शनिवार, 14 अगस्त 2010

पन्द्रह अगस्त का पोरोग्राम और नेताजी का भासड़

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//

जैसे ही नवोदित नेताजी को खबर मिली कि अबकी बार तहसील प्रांगण में उन्हें झंडावंदन करना है, तत्क्षण उन्होंने मन ही मन राष्ट्रीय गान रटना शुरू कर दिया। खास चमचे ने जब देखा कि नेताजी अपने ललाट की सलवटों का भार उठा नहीं पा रहें हैं, चिन्तामग्न से हुए पड़े हैं, वह भी चिन्ताविभोर होकर नेताजी को कुरेदने लगा।
- कोई परेशानी है दद्दू, टेंसन में काहे आ गए, बारूद मलें क्या ? यहाँ बारूद उस शक्तिचूर्ण को कहा जा रहा है जिससे आम हिन्दुस्तानी अपनी बत्तीसी से छुटकारा पाया करता है और यदा-कदा मुँह में कैंसर जैसे महान रोग का पालक-पोषण करता है। बहरहाल, बारूद खाने का नेताजी का फिलहाल कोई इरादा नहीं था। वे चमचे के सामने अपनी चिन्ता प्रकट करते हुए बोले,
- पोरोग्राम में गाना गाना पडे़गा ना, याद कर रहे है। तीसरी कच्छा के बाद कभी गाओई नी सुसरो।
- कौन सा गाना ? चमचे ने तुरंत अपनी गानों की दिमागी फेहरिस्त टटोलते हुए पूछा।
- अरे वही जनगनमन...., नेताजी बोले। इस पर चमचा उन्हें गम्भीरता से समझाता हुआ बोला,
- अरे ऊको जान दो, वो तो स्कूल की लड़कियन गा लेंगी। आप तो स्पैच की तैयारी करो, वह भी सुनाना पडे़गी।
- स्पैच ? ये क्या होती है ?
- अरे भासड़ भासड़....। चमचे ने समझाया। नेताजी तत्काल राष्ट्रगान का रटना छोड़ भाषण की प्रेक्टिस करने लगे। चमचा उन्हें एकांत उपलब्ध करा कर चल दिया। बीस पच्चीस मिनिट बाद चाय-पानी-बीड़ी-ज़र्दा इत्यादि से निवृत्त होकर चमचा कुछ ज़्यादा ही चमकता हुआ वापस आया और फिर नेताजी को फिर कुरेदने लगा,
- जमा कछु ?
नेताजी एक शुद्ध भारतीय गाली देते हुए बोले,
- भाई-भैनों से आगेई नहीं बढ़ रयो दारी को....!
- चमचे को नेता जी पर दया आने लगी। वह कुछ ज़्यादा ही वफादार बनता हुआ बोला,
- तुम तो रहन दो। हमी कछु करते हैं।
           नेताजी को एक अलग चिन्ता ने घेर लिया। इस साले ने ऐन टाइम पर अगर धोखा दे दिया तो ! नेतागिरी झाड़ने का एक सुनहरा मौका हाथ से निकल जाएगा, भद्द पिटेगी सो अलग। उन्होंने पूरी तौर पर आश्वस्त होने के लिए चमचे से पूछा,
- तुम का करोगे ?
- लिखवाते हैं........, चमचा बोला।
- किससे लिखवाओगे ?
- अब लिखवाते हैं......., चमचा फिर समझदार बनता हुआ बोला।
- अबे लिखवाते हैं लिखवाते हैं कर रिया है, बता काहे नहीं रहा कौनसे लिखवाएगा ? नेताजी भड़क गए।
