शनिवार, 9 अप्रैल 2011

मॉडल और विश्वकप

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
              हम विश्वकप क्यों जीत गए ! इसलिए क्योकि एक खूबसूरत मॉडल ने एक बहुत ही शौर्य, पराक्रम और साहसपूर्ण घोषणा कर दी थी कि वह भारतीय क्रिकेट टीम के सामने निर्वस्त्र होकर केटवॉक करेगी, अगर टीम विश्वकप जीत पाई। इसी लालच में टीम इन्डिया ने वानखेड़े स्टेडियम में अपने सारे अस्त्रों-शस्त्रों को धो-माँजकर, ऑइलिंग-ग्रीसिंग करके श्रीलंका के खूँखार चीतों को धूल चटा दी। उन्हें शायद यह डर भी रहा होगा कि यदि वे हारे तो कहीं यह सुनहरा अवसर श्रीलंकाई टीम को न मिल जाए।
            आप लोग मेरी बात को यदि गंभीरता से लें तो आपको एहसास होगा कि उस नादान मॉडल को निर्वस्त्र होने से बचाने के लिए भारतीय संस्कृति का तकाज़ा क्या था! किसी भी संस्कृति रक्षक से पूछ लीजिए, वह यही कहेगा कि भाड़ में गया विश्वकप स्त्री की लाज की रक्षा करने के लिए भारतीय क्रिकेट टीम को फायनल मैच हार जाना चाहिए था, ताकि वह मॉडल कपडे़ पहनी रहे, दुनिया के सामने स्त्रीत्व की मर्यादा कायम रहे। लेकिन, चूँकि भारतीय क्रिकेट टीम ने फालतू के आदर्शवाद में पड़कर मैच को हाथ से नहीं जाने दिया, इसका मतलब यही है कि पूरी टीम अपनी आँखें सेंकना चाहती थी।
           अंततः हुआ क्या पता नहीं चला, परन्तु धोनी का सिर संदिग्धता के दायरे में है, पता नहीं उन्होंने मुँडन कराया है या उनकी नई नवेली पत्नी ने इस प्रकरण की पृष्ठभूमि में उनके बाल नोचे हैं। बहरहाल, पब्लिक भी किस कदर खुश हो होकर तालियाँ पीट रही थी, शायद इसीलिए कि मॉडलों को कम कपड़े पहने हुए देख-देखकर बोर हो गए, अब कुछ नया देखने को मिलेगा।
           वाहियादी की भी हद है। एक लड़की, एक अश्लील प्रस्ताव रखती है और उसे एक तमाचा जड़कर बाप की भूमिका निभाने वाला देश में कोई नहीं। कानून के पास भी वह आँखें नहीं जो चौड़ी करके दिखाई जाने पर बिगड़ी हुई बच्चियाँ रास्ते पर आ जाएँ। कितनी बड़ी बिडंबना है कि इस युग में द्रोपदियों के तन से कपड़े खींचने के लिए किसी दुर्योधन की ज़रूरत नहीं है, द्रोपदियाँ खुद ही कपड़े उतार-उतार कर फेंकने को बेताब हैं। कोई कृष्ण भी नहीं जो पीछे से कपड़ों की बेरोकटोक आपूर्ति करता रहे।

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