शनिवार, 16 अप्रैल 2011

एक अदद ‘शुक्रिया’ से चलेगा देश !

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
शुक्रिया अदा करना भी अपने-आप में कितने मजे का काम है। आजकल की बाज़ारू अर्थव्यवस्था में जब बिना धन के कुछ मिलता ही नहीं है, शुक्रियाएक ऐसी चीज़ है जिसमें सामने वाले को वास्तव में अपनी जेब से कुछ अदा करना ही नहीं पड़ता। वस्तुकी समस्त विशेषताएँ अपने भीतर समेटे, ठोस, प्रामाणिक, वज़नदार, कीमती चीज़ लेकर भी आदमी बेशर्मी से दो कौड़ी का शुक्रिया अदा कर चलता बनता है। अड़ोसी-पड़ोसी आए दिन कोई न कोई घरेलू सामान माँगकर ले जाते हैं और बिना तोड़े-बिगाड़े, उसे लौटाते नहीं। कभी तोड़ना भले ही भूल जाएँ परन्तु लौटाते समय कभी, नींद में भी टका साशुक्रिया अदा करना नहीं भूलते।
          कितना अच्छा हो अगर दुनिया की हर चीज़ एक अदद शुक्रियाके बदले में उपलब्ध हो जाए! बाज़ार गए, मन पसन्द सब्जी-भाजी झोले में भरी और उदारता से शुक्रियाकी अदायगी कर चले आए। रेलगाड़ी-हवाई जहाज की टिकट खिड़की पर गए, टिकट लिया और एक रूखा सा शुक्रियाकाउन्टर पर पटककर सीट पर जा बैठे। अगर एक बढ़िया सी लक्ज़री गाड़ी खरीदना है तो बैंक बैलेंस, लोन, ब्याज, किश्त और चेक बाउँस की फिक्र करने की जरूरत ही नहीं, तड़ से शुक्रियाफेंका और फर्राटा भरते हुए चल दिये। पेट्रोल की अन्तराष्ट्रीय कीमतों की भी चिन्ता नहीं, चाहे जितना भरवा लो, शुक्रियाही तो अदा करना है, और उसके लिए जेब, पर्स कुछ टटोलने की भी आवश्यकता नहीं, ओठों को थोड़ा सा गोल बनाकर रेडीमेड तैयार रखे शुक्रियाको निकालकर सामने वाले के मुँह पर मार चलते बने।
          कसम से क्या अद्भुत समाज होगा, न किसी को श्रम बेचने की ज़रूरत न खरीदने की। काम पर गए, काम किया नहीं किया, बदले में शुक्रियालिया और रास्ते से शुक्रियाके बदले में बच्चों के लिए मिठाई-फल लिए और घर आ गए। न किसी को चोरी करने की ज़रूरत, न डाका डालने की। ठगी, जालसाजी, घोटालेबाज़ी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार सब बंद। सबसे अच्छी बात होगी औरतों की जिस्मफरोशी बंद हो जाएगी। जब हर चीज़ शुक्रियाके बदले में मिलने लगेगी तो बेचारियों को अपना जिस्म बेचकर अपना और बच्चों का पेट पालने की क्या ज़रूरत होगी! कम्पलीट समाजवाद आ जाएगा शुक्रियाका समाजवाद।

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