- हमी टिराई करेंगे.......!
- तुम औरे हमरा बंटाधार करवाओगे। तुम्हीं लिख सकत होते तो हम ना लिख लेते ! तुम सोई तीसरी कच्छा के बाद कभु स्कूल नहीं गए मताई के.......।
- अरे दद्दू, बोल के लिखवांगे किसी से !
- और बाचेगा कौन ? तुमरा बाप ?
- हाँ....., ये तो सोचिई नहीं हमने। ऐसो करत हैं, आज संझा के हम एक रम की अद्धी चढ़ाकर फिर माइंड चलाते हैं। कल सबेरे आपे रटवा देंगे।
- साले हरामजादे, ठर्रा की औकात तुमरी, हम जब से नेता बने तुम रम से नीचे बात ही ना करत हो। सौ जूते दें हैं हम, अब जाओ फटाफट, स्पैच की तैयारी करो।
           चमचा नेताजी की जेब से ज़बरदस्ती सौ रुपया निकालकर ले गया। नेताजी ने एक प्रेम भरी माँ की गाली देकर चमचे की इस धृष्टता को स्वीकृति दे दी और वे भाषण की चिंता चमचे पर छोड़कर अपनी चार-चार रखैलों के बारे में सोचने लगे। जबसे उन्होंने देश की चिंता करने का ठेका लिया है, अपनी सभी चिंताएँ वे यूँ ही चमचों के ऊपर छोड़कर चिंता मुक्त जीवन जीते हैं।
            रात को टुन्न होकर, घोडे़ बेचकर सोने के बाद अगले दिन चमचा आध घंटा ज़्यादा शौचालय में बैठकर, टी.वी. पर और इधर-उधर सुने भाषणों, नेताओं के वक्तव्यों में अपने कुछ मौलिक विचारों के घालमेल से एक विस्तृत भाषण तैयार कर लाया और नेताजी के घर आकर उसने उन्हें अपना वह अनमोल भाषण रटाना चालू किया।
- भाईयों और बहनों........!
- भाईयों........., बोलकर नेताजी खामोश हो गए।
- भाईयों और बहनों........! चमचे ने फिर दोहराया। इस पर नेता जी उखड़ गए,
- बस भाईयों ही काफी है, आगे बोल ! चमचे ने आगे बोलना शुरू किया और नेताजी ने मन ही मन अपना पहला भाषण रटना शुरू किया।
- भाईयों...... आज पन्द्रह अगस्त के इस पावन अवसर पर.......
चमचा ठिठककर दद्दू से बोला,
- काहे, का है पन्द्रह अगस्त को, का कहत हैं गणतन दिवस के स्वतंत्रा दिवस ?
इस पर दद्दू भड़कते हुए बोले,
- जो कछु होए, पन्द्रह अगस्त बोलने में का तुमाई नानी मर्रई!
           चमचे ने फिर अपना प्रशिक्षण सत्र प्रारम्भ किया। चमचे का एकालाप सुनते-सुनते नेताजी धीरे-धीरे सपनों में खोते चले गए और उनकी आँखों के सामने अपार जनसमूह का सागर हिलोरे मारने लगा। अपने आप को एक ऊँचे मंच पर पाकर नेताजी में एक अनोखा उत्साह संचारित हो गया और वे माइक के सामने पूरे जोशोखरोश से अपना भाषण देने लगे।
