मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

यू.पी. में जंगलराज - व्यंग्य

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
        ‘‘यू.पी. में जंगल राज, यू.पी.में जंगल राज’’, सारे टी.वी. चैनल चिल्ला रहे थे, सुनकर जंगल में ज़बरदस्त असंतोष फैल गया। जैसे-जैसे टी.वी. पर हिंसा, हत्या, बलात्कार, लूट, अपहरण की घटनाओं का जीवन्त चित्रण करते हुए समाचार दिखाए जा रहे थे, वैसे-वैसे जंगल के सारे जानवर एक पेड़ के नीचे एकत्र होकर रोष प्रकट कर रहे थे। काफी हल्ला-गुल्ला मच चुकने के बाद जंगल के राजा शेर ने वहाँ आकर एक ज़ोरदार दहाड़ मारी जिसका मतलब था-‘‘ऑर्डर ऑर्डर’’, तब जाकर  जंगल के आक्रोशित जानवर खामोश हुए। इस खामोशी को तोड़कर शेर ने सबको डपटते हुए पूछा-क्या है रे, क्यों तुम लोग असमय यहाँ इकट्ठा होकर हल्ला-गुल्ला मचा रहे हो ?’’
       शेर का सवाल सुनकर एक साहसी खरगोश ने आगे आकर कहना चालू किया-‘‘महाराज, आजकल टी.वी. रात-दिन एक ही बात ‘‘यू.पी. में जंगल राज’’, ‘‘यू.पी. में जंगल राज’’ दोहराता रहता है, जो कि जंगल राज का बहुत ही गलत इन्टरप्रिटेशन है। यू.पी. में जो कुछ भी चल रहा है वह हमारे जंगल में न तो पहले कभी हुआ और न आगे होगा।
       शेर बोला-‘‘कहाँ है यह यू.पी.! और वहाँ चल क्या रहा है जिसकी तुलना जंगल राज से की जा रही है ?
एक बंदर ने आगे आकर बोलना शुरू किया-‘‘महाराज, यू.पी. इन्डिया में है और वहाँ पर रोज़ाना हिंसा, गुंडागर्दी, लूटपाट, अपहरण और हत्या की घटनाएँ हो रहीं हैं।’’
       बंदर के चुप होते ही एक बंदरिया बोल पड़ी-‘‘और बलात्कार को क्यों भूल रहा है तू ? जनता के चुने हुए प्रतिनिधि बलात्कार कर रहे हैं, एक नारी के राज में नारी संकट में है।’’
       खरगोश फिर बोलने लगा-‘‘हमारे जंगल में महाराज, आप और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते हो, मगर यू.पी. में तो आम आदमी का जीना मुश्किल हो गया है। ये टी.वी. वाले अराजकता के इस राज को जंगल राज बता रहे हैं, यह हमारा और हमारे राज्य का सरासर अपमान है।’’
       एक हिरण बोला-‘‘महाराज, हमारे जंगल में तो दुष्ट से दुष्ट जानवर भी ऐसी गिरी हुई हरकत कभी नहीं करता, तब इन लोगों की हिम्मत कैसे हो रही है यू.पी. की तुलना जंगल से करने की! हमें कोई सख़्त कदम उठाना चाहिये।’’
       शेर ने सबकी बातें धैर्य से सुनने के बाद अपने राजनीतिक सलाहकार चिंपाजियों से पूछा-‘‘साथियों, बताओ, इन्डिया के साथ हमारी इस तरह की कोई राजनैतिक संधि है जिसके अन्तर्गत हम इन्डिया गोरमेंट के सामने अपनी आपत्ति दर्ज करा सकें, कि जंगल का यह अपमान नहीं किया जाना चाहिए !
       सलाहकारों ने अपना सिर खुजाना चालू कर दिया। सारे जानवर इंतज़ार करते रहे कि सर में से अब कुछ निकले कि तब कुछ निकले, मगर दोनों सलाहकार बस ज़ोर-ज़ोर से सर ही खुजाते रहे। यह देखकर शेर को गुस्सा आ गया, वे ज़ोर से दहाड़े-‘‘मूर्खों, हर समस्या पर सर क्यों खुजाने लगते हो? सलाहकार दहाड़ सुनकर कॉप उठे और हकलाते हुए बोले-महाराज इन्डिया के साथ हमारी कोई भी संधि हो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, क्योंकि यू.पी. में जिन मायावी बहनजी का राज है वे किसी खाँ की नहीं सुनतीं। हमारे लिए सबसे दुख की बात यह है कि बहनजी ने एक ‘हाथी’ पाल रखा है जो कि हमारा ही एक भाईबन्द है, मगर जंगल में सबके साथ हिल-मिलकर रहने वाला वह ‘हाथी’ सत्ता के नशे में चूर होकर आम जनता को अपने पैरों तले रोंद रहा है। अब अगर आप कोई आपत्ति दर्ज कराओगे तो इन्डिया गोरमेंट ‘हाथी’ को आगे कर देंगी और कहेगी हम क्या करें तुम्हारा ही भाईबन्द है।
       हाथी का नाम सुनकर जंगल के राजा की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई, उसने हकलाते हुए अपनी प्रजा से कहा-‘‘देखा, वह नालायक वहाँ जाकर ऊधम कर रहा है। अब जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो अपन क्या करेंगे! चलो जाओ, सब लोग अपनी-अपनी गुफा में जाकर आराम करो, और किसी को यह यू.पी. की खबरें देखने की ज़रूरत नहीं है, वर्डकप चालू होने वाला है, बैठकर चुपचाप चैनलों पर चल रही बकवास का आनन्द लो।
       सारे जानवर आज्ञाकारी प्रजा की तरह चुपचाप अपनी-अपनी माँद में जाकर टी.वी पर क्रिकेट सम्बंधी प्रसारण देखने लगे। 

