मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

पायलेटी का फर्ज़ी लायसेंस


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
             जब से पायलेटों के साहस, शौर्य और पराक्रम की गाथा सुनी है, हवाई जहाज़ों की उड़ानें किसी हॉरर फिल्म की तरह रोज़ रात को बारबार सपने में आती हैं। हमारी खुशकिस्मती है कि हवाई ज़हाजों से फेरे लगाने की हमारी औकात नहीं, वर्ना फर्ज़ी प्रमाणपत्रों के आधार पर हासिल किया गया पायलेटी का लायसेंस हमें कौन से समुद्र में मछलियों का चारा बनवा देता, कुछ कहा नहीं जा सकता।
          क्या पता कब ये फर्जी पायलेट बंधु हवाई नक्शा ना समझ पाने की मजबूरी में जहाज़ को कहीं रेगिस्तान में ही उतार देते और कहते कि यहाँ से पैदल घर जाओ। इससे भी खतरनाक यह हो सकता था कि वे गफलत में हवाई जहाज दिल्ली की जगह इस्लामाबाद में उतार मारते, खामोखां पोलिटिकल इश्यू खड़ा हो जाता। आई.एस.आई. वाले जेल में डालकर कोड़े लगाते और वर्ड कम्यूनिटी के सामने इल्ज़ाम जड़ते कि हिन्दुस्तान के व्यंग्यकार आजकल पाकिस्तान की जासूसी करके पेट पाल रहे हैं। यह भी अच्छा हुआ जो आज तक हमें किसी ने हवाई जहाज़ का मुफ्त का टिकट पकड़ाकर उन कम्बख्तों के हवाले नहीं किया जो फर्जी लायसेंस जेब में रखकर बेकसूरों को मौत के मुँह में लेंडिंग-टेकआँफ कराते आ रहे थे।
          फर्जीवाडे़ का यह किस्सा हमारे बब्बन खाँ ने जब से सुना तभी से वे अफसोस के मारे मुँह लटकाकर बैठे हैं कि भटसुअर’ (टेम्पों) का लायसेंस बनवाते समय दो-चार फर्जी कागज़ात और बनवा लेते तो हवाई जहाज़ का भी लायसेंस बन जाता। देड़ सौ की जगह दो सौ खर्च होते और दलाल लायसेंस घर पर देकर जाता सो अलग। फिर, है क्या हवाई जहाज़ चलाने में, जैसे गेर’, ‘किलच’, ‘एक्सीलेटर’, भटसुअर में होता है वैसा ही तो हवाई जहाज़ में भी होता होगा, और क्या।
          पायलेट की सीट पर सफेद ड्रेस में कसम से क्या दिखलौट लगते! सुना है उसमें खूबसूरत मोहतरमाएँ ईत्र-फुलेल लगाए बार-बार पायलेट कने चक्कर लगाती रहती है। यहाँ भटसुअर में दिन रात धूल-धुआ और डीज़ल की बदबू के साथ-साथ, आठ-आठाने के लिए सवारियों से झिक-झिक करते रहो और पुलिस वालों को हफ्ता खिला-खिलाकर खुद कंगले हो जाओ। हवाई जहाज़ चलाते तो आसमान में कैसे हफ्ता वसूली करती पुलिस ! एयर कंडीशन काकपिट में बैठकर बड़े-बड़े लोगों को दिल्ली से बम्बई, बम्बई से कलकत्ता, कलकत्ता से चेन्नई, लिये घूमते। थोड़े और पैसों की जुगाड़ करके इन्टरनेशनल पायलेटी का लायसेंस बनवा लेते, फिर न्यूयार्क से लन्दन, लन्दन से पेरिस, पेरिस से होनोलूल गोरी सवारियाँ लिये घूमते, कितना मज़ा आता।
          इन दिनों पर्यावरणविदों की कारस्तानी से भटसुअर बंद हो गए हैं और बब्बन खाँ शान्तिवाहनमें मुर्दे ढो रहे हैं। बनियान तोंद के ऊपर चढ़ाए ड्रायवर की सीट पर बैठे-बैठे वे बस एक ही बात सोचते रहते हैं कि शांतिवाहनही चलाना था तो उससे अच्छा हवाई जहाज़ ही चला लेते, क्या फर्क पड़ता, एक ही तो बात है। नकली कागज़ातों पर पायलेट बना शख्स हवाई जहाज़ उड़ाए तो वह शांतिवाहनसे कम कतई नहीं हो सकता, न जाने कब, कहाँ हवाई यात्रियों को स्थाई शांति दिलवा दें।

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