शनिवार, 14 मई 2011

बाए बाज़ू वालों का हश्र

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
          पश्चिम बंगाल में बाए बाजू के खयालातोंकी नैया भंवर में गोते लगा रही है, पता नहीं पार लगेगी भी या नहीं। हालांकि पिछले कई सालों से यह नैया खयालातों के बाए बाज़ूपनके कारण नहीं बल्कि चुनावों में दाए बाजू के खयालातोंके तौर तरीके इस्तेमाल करने के कारण पार लगती रही है।
          चुनाव में सिद्वांत को ताक पर रखकर नोट, कम्बल, दारू की बोतलें बाँटना, बूथ कैप्चर करना, मत पेटियाँ लूटना, काउंटिंग में धांधलियाँ करना आदि-आदि जो भी किया जाना संभव हो करके प्रजातांत्रिक व्यवस्था को मजबूत बनाने के काम पर दाए बाजू के खयालातवालों का एकाधिकार रहा है। यही एकमात्र रास्ता है जो किसी भी खयालवादीया खयालहीन गुंडे-बदमाशको समान भाव से विधानसभा/संसद में पहुँचा सकता है। बाए बाजू के खयालातवाले दिग्गजों ने खयालातोंके झंझट से मुक्त रहकर, इसे क्रांति के लिए आवश्यक कदममानते हुए हुबहू आत्मसात किया और पश्चिम बंगाल में लम्बे समय तक सत्ता पर शिकंजा कसे रखा। दुनिया भर में बाए बाजू के खयालातोंकी सत्ताएँ धराशायी हो गईं मगर पश्चिम बंगाल में यह टस से मस नहीं हो पाई, है न यह घोर आश्चर्य की बात।
          दुनिया के स्वयंभू दरोगा बाए बाजू के खयालातोंके इस भारतीय गढ़ की ओर जब दृष्टिपात करते होंगे उनकी दृष्टि वक्र ज़रूर हो जाती होगी, आखिर यह उनके लिए शर्म की बात है कि जहाँ एक और सोवियत रूस और दूसरे तमाम बाए बाजू के खयालातोंवाले मुल्कों की खटियाखड़ी करने का सेहरा उसके सिर पर बंधा फरफरा रहा है वहीं भारत जैसे परम भक्तके शरीर पर यह फुड़ियावर्षों से विराजमान है और वह कुछ कर नहीं पा रहा है।
          मुझे विश्वास है कि राज्य की जनता भले ही इन बाए बाजू के खयालातवालों को धोका देकर दाए बाज़ू के खयालातवालों को राज्य की बागडोर सौंप दें मगर इनके सच्चे हितैशी टाटा-बिड़ला, अंबानी और बहुत सारे धन्नासेठ, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने प्रिय राज्यऔर पार्टीकी सरकार को बचाने के लिए कुछ न कुछ ज़रूर करेंगे। आखिर यही वे बाए बाजू के खयालातोंवाले हैं जो देश में दाए बाजू के खयालातवालों से ज़्यादा उनका ध्यान रखते हैं।

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