- बड़ी खुशी की बात है कि पन्द्रह अगस्त के इस पावन अवसर पर आज हमें इस विशाल तहसील प्रांगण में तिरंगे की रस्सी खैंचने का मौका मिल रहा है। बहुत साल पहले आज ही का वो दिन था जब देश के बड़े-बडे़ नेताओं ने अँग्रेज को भगाकर पहली बार अपने हाथ से तिरंगे की रस्सी खैंची थी। अपन तो थे नहीं तब, सुना है, वे दिन भी बड़े लफड़े-झपड़े के दिन थे, नेतागिरी करना बहुत टेढ़ा काम था, पढ़ा-लिखा आदमी ही नेतागिरी कर सकत था। गांधीजी, नेहरूजी सब पढे-लिखे बारिस्टर थे। मगर आज हमारे देश ने इतनी तरक्की कर ली है कि तीसरी कच्छा तक पढे़-लिखे हम जैसे ढोर-गंवार भी पंचाती राज में नेता बनके झंडा की रस्सी खींचने के काबिल हो गए है। अँग्रेजों के टाइम में इतनी सहूलत नहीं थी, अँग्रेजी पुलिस डंडे मारा करती थी। हम होते तो घर से बाहर ही ना निकलते। बिलावजह डंडा खाने से क्या फायदा।
            उन दिनों राजनीति सूखा-सट्ट मैदान थी, कोई विधाक नहीं, कोई मंतरी नहीं, पंच-सरपंच कोई नहीं। हर आदमी अंग्रेजों का गुलाम होता था। कोई आज़ादी नहीं थी, ना खाने की ना कमाने की। कोई फंड नहीं, कोई एलाटमेंट नहीं। फंड होय, अलाटमेंट होय तो नेता विकास करे, अपना भी और देश का भी। फंड होए तो नाली बनवाए, लेटरिन बनवाए, हेंडपम्प लगवाए, सड़क पर मट्टी-सट्टी डलवाए, कुआ-सुआ खुदवाए....... इस्कूल, आंगनवाड़ी बनवाए ! फंड ना हो तो क्या भुट्टे भूने ? क्या अपना विकास करे क्या देश का विकास करे ! सारी नेतागिरी बेकार, कोई धेले को ना पूछे ! नेतागिरी तो वैसे भी आजकल बड़ी बेकार चीज़ है। लोगोन किसी को देश का काम करते हुए देख नहीं सकत हैं। काहे कि हर आदमी को नेता बनना है, हर आदमी कुर्सी चाहता है, हर आदमी विकास करना चाहता है, हर आदमी को कमीसन चइए....... ये चइए, वो चइए।
            उन दिनों के सबरे नेता बड़े सीधे-साधे थे, बस बापू के कहने पर चलत थे, ये नहीं कि कभी इसके कहने में चलन लगे, कभी उसके कहने में चलन लगे। बापू भी बहुत सीधे थे, देखने को ही डंडा रखत थे, कभी इस्तेमाल नहीं किया, वर्ना अँग्रेज दो सौ साल टिकता ? दो दिन में भाग जाता। अब इस जमाने में हमारे भाई बंधुओं को देखो, एक दूसरे के ऊपर कुर्सी-टेबल, माइक-साइक फेंककर देश चला रहे हैं, क्योंकि यह जूतमफैक बहुत ज़रूरी है, वर्ना कोई आपे राजनीति करन न देगा, हर कोई धोती खींचेगा। उन दिनों के नेता जूता सामने रखकर बात करते तो अँग्रेज कभी का देश छोड़कर भाग जाता। हमारी पाल्टियों को जल्दी देश की सेवा करने का मौका मिलता। वे जल्दी जाते तो हम हिन्दुस्तानी जल्दी अध्यक्ष-फध्यक्ष बनते, हमें जल्दी विधाक-एम्पी, मंत्री-मुखमंत्री