शुक्रवार, 20 मई 2011

एक कदम आग सौ कदम पीछे


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
जनसंदेश टाइम्स लखनऊ में प्रकाशित
          ‘‘एक कदम आगे दो कदम पीछे’’ शीर्षक है उस किताब का जिसमें लेