रविवार, 17 अक्तूबर 2010

बुराई का शतशिख रावण उर्फ ‘शतानन’

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
आज दशहरा है। राजतंत्रीय सत्ता व्यवस्था के दौरान अयोध्या के राजकुमार की लंका के राजा पर जीत का ऐतिहासिक दिन। उस युग के इतिहास को लेकर परम्परावादियों और वैज्ञानिक इतिहासकारों में हालाँकि भारी सिर फुटव्वल है, परन्तु ऐतिहासिक सत्यों से निरपेक्ष हम लोग एक क्षत्रिय योद्धा के हाथों एक प्रकाण्ड पंडित की मौत का जश्न जोर-शोर से मनाते हैं। किसी को जान से मारकर खुशियाँ मनाने की परम्परा शायद उसी दिन से प्रारम्भ हुई है। आज के ज़माने में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के तहत ऐसी हत्याएँ कर खुशियाँ मनाने को अनैतिक माना जा सकता है। हत्या करके आप उसे वध घोषित करवा लें कानूनों में ऐसी भी कोई धारा नहीं है। किसी दूसरे के देश में घुसकर कोई किसी राजपुरुष को मार आए तो इंटरपोल भी उसको पकड़कर काल कोठरी में डाल देगी, डंडे मारेगी सो अलग।
बहरहाल, अपने चारों ओर हजारों बुराइयों से रोज साक्षात्कार करते हुए, साल में एक बार हम बुराई के प्रतीक रावण का पुतला फूँककर खुश होते हैं। एक दूसरे से गले मिलते हैं, बधाइयाँ देते हैं, खीर-पूरी खाते हैं। रावण की एक गलती के बहाने उसकी तमाम विद्वता को आग में झौंक आते हैं, और लंका से लूटे हुए स्वर्ण (शमी के पत्ते) टुकड़ों को आपस में बाँटकर दाँत निपोरतें हैं।
जीव वैज्ञानिक कौतुहल की अनोखी मिसाल जो अब तक शोध एवं अनुसंधान से बची हुई है, रावण की दस खोपड़ियाँ हमेशा हमें यह समझाने के लिए इस्तेमाल होती आईं हैं कि – देखो रे, बुराई ऐसी होती है। हर साल रावण के पुतले में बम-पटाखें भरकर, उसके आतिशबाजीपूर्ण भस्म-संस्कार के ज़रिए हमें याद दिलाया जाता है कि -देखों बच्चों, बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती है। रावण हमेशा मरता है। हम आश्वस्त होते हैं कि हाँ, चूँकि रावण सचमुच में मरा था इसलिए समाज में व्याप्त बुराइयाँ भी एक ना एक दिन ज़रूर मरेंगी। भले ही हमसे चूहा भी ना मरता हो, मगर हम बुराइयों के दशानन को एक ना एक दिन ज़रूर मार गिराएँगे, बस एक अदद मर्यादा पुरुषोत्तम भर दोबारा पैदा हो जाए। हमें पता है, आखिर वह मर्यादा पुरुषोत्तम कितनी योनियों तक, कब तक यहाँ-वहाँ भटकता रहेगा, एक ना एक दिन तो हमारे देश के किसी कुलीन घर में जन्म लेगा ही, तब हम देखते हैं कि बुराइयों का यह रावण कैसे जिन्दा रहता है। हम हाथ पर हाथ धरे निश्चिंत बैठे इंतज़ार कर रहे हैं कि चोर-डाकुओं, टुच्चे-स्वार्थियों, ठगों-बेईमानों, माफिया सरगनाओं, राजनैतिक दलालों के बीच से कोई करिश्माई मर्यादा पुरुष आविर्भूत हो और हमें बुराई के इस दशानन से मुक्ति दिलाए।
दरअसल हमारे देश में बुराइयों का जो थोक जमावड़ा है, रावण के दस सिर उसके सामने बच्चे हैं। वह ‘शतानंन’ है, सौ सिर वाला, उसे दशानन का ‘बाप’ कहा जा सकता है। ऐसे किसी प्राणी की दुनिया भर के पौराणिक साहित्य (माफ कीजिए हमारे पुराण बाकी दुनिया को कवर नहीं करते फिर भी) में कोई मिसाल नहीं है। किसी धर्म के फैन्टेसीकारों ने ऐसे जन्तु की कल्पना नहीं की जिसके सौ सिर हों और हरेक की अपनी विशेषताएँ हों, मगर हमारे देश में बुराइयों का ‘शतानन’ अच्छा खासा विराट और अपने आप में फुलप्रूफ है । एक-एक सिर पर पूरी-पूरी एक ओरीजनल थिसिस लिखी जा सकती है।
रावण के दस सिर तो पता नहीं आपस में किस विधि से जुडे़ हुए थे। अस्थि, मज्जा और तंतुओं की जाने कौन सी संरचना उस वक्त अस्तित्व में थी जो पाँच-पाँच किलो के दस सिरों को मजबूती से गरदन पर टिकाए रखती थी और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के विरुद्ध रावण उसे कैसे सम्हाले रखता था, यह सब जीव विज्ञान और भौतिकी के प्रश्न अपनी तो समझ से बाहर हैं, परन्तु ‘शतानन’, दशानन के ‘बाप’  को हमारे कर्णधारों ने पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के मजबूत, मोटे रस्से में पिरोकर नरमुंड माला की तरह राष्ट्र के गले में लटका रखा है और हज़ारों देशभक्त अपनी-अपनी तरह से, पूरी शिद्दत के साथ इसकी रक्षा कर रहे हैं। मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है कि उक्ति का प्रमुदित भाव से सुख लेते हुए सब के सब ‘शतानन’ की सेवा में लगे हुए हैं। बुराइयों का सौ सिर वाला रावण लोगों का जीना हराम किये हुए है। महँगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, जमाखोरी, कालाबाजारी, लूट-खसोट, गुंडागर्दी, शोषण, उत्पीड़न, दमन, अत्याचार, दुराचार आदि-आदि अठ्यासी और भी बुराइयाँ देश में अपने चरम पर हैं। रोज कई-कई ‘जानकियों’ को उठाकर ले जाया जा रहा है, बलात्कार हो रहे हैं, कत्ल हो रहे हैं, मगर कोई बुराई पर अच्छाई की जीत का आकांक्षी नहीं है। सब वानर सेना की भांति पेट की आग बुझाने की फिक्र में अपना ही चमन उजाड़ने में लगे है।
आलू-प्याज भले ही कभी ना काटे हो मगर दशहरे के बहाने कुछ वीर-शिरोमणि अपने अस्त्र-शस्त्रों को तेल-पानी देते हैं, उनपर लगी जंग की साफ-सफाई कर पूजा इत्यादि करते हैं। उनके ये अस्त्र-शस्त्र बस पूजा भर के काम के होते हैं, कभी इस्तेमाल का मौका आ जाए तो इन सूरमाओं की फूँक सरक जाए। जानते हुए भी कि शतशिख बुराइयों का यह रावण लातों का भूत है बातों का नहीं, अपन ने तो अस्त्र-शस्त्र के रूप में ‘कलम’ का चुनाव किया है। इसकी हम पूजा करें या ना करें यह बुराइयों के इस रावण पर चलती रही है और चलती रहेगी। आमीन।
28.09.2009 को जारी अपने अन्य ब्लॉग व्यंग्य से लेकर पुनर्प्रकाशित