बनने का मौका मिलता, हम जल्दी नेता बनते, चार पैसा कमाते, देश को जल्दी टाटे-बिड़ले मिलते, देश में जल्दी अंबानी पैदा होते, रुपये-पैसे की रेलमपेल आज से डेढ़ सौ साल पहले चालू हो जाती। अब तक देश में कितनी तरक्की हो जाती। तो कहने का मतलब ये कि ये जो चारों तरफ गाली-गुफ्तार चल रही है, ये जो कुर्सी-टेबल माइक-साइक फिक रहे हैं, ये उस वक्त गोल मेज कांफ्रेसन में फिकने चइये थे, देश जल्दी आज़ाद होता।
           सब कुछ लफड़ा उस वक्त के नेता लोगन की शराफत ने किया। वे सत्य अहिंसा, सादा जीवन-उच्च विचार, नैति-नैतिकता वगैरा-वगैरा फालतू चक्करन में पड़ गए। उस वक्त कोई मैया की गारी देने वाला नेता ही नहीं था तो वे हरामजादे अँग्रेज काहे गद्दी छोड़ते ! आज हमरा देश काहे इतनी तरक्की कर रहा है, इसलिए क्योंकि अब नेतागिरी की वो पुरानी फिलिम नहीं चलती। अब तो जिसकी लाठी उसी की भैंसिया। अब घुग्घू बनके देश नहीं चलता। बात-बात पर रार-तकरार, एक-दूसरे की धोती-पजामा खैंचने का दमखम जो हो तो राजनीति में नेतागिरी के कौनो मतलब हैं, वर्ना खली-भूसी की दुकान अच्छी। विदेशों में बड़ी-बड़ी मिटिंगन में टेबल पर जूता रखकर बात करना चइये, सारी समस्या दो मिनिट में सुलट जैहै। ये पाकिस्तान घड़ी-घड़ी कश्मीर-कश्मीर चीखन लगत है, काहे का कश्मीर ! दो रैपट दो खैंच के तो कश्मीर-वश्मीर सब भूल जैहै। नेपाल को देखियो, वो कभी कछु माँगत है का ? पड़ो है चुपचाप, मस्त खा पी रयो है। भूटान को देखो, तिब्बत को देखो, बांगलादेश को देखो, सुना है ये सब अपन पड़ोसी हैं, कैसे शराफत से टाइम काट रहे हैं, उन्हें तो नहीं चइये कश्मीर, इन्हीं को चुल है कश्मीर-कश्मीर.......!
              खैर, हम इधर तहसील में ना पड़े होते तो बताते। हम जो नेशनल लीडर होते तो बताते एक-एक को। ना जूते मार-मार कर टाट गंजी करते तो हमरो नाम बदलकर घसियारा रख दयो हम कछु ना कहते।
इसलिए भाइयों, ये पन्द्रह अगस्त तो ठीक है अपनी जगे पर, हमने रस्सी खैंच दी है, हवा चलेगी तो जो झंडो फर-फर फहराएगो ही, सब लोग लड्डू-वड्डू खालो, ज़्यादा बनवाएँ हैं, जितने चइये उतने खाओ, घर भी ले जाओ, मगर इतना याद रखियों, अबकी दफे हमें चाहे जिस पाल्टी से, चाहे जिस इलेक्शन का टिकट मिले, भौर की पहली किरण के साथ ज़्यादा से ज़्यादा तादात में बोट देकर इस दद्दू को विजई बनइयों, यही प्रार्थना है। बेफजूल हमें लाठी-गोली का इस्तेमाल करने की नौबत नहीं आना चइये। धन्यवाद। भारत माता की जय।