15 टिप्‍पणियां:

  1. सही कटाक्ष मारा है आपने, पर यू.पी. के जंगल राज का खात्मा कभी होगा ही नहीं

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  2. सच में जंगल के भी कुछ नियम कायदे होते हैं....पर यू.पी.तो जंगल से भी बदतर है.

    व्यंग्य रूप में वास्तविकता का बहुत ही अच्छा चित्रण.

    सादर

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  3. Namaskar Tambat Ji.
    Yoopee me jangleraj vyang nahi,haqikat hai,jis-se roobaroo karane hetu hardik sadhuwad.
    -Suresh Agrawal
    Kesinga(Odisha)

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  4. जितना तारीफ़ करें उतना कम है. बहुत करारा मारा.खास कर यह दिल को छू गया..

    अब जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो अपन क्या करेंगे! चलो जाओ, सब लोग अपनी-अपनी गुफा में जाकर आराम करो, और किसी को यह यू.पी. की खबरें देखने की ज़रूरत नहीं है, वर्डकप चालू होने वाला है, बैठकर चुपचाप चैनलों पर चल रही बकवास का आनन्द लो।

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  5. बहुत जबरदस्त!!

    जंगल राज का बहुत ही गलत इन्टरप्रिटेशन है-सच कहा!!

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  6. सही कहा आपने- अपना ही सिक्का खोटा.

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  7. बताईये, पूरी कथा में जंगल बदनाम हो गया।

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  8. अगर किसी ने सच मुछ मे नर्क देखना हो तो यू.पी. चला जाये, ओर थोडे दिन वहां रक कर दिखाये... अजी जंगल राज से भी गया गुजरा हो गया हे यह राज...

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  9. व्यंग्य का सहारा लेकर अपनी बात रखना भी एक कला है , सुंदर रचना बधाई

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  10. प्रमोद जी!
    आपने बहुत ही सटीक और सार्थक व्यंग्य के माध्यम से
    पीड़ा जाहिर की है!
    यही तो साफ-सुथरे व्यंग्य की विशेषता होती है!

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  11. dada,
    sahi likha hai apne.
    hum kb tk insan bane
    rahne ka dhong karte
    rhenge.aap ek kushal
    vyangkar hain,isme do
    mt nahi hain.
    mujhe prerit
    karne ke liye shukriya dada.

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