7 टिप्‍पणियां:

  1. विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें।

    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (18/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  2. आजकल के रावणों को देखकर दशानन तो शर्म से मर गया होता।

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  3. sach kaha pramodjee! is liye ham aapke kaayal hai jin vicharon ka shbdankan hamaare liye durapast unhe aap vyang me dhaalkar kar rakh dete hai.Simply great !!

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  4. आजकल तो शतानन चहुँ ओर विराजमान है दशानन की क्या बिसात ..

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  5. bahut achha pramodji(Guruji), sam,dam, bhed danda sabhi vidhaon ka uchit prayog karke, ayodhya ke yuvraj ram ne, lanka ke raja, maha pandit ravan ko mar dala (halaki ki ye mahakvyaon ke patra hain), ham aajtak uska jasn manate hain. ek african proverb hai, "as long as lions dont have their own historians, history shall go on eulogiging the hunter". valmiki aur tulsidas hunter ke historians hain, lekin unhi ke varnanaon ko mana jaye aur ram-ravan ke charitron ki tulna kiya jaye to, varnasharam vyavastha ke poshak, vistarvadi, narivirodhi ram ki tulan me intellectually and morally ravan ka charitra ram se kafi uncha hai. achhai buarai ke is khel me ham kis tarah ki vichardhara ke shikar hain? shambuk namak shudra tapsya kar raha tha to raja ram ko khud use marne jana pada, yah alag bat hai ki varn nirdharan karm par hota hai.ram ravn episode bush-saddam episode ki yad dilata hai, ho sakta hai, hajaron sal bad kimbadantion ke roop men yah kahani kisi novelist ko BUSHAYAN (ramayan ki tarj par)likhne ki prerna de aur bhagvan bush har sal dusht saddam ki hatya karke achhai ki burai par jit ki yaden taja karen. Bhagvan ram ki jay ho, bhavi bhagvan bush ki jay ho, achhai burai ka nash kare bhishan yuddhon ke jarie aur parivar niyojan vibhag ko berojgar kar de.

    P.S. yah raj ki bat Chidambaram ko mat bataiyega nahi to vah sochne lagega agar ram, kayartapurna dhokhe se bali ko mar kar aur vibhishan ko fodkar ravan rupi burai ka nash karke bhagvan ban sakta hai to dhokhe se vidvan maovadi Cherikuri rajkumar Azad ko kayartapurna dhoke se markar bhavi bhagvan banae ke sapne dekhne lagega.

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  6. 4/10


    ठीक-ठाक / औसत
    व्यंग की धार गायब सी है

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  7. वाह क्या बात है प्रमोद जी । उसको जलाने के वहाने सारी विव्दता झोंक आते है।बुराइयों का थोक जमावडा बहुत अच्छा शव्द चयन किया है

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