42 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया रचना ...सुन्दर प्रस्तुति...
    स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं.

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  2. सन्नाट और सटीक व्यंग्य ... बोले तो धो दिया एकदम

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  3. हा हा हा
    बहुत ही मजेदार.
    आपने तो स्वतंत्रता दिला दी देश को. :-)
    भारत माता की जय.

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  4. डा सुभाष राय15 अगस्त 2010 को 8:11 am बजे

    प्रमोद भाई, आपउ ई का टंटा खडा कर रियो है. माना कि ऐसन महान नेतन क आप से अच्छी दोस्ती बा, एकर ई मतलब त ना कि वाको सारा भेद खोल के रख डारो. अरे होइ सकत ह कि कबो इहां के परधानमंत्री बन जाय, तब ई अवसर त रहे के चाही कि सतर्कता विभाग में कुछ व्यंगकारन क नियुक्ति हो सके. काहे कि इनसे बढिया खोज-बीन इ अफसर सरवा थोड़े ही कर पायेंगे. चलें आगे ध्यान रखिहें कि कुछ दोस्त बनल रहें. ई खाली सलाह बा, मानल ना मानल आप पर.

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  5. Ab kya kahe pramodji , hamare desh ke in netaon ki itni baariki se pehchan aur unko kis dande se fatkat lagaani hai iska satik gyan to aapse behtar kaun jaanta hai? hamari widambana ko bhi vyang banakar hasaane ki aapki pratibha ko SALUTE !

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  6. पूरा पोस्ट पढ़ते हुए 'पीपली लाईव' फिल्म ही दिमाग में घूमती रही...वो ही ग्रामीण परवेश ,वो ही लठ्ठमार निकृष्ट नेता वो ही सत्ता की लोलुपता...जैसी फिल्म में वैसी ही आपकी पोस्ट में...व्यंग की गहरी तीखी मार...वाह...आपका लेखन बहुत प्रभावशाली है...हम तो लट्टू हो गए...सच्ची...
    नीरज

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  7. हा हा! मजेदार...सच में यही हाल होंगे.


    स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

    सादर

    समीर लाल

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  8. गाँधी के सपनो का यह भारत, यही स्वराज्य का मूल मन्त्र है।
    सौगंध तुम्हे सत्ताधीशों, सच बतलाओ यह लोकतंत्र है ॥
    nice

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  9. जो नेता पढ़ेगा इसे वो आपई से भाषण लिखवा लेगा।

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  10. झन्नाटेदार व्यंग। पढ़कर चैन मिला।

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  11. स्पैच ने तो गज़बे ढा दिया दद्दू!

    वैसे बात सई बी हे
    ये जो चारों तरफ गाली-गुफ्तार चल रही है, ये जो कुर्सी-टेबल माइक-साइक फिक रहे हैं, ये उस वक्त गोल मेज कांफ्रेसन में फिकने चइये थे, देश जल्दी आज़ाद होता।

    गुदगुदा गई यह कच्छा वाली रचना

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  12. अब भाई लोकतंत्र तो लोकतंत्र है और इस लोकतंत्र के स्‍तंभ जैसे भी हैं सबके सामने हैं। बदल सकें तो बदलें, कोशिश करें, परिणाम देखें। मैं तो बस इतना जानता हूँ कि विकास के नाम पर अब तक जितना खर्च हुआ उससे तो अब तक हर गॉंव का नक्‍शा कुछ और ही होता। विकास होता तो सोच बदलती, सोच बदलती तो परिणाम बदलते।
    15 अगस्‍त और 26 जनवरी को स्‍मरण कर लेने भर से कुछ नहीं होगा। चीन जैसा कट्टर कम्‍युनिस्‍ट देश महात्‍मा गॉंधी के सिर्फ एक मंत्र 'हर हाथ को काम' से बदल रहा है और हम(?) हमारे पास योजनायें हैं, उन्‍हें क्रियान्वित करने के लिये संसाधन हैं मगर कुछ है जो इस सब पर भारी पड़ रहा है।

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  13. aadarniya Pramodji, dandaa aapke haath me aur jhanda netaaji ke haath me , bhasan netaji ka aur hansi ke ladoo hamare haath me, mubarak ho aapko aapki lekhni ka jadoo , -----kamna billore,mumbai

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  14. बहुत ही मजेदार,सटीक व्यंग्य,आपको बहुत बहुत बधाइयाँ,
    स्वतंत्रता दिवस पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ |

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  15. अच्छी रचना, सार्थक व्यन्ग्य----एक अगीत कविता भी समर्पित---

    वे राष्ट्रीय ध्वज़ फ़हराकर,
    जनता को-
    देश पर मर मिटने की कसम दिलाकर,
    बैठगये लक्जरी कार में जाकर;
    टोपी पकडाई पी ए को,
    रखे अगले वर्ष के लिये धुलाकर।

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  16. तीखे व्यंग्य के साथ संदेश भी - बहुत खूब प्रमोद भाई।

    मैं अचरज से देखता बातें कई नवीन।
    मूरख मंत्री के लिए अफसर बहुत प्रवीण।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  17. bahut accha hai

    shivshankar malviya
    air&doordarshan
    indore

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  18. सुन्दर , सार्थक व्यंग्य ।

    श्याम गुप्त

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  19. व्यंग्य कारगर और सार्थक है

    Dr. Prem Janmejai
    # 73 Saakshara Appartments
    A- 3 Paschim Vihar, New Delhi - 110063
    Phones:(Home) 011-91-11-25264227
    (Mobile) 9811154440

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  20. दद्दू के भासड़ कहीं आपई तऽ नहीं न लिक्खे हैं, चच्चा !!

