मंगलवार, 14 सितंबर 2010

एक पखवाड़ा मुकर्रर है हिन्दी की मातमपुर्सी के लिए

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
हिन्दी भाषी होने के नाते आज के दिन हमें अपनी भाषा पर गर्व करना सिखाया गया है, मगर सच्चाई यह है कि स्वातंत्रोत्तर काल में जैसे-जैसे हिन्दी आन्दोलन फलता-फूलता पल्लवित होता गया है, वैसे-वैसे देश में हिन्दी की खटिया-खड़ी होती देखी गई है। कुछ तो देश के कर्ता-धर्ताओं ने उसे गर्व करने लायक नहीं छोड़ा, रही-सही कसर हम जैसे सैकड़ों लिख्खाड़ पूरी कर रहे हैं जिन्हें अपने शिक्षणकाल में हिन्दी के पर्चे में कभी तैतीस से ज़्यादा अंक नसीब नहीं हुए। दरअसल वस्तुस्थिति तो तैतीस अंक प्राप्त करने लायक भी नहीं थी परन्तु मास्टरनियों की रहमदिली और हिन्दी के प्रति ‘हिन्दी ही तो है, क्या फर्क पड़ता है’ के उदारता भाव के कारण हमारा भविष्य वर्ष-प्रतिवर्ष सुरक्षित होता चला गया, और अब हम हिन्दी के भविष्य का ‘बिस्तर गोल’ करने में सक्रिय सहयोग देकर ‘खटिया खड़ी बिस्तर गोल’ वाला चालू मुहावरा चरितार्थ करने में लगे हुए हैं।
    हिन्दी का बंटाधार करने वालों में प्रायमरी, मिडिल स्कूल के क्रीड़ा, संगीत व चित्रकला मास्टरों से लेकर बड़े-बडे़ सूरमा भाषा विशेषज्ञों का भी सश्रम योगदान रहा है। हिन्दी फिल्म-टी.वी. वाले विद्वजनों ने भी बहती गंगा में हाथ धोकर हिन्दी की ‘वाट’ लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। फिल्म वालों ने इस श्रमसाध्य कार्य के लिए अवार्ड हासिल किए तो क्रीड़ा-संगीत-चित्रकला शिक्षकों ने, जो अक्सर हिन्दी शिक्षकों के टोटे में जबरदस्ती हिन्दी पढ़वाने के उपयोग में आते हैं, हिन्दी का क्रियाकर्म बाकायदा तनखा लेकर किया, साथ में इंक्रीमेंट भी लिए। वे बेचारे पढ़ाई के बोझ से घबराकर प्रदर्शनकारी कलाओं की शरण में पहुँचे होते हैं, उन्हें फिर घर में होमवर्क से मगजमारी के बाद बच्चों को हिन्दी पढ़ाने की बेगारी करना पड़ती है, नतीजतन हिन्दी का सत्यानाश करने वाली विदूषी पीढ़ी जन्म लेती है, कालान्तर में मौका पड़ने पर जिसे हिन्दी में अर्जी लिखना भी नहीं आता, जिसकी ज़रूरत हमारे देश में कदम-कदम पर पड़ती है।
    देश के भाषा विशेषज्ञों का तो दुनिया में कोई सानी ही नहीं है। उन्होंने हमेशा चौकस रहते हुए इस बात का ध्यान रखा कि कैसे हिन्दी को ना समझ में आने वाली क्लिष्टतम भाषा बनाए रखा जा सके ताकि लोग अपनी राष्ट्र भाषा को जन्म-जन्मान्तर तक समझ ही ना पाएँ और इससे बिदककर अंग्रेजी की शरण में जा खडे़ हों या गाली- गलौच की सुप्रचलित भाषा का आदान-प्रदान कर अभिव्यक्ति की अपनी समस्या खुद ही सुलझा लें, भूलकर भी हिन्दी के दरवाज़े पर आकर खड़े ना हों।
    फिल्म वालों ने तो गज़ब ही कर डाला। पब्लिक के मुँह में ऐसी छिछोरी भाषा परोस दी कि हिन्दी का भूत दशकों से जान बचाता भागता फिर रहा है। इन फिल्मचियों ने ‘अख्खे’ देश को अनोखी बम्बइया भाषा में पिरो कर रख दिया है। इस मामले में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक वास्तव में भारत एक है। गुजरात से लेकर बंगाल तक भारत के एक होने का मतलब भी यही है कि भले ही देश के हर कोने में स्थानीय भाषा का बोलबाला और हिन्दी का मुँह काला हो मगर – ‘सरकाई लो खटिया जाड़ा लगे’ का रचनात्मक अर्थ गली-गली में लोग बखूबी जानते हैं। जन-गण-मन अधिनायक से ज्यादा आरेला ए, जारेला ए, खारेला ए, पीरेला ए, खाली-पीली बोम मारेला ए जैसी उच्चकोटि की शब्दावली देश के हर गली-कूचे में आसानी से समझ ली जाती है। हमारे मध्यप्रदेश में भी आरिया हे, जारिया हे किस्म की हिन्दी का प्रचलन है, इसमें माँ-बहनों से निकटतम गुप्त संबंधों की खुली चर्चा साथ में और नत्थी कर हिन्दी की प्रतिष्ठा में अरसे से चार चाँद ठोके जा रहे हैं।
    हिन्दी आन्दोलन चल रहा है, चल रहा है, चलता चला जा रहा है, मगर पान-ठेलों, चौक-चौराहों, टी.वी., सिनेमा, सांस्कृतिक केन्द्रों, सरकारी गैर सरकारी दफ्तरों से लेकर संसद तक रोजाना इस अबला की अस्मत तार-तार होती रहती है। साल का एक पखवाड़ा मुकर्रर है, बीच बाज़ार में इसे घायल पड़ा देखकर मातमपुर्सी करने के लिए। जिसे मर्ज़ी हो मातमपुर्सी करे या फिर चाहे तो नजरें बचा कर निकल जाए।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति ,

    एक बार इसे जरुर पढ़े, आपको पसंद आएगा :-
    (प्यारी सीता, मैं यहाँ खुश हूँ, आशा है तू भी ठीक होगी .....)
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_14.html

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  2. देश के भाषा विशेषज्ञों का तो दुनिया में कोई सानी ही नहीं है। उन्होंने हमेशा चौकस रहते हुए इस बात का ध्यान रखा कि कैसे हिन्दी को ना समझ में आने वाली क्लिष्टतम भाषा बनाए रखा जा सके ताकि लोग अपनी राष्ट्र भाषा को जन्म-जन्मान्तर तक समझ ही ना पाएँ और इससे बिदककर अंग्रेजी की शरण में जा खडे़ हों।
    बिलकुल सही कहा आपने। आज कल के पढे लिखे तो बस इसे कठिन जान कर ही बिदक जाते हैं। धन्यवाद।

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  3. वैसे ताबूत पर सभी कीलें राजनीतिबाजों ने ठोकीं थीं जो अंग्रेजी को हटाकर हिन्दी को नहीं ला पाये...

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  4. सच कहा आप् ने इन्ही बातो ने हिन्दी की खटिया खाडी करने की पुरी कोशिश की है, धन्यवाद

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  5. इस बंटाधारिता में सभी का सम्मलित प्रयास है।

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  6. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

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  7. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

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