शनिवार, 26 मार्च 2011

जापान में सुनामी

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
          जापान में आए भूकम्प और सुनामी में हुए जान ओ माल के नुकसान को देखकर अपना तो क्या अच्छे-अच्छे पापियों का भी मुँह बंद है। आदत के विपरीत लोग सोचने लग पड़े हैं कि अगर अपने भी देश में इस तरह की विपदा आन पड़ी तो क्या होगा। ऐसे मामलों में लोग सरकार पर, चाहे वह कितनी भी ‘काबिल’ क्यों न हो, जाने क्यों अविश्वास करते है! विश्वास करें भी कैसे! जापान में फुकुशिमा परमाणु संयंत्र की भट्टियाँ परमाणु बम की तरह उड़ जाने से उपजी परिस्थितियों से सबक लेने की नीयत से कुछ दिन पहले मुम्बई में सम्पन्न हुई एक हाईप्रोफाइल कान्फ्रेंस में जिस तरह मंत्री और विधायक खुर्राटे लेते नज़र आए, उससे भले ही यह गलतफहमी हो कि हमारे नेतागण कितने ग़ज़ब के सेवाभावी हैं, सोते हुए भी जनता की चिन्ता करते हैं, लेकिन आम आदमी के पास दूसरी ढेरों ऐसी वजहें हैं जिनके कारण ऐसी आपदाओं के समय वह सरकार पर ना चाहते हुए भी अविश्वास करने पर मजबूर है। मोहल्ले में एक छोटी सी आग लग जाने पर हमारे देश में जिस तरह सैकड़ों नखरों के बाद तीन घंटे की न्यूनतम देरी से फायर बिग्रेड की एक अदद गाड़ी राख के ढेर से चिन्गारियाँ बुझाने आया करती है, अगर भूकम्प या सुनामी आ जाए, परमाणु हादसा हो जाए तो इस अनुभव से तो हम दावे के साथ कह सकते हैं कि भले ही उत्तरी अमेरिका से रेस्क्यू टीम भारत आ जाए परन्तु हमारी फायर बिग्रेड कभी आएगी ही नहीं।
            जापान की प्राकृतिक त्रासदी से (अभी हम इंतज़ार कर रहे हैं कि कोई राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय एन.जी.ओ. इसे मानव निर्मित त्रासदी साबित करे) कुछ दिन स्तब्ध रहने के बाद पैसा उगाने वाले दुनिया भर में अब तक जाग चुके होंगे। कुछ तो स्तब्ध हुए ही नहीं होंगे बल्कि पहले ही दिन से टी.वी. पर त्रासदी की तस्वीरें देख-देखकर कमाई की संभावनाएँ टटोलने में लग गए होंगे। जैसे ‘कबाड़ी’। विकासशील देशों में कबाड़ी होते हैं या नहीं पता नहीं लेकिन हमारे जैसे देश में तो कौन कबाड़ी ऐसा होगा जिसकी, इतनी बड़ी मात्रा में ‘कबाड़’ देखकर बाँछे न खिल गईं हों। कबाड़ भी मामूली लकड़ी, लोहा-लंगड़ भर का नहीं, टी.वी. फ्रिज, इलेक्ट्रॉनिक आयटम, कम्प्यूटर, इंपोर्टेड लक्झरी गाड़ियों यहाँ तक कि हवाई जहाज़ों और पानी के जहाज़ों तक का कबाड़। ऐसा बेशकीमती कबाड़ दुनिया के किसी देश में मिलने वाला नहीं है चाहे कितनी बड़ी उथल-पुथल हो जाए। मेरा खयाल है कि अब तक तो बहुत सारे कबाड़ी पासपोर्ट, वीज़ा दफ्तरों की ओर दौड़ लगा चुके होंगे। हसन अली जैसे बडे़ कबाड़ी तो हो सकता है टोकियों पहुँच भी गए हों।
         जापान में बरबादी का दौर अभी थमा नहीं है, मगर दुनियाभर की कन्स्ट्रक्शन कम्पनियाँ और अन्तर्राष्ट्रीय ठेकेदार जापान को फिर से खड़ा कर देने के लिए उतावले होने लग पड़े होंगे। विभिन्न देशों की सरकारें जापान के साथ अपने मधुर संबंधों की टोह लेने लगी होंगी ताकि वक्त ज़रूरत अपने देश की ठेकेदार फर्मों की मदद कर सकें। एस्टीमेट बनने लग गए होंगे, टेंडरों की चिन्ता दुनिया की सबसे बड़ी चिन्ता के रूप में आकार लेने लगी होगी। भिन्न-भिन्न दलाल सक्रिय होकर मालामाल होने की जुगाड़ें लगाने लगे होंगे। कुछ एजेंसियाँ तो जापानी मंत्रियों-अफसरों की खरीद फरोख्त का ठेका लेने के लिए आतुर हो रही होंगी ताकि टेंडर मनचाही फर्मों के पक्ष में खुल सकें। जापानियों के दुख में कुछ दिन सहभागी बने रहने का धैर्य इन लक्ष्मी उपासकों के पास कहाँ, वे आँखों में अथाह कमाई का लालच लिए जापान के पुनर्निर्माण की बाट जोहने लगे होंगे जबकि जापान अभी ढंग से मातम भी नहीं मना पाया है।

16 टिप्‍पणियां:

  1. "हमारे देश में जिस तरह सैकड़ों नखरों के बाद तीन घंटे की न्यूनतम देरी से फायर बिग्रेड की एक अदद गाड़ी राख के ढेर से चिन्गारियाँ बुझाने आया करती है, अगर भूकम्प या सुनामी आ जाए, परमाणु हादसा हो जाए तो इस अनुभव से तो हम दावे के साथ कह सकते हैं कि भले ही उत्तरी अमेरिका से रेस्क्यू टीम भारत आ जाए परन्तु हमारी फायर बिग्रेड कभी आएगी ही नहीं।"

    बिलकुल सही बात कही आपने सर!
    वैसे आज के हिन्दुस्तान में एक तस्वीर छपी है कि जापान में हाइवे की एक सड़क को वहां की कम्पनी ने ६ दिन के अंदर पहले जैसा बना दिया जबकि हमारे देश में सालों से सड़कें खुदी पड़ी रहती हैं बनना तो दूर की बात है.

    बेहतरीन व्यंग्य!

    सादर

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  2. शायद हकीकत को ही व्यंग्य के नाम से आपने लिखा है.

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  3. बढ़िया बात कही आपने.. सोलह आने सच..

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  4. व्यंग के रुप में वास्तविकता का चित्रण । उत्तम...

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  5. कैसा भी खतरनाक व्यंग्य हो , हमारे देश की वास्तविकता ही बयान करता है ...मगर सिर्फ सरकार क्यों , आम जनता भी कम दोषी नहीं !

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  6. शानदार व्यंग्य।
    ..आनंद आया पढ़कर। खासकर अंतिम पैरा कलम तोड़/बेजोड़ है।

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  7. बेहतरीन व्यंग्य... विअसे ये तो सच्चाई है फ़िर व्यंग्य...???
    परन्तु बहुत ही सटीक चित्रण है...
    यही तो मानव-शास्त्र है...

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  8. आज का यथार्थ ही व्यंग्यात्मक हो गया है

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  9. बहुत सुन्दर व्यंग कसा है आपने. मेरी बधाई स्वीकारें -अवनीश सिंह चौहान

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  10. कबाड़ के व्यापारी ही भारत को विकसित देशों का कचरा घर बना रहे हैं।

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  11. बहुत ही अच्छे तरीके से सच्ची बात कही है आप ने , लेकिन हमारी सर्कार कुम्ब्करण से भी गहरी नीद में सोती है उसे कोई असर नहीं होने वाला यह मेरा वादा है.............जोली अंकल

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  12. लहर गिन कर पैसा बनाने वाली क्ॐएं तो दुनिया की हर मुल्क में हैं..वो निश्चित ही लगे होंगे...

    लेकिन व्यंग्य सही दिशा में साधा है. बधाई.

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  13. pramod ji aapne media ko kaise chhod diya??na jane kitane media channel raton rat nayee juni kahaniyan bana kar logo ke dukh dard ki dastan cheekh cheekh kar sunayenge....aur vahi hamare yaha ki kisi bhi trasadi ko satta ya vipaksh ke ishare par prakrutik ya manav nirmit bana kar pesh kar denge....bas jitana meetha party chahe utana gud tayyar rakhe...bahut badiya kataksh kiya hai aapne....

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  14. आदरणीय प्रमोद जी,
    हकीकत बयानी बड़े ही प्रभावशाली तरीके से शुरू हुई, लेकि‍न लगा कि‍ शायद आपने पोस्‍ट की लम्‍बाई बढ़ ना जाये और पाठकों की जम्‍हाई के भय से उसे अंजाम तक पहुंचाये बि‍ना ही नि‍पटा दि‍या। खैर।
    आदमी का कमीनापन आंसुओं में भी स्‍वाद ढूंढ लेता है, ये आप बड़ी खूबसूरती से बयान कर रहे थे, और.... और भी बहुत कुछ उदघाटि‍त कि‍या जा सकता था।

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