    आपई के व्यंग्य की धार बहुते तीखी होती है. हर दद्दुआ अब आगे से इहे भासड़वा के छब्बीस जनवरी आ पनरह अगस्तवा के झंडा के रस्सी खिंचने के बाद काम में लायेगा.

    बहुत सुनर....

    (विलंब से ही सही) ६३वें स्वतंत्रता दिवस की कोटिशः हार्दिक शुभकामनाएँ....

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  21. हा हा हा
    बहुत ही मजेदार.
    स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

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  22. pramod ji,
    kadwi baat hai magar aaj ka sach yahi hai. vyang ke maadhyam se aapne bahut sahi kaha ki aaj ke neta ka shikshit hona aawashyak nahin rah gaya hai, na desh hit ki baat hoti hai, kisi tarah saansad ya vidhayak ya mantri bankar kamishan (commission) khana hai, aur niche wala kamishan tabhi de paayega jab khud kamayega.
    vyang ke dwara teekha prahaar bahut pasand aaya. saabhar badhai.

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  23. bahut hi zordaar..ek ek pankti..ek ek shabd...sab kuch bas kamaal hai....

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  24. बहुत ही बढ़िया...सटीक एवं मारक प्रवृति का व्यंग्य ...
    एक रौ में जैसे निर्मल पानी सा बहता चला गया...
    वाह!...बहुत बढ़िया

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  25. wah tambat ji! maza aa gaya.Andar ki baat aap khoob jante hen.Badhai.15 August ki aur ek achche vyangya ki.

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  26. कामना है कि इस धार का आनंद हमें हमेशा मिलता रहे।

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  27. पन्द्रह अगस्त पर आपका लिखा व्यंग्य काफी अच्छा है. अंदाज वहीं है जो हमारे देश के गंवार नेता लोगों का है. आपने उनका सही रूप दिखाया है।
    --
    Rakesh Kumar Jha

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  28. हौसला अफजाई के लिए सभी का धन्यवाद। कृपया ब्लॉग पर आते रहें।

    प्रमोद ताम्बट

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  29. आपने मौजूदा हालात पर बहुत गहराई से कटाक्ष किया है। आपने इस व्यंग्य के माध्यम से वो सारी बात कह दी जो गंभीर मुद्दे आज मजाक बनकर और सत्ता की हाथ की कठपुतली बन कर रह गये।

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  30. प्रमोद जी भाईसाहब
    विलंब से ही सही …
    ब्लॉगोत्सव सम्मान के लिए बधाई स्वीकार करें !
    व्यंग्य आपके हमेशा कमाल के होते हैं ,
    पन्द्रह अगस्त का पोरोग्राम और नेताजी का भासड़
    पढ़ कर बहुत मज़ा आया ।
    शानदार व्यंग्य के लिए बधाई !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  31. aadar jog
    pramog jee ,
    saadar pranam !
    maze daar vyangya ke liye aap ka aabhar , achcha chitran oobhara hai aap ne ,
    sadhuwad .
    saadar !

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  32. रिज़वाना कश्यप18 अगस्त 2010 को 6:52 pm बजे

    ज़बरदस्त व्यंग लिखा है आपने! अपनी माँ को भी पढ़ के सुनाया! बीमार हैं...थोड़ी उदास थीं..मूड सुधर गया! वाह!

    रिज़वाना कश्यप

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  33. प्रमोद जी

    आसिरवाद
    यूं तो सुघड़ लिक्खो
    हासो आ गयो
    तने सीसाँ देवू

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