गुरुवार, 4 नवंबर 2010

खुशियाँ आएँगी द्वार


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
नईदुनिया में प्रकाशित
            खुशियाँ आएँगी द्वार, बस दो दिन और इंतज़ार। ये दिवाली के खास मौके पर लोगों की जेब कतरने की प्रेरणा के साथ शीघ्र ही प्रारम्भ होने वाले एक ट्रेड फेयर की टेग लाइन है। ट्रेड फेयर आपको यह सुविधा देता है कि आप ने साल भर में जो कुछ भी कमा-जमाकर रखा है उसे आप यहाँ आकर एक झटके में गँवा दें। ऐसे में यह आसानी से समझा जा सकता है कि वास्तव में खुशियाँ किसके द्वार आएँगी।
            आजकल खुशियाँ आती हैं कार, मोटर-साइकिल, टी.वी., फ्रिज और दीगर इलेक्ट्रानिक आयटमों के रूप में। फर्नीचर, हाउस होल्ड्स एवं किचन एप्लायसेंस, मॉड्यूलर किचन वगैरह-वगैरह भी आपके लिए रेडीमेड खुशियाँ लेकर आ सकते हैं, बशर्ते आप की जेब में पर्याप्त पैसा हो। जिनकी जेब में पैसा नहीं है उन्हें खुश होने का अधिकार कतई नहीं है, उनके द्वार खुशियाँ आने से रहीं। हाँ, अगर कोई बैंक मेहरबानी का पुलंदा आपके सिर पर मारने के लिए तैयार हो जाए तो आप लोन लेकर अपने द्वार खुशियाँ लाकर खड़ी कर सकते हैं, बशर्ते आपमें जीवन भर मूल और ब्याज का गणित समझने और लुटने का माद्दा हो। आपने अगर उधार लेकर घी पीनेका आदर्श आत्मसात कर रखा है तो फिर कोई बात ही नहीं है।
            खुशियों के स्वरूप में कितना परिवर्तन हो चला है। पहले वे पंचाग की तिथि या कैलेन्डर की अँग्रेजी तारीख के साथ चली आती थीं। तिथि पड़ी की खुशियाँ खुद ब खुद चलती हुई आ खड़ी हुईं। घर सज गया, बदनवार बँध गए, मिठाइयाँ बन गई और घर-परिवार, पास-पड़ोस, नाते-रिश्तेदार, यार-दोस्त जो इकट्ठे हुए कि खुशियाँ लाइन लगाकर चली आईं। कोई अतिथि आ गया तो उसके पीछे-पीछे खुशियाँ हँसती खिलखिलाती चली आती थीं। लड़की मायके आ गई या ससुराल में दामाद, खुशियाँ धूम-धड़ाका करती हुई आ विराजीं। प्रेमी के घर प्रेयसी आ गई या प्रेयसी के घर प्रेमी आ गए.......ओय होय होय होय............खुशियों का सैलाब आ गया। मगर अब, त्योहार हो और आप किसी के घर हाथ हिलाते हुए पहुँच गए कि खुशियाँ ठिठक कर दरवाजे के बाहर ही खड़ी हो जाएँगी। पीठ पीछे ताना और सुनने को मिलेगा चले आए कम्बख्त मुँह उठाकर, खा-पी और गए।
            अर्सा हुआ, खुशियाँ धर्मनिरपेक्ष हुआ करती थी, जाति, भाषा, प्रांत-निरपेक्ष हुआ करती थी। अब वे दिन लद गए। तुम मुस्लिम हो, तुम्हारी ईद की खुशियाँ हमारे घर में नहीं घुसना चाहिये। तुम हिन्दू हो, होली-दिवाली की खुशी अगर इधर हमारे मोहल्ले में नज़र आईं तो हम देख लेंगे। क्रिसमस है, अपनी खुशी अपने घर में रखो मिस्टर। कोई मुसलमान किसी हिन्दू के घर सिवई लेकर पहुँचे, कोई हिन्दू अपने मुस्लिम मित्र के घर गुझिया लेकर पहुँच जाए, या क्रिश्चन भाई घर का बना केक लेकर दरवाजे पर खड़ा हो तो खुशियाँ बड़ी ना-नुकर के बाद घर में घुसेंगी। मगर बाज़ार का प्रताप देखिए, यदि इनमें से कोई भी किसी के घर एक महँगा सा आधुनिक गिफ्ट लेकर पहुँच जाए तो खुशियाँ फिर देखिए कैसे चट चट चट अंदर चली आएँगी, और तो और गला-मिलन भी करवा देंगी। खुशियों की कीमत महज दो सौ, पाँच सौ, हजार-पाँच हज़ार रुपए........., बाजार ने इसे खूब पहचाना है इसलिए वह चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है-खुशियाँ आएँगी द्वार, बस दो दिन इंतज़ार। उसे पता है, असल खुशियाँ खो चुके समाज की औकात इससे ज़्यादा नहीं है।
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4 टिप्‍पणियां:

  1. बाजार ने खुशियों के मानक बदल कर रख दिये हैं।

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  2. वाह रे ख़ुशी . सुंदर प्रस्तुति . दीपावली के शुभ अवसर पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें

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  3. आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को दीपावली पर्व की ढेरों मंगलकामनाएँ!

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  4. आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
    मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ

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