारे उन भक्त क्रिकेटरों की ओर ध्यान ही नहीं दे पाते थे जो मैदान में हर काम आसमान ताकते हुए ही सम्पन्न करते हैं। अब यह समस्या खत्म हो जायेगी। जल्द ही तेंडुलकर भगवान के मंदिरों की स्थापना हर छोटे-बड़े क्रिकेट मैदान के भीतर ही कर ली जायेगी ताकि भक्त खिलाड़ी वहीं दंडवत लेटकर, चौकों-छक्कों अथवा बॉलर होने की दशा में ज़्यादा से ज़्यादा विकेटों की माँग कर धूप-बत्ती कर सकें नारियल फोड़ सके, चरणामृत और प्रसाद का वितरण कर फिर पिच की धूला लेने पहुँचें। बाकी क्रिकेट भक्त आम जनता के लिये यह व्यवस्था देश भर में फैले उत्साही मंदिर निर्मातागण अतिक्रमण के माध्यम से मदिरों की श्रृंखला खड़ी कर स्वयं ही कर देंगे। लोग बीच सड़क में अपनी श्रद्धा उढेल कर सचिन भगवान की आराधना कर सकेंगे।

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