//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
कहा जाता है कि ‘हमाम में सब नंगे हैं’, लेकिन इस कहावत का कोई वस्तुनिष्ठ आधार नहीं है, जबरन इसे ‘हमाम’ और ‘नंगों’ पर थोपा जाता है। वास्तविकता तो यह है कि नंगे तो सब बाहर घूम रहे हैं, उन्हें झूठ-मूट ही हमाम के अन्दर बताने की साजिश की जा रही है।
इस बात के लिए प्रमाण की कोई आवश्यकता नहीं है कि-सारे नंगे, नंग-धडंग हालत में हमाम के बाहर घूम रहे हैं, क्योंकि कानून के मुताबिक उन्हें तो वास्तव में जेल की कोठरी में होना चाहिये था, परन्तु चूँकि वे जेल में नहीं हैं इसलिये यह स्वयं सिद्ध है कि वे बाहर ही घूम रहे हैं। चूँकि गली-गली, शहर-शहर नंगे नाच का शर्मनाक प्रदर्शन करने वाले सभी नंगे जेल की हवा में ना होकर ठाठ से खुले घूम रहे हैं इसलिये जाहिर है कि ‘हमाम’ में यदि सचमुच कोई मौजूद है तो वह ‘नंगा’ नहीं, कोई और ही हैं।
हमाम में अगर नंगे नहीं तो फिर कौन हो सकता है, यह एक राष्ट्रव्यापी गंभीर प्रश्न है जिस पर समग्र राष्ट्र के बुद्धिजीवियों को चिंतन करना अत्यंत आवश्यक है। मुझे लगता है कि बाहर नंग-धडंग हालत में घूम रहे सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दुनिया के बड़े-बडे नंगों से घबराकर वे सारे लोग जिन्होंने शरीर पर शराफत के कपड़े पहन रखे है, हमामों में जा छुपे हैं ताकि नंगों के बीच रहकर उन्हें कोई शर्मिंदगी न उठाना पड़े और वे अपने छोटे-परिवार सुखी परिवार के साथ सुखपूर्वक रह सके और उनपर नंगों को कपड़े पहनाने का कोई नैतिक दायित्व भी न आ लदे।
आप हमाम के आस-पास चुपचाप हाथ बाँधे खड़े रहिये तो देखेंगे कि हमाम के अंदर आपको जाता हुआ तो कोई नंगा दिखाई नहीं देगा परन्तु बीच-बीच में हमाम के अन्दर से निकल-निकलकर नंगों में शामिल होते कई साफ-सुथरे कपड़ों वाले अक्सर दिखाई देते रहेंगे। यह बड़ी चिंता का विषय है कि जिन वस्त्रधारियों को नंगों को वस्त्र पहनाने की जिम्मेदारी निभाना थी वे सब मुँह ढापे हमाम में जा छुपे हैं और उनका दबेपॉव चुपचाप निकल-निकलकर नंगों में शामिल होने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। यही चलता रहा तो इस देश का क्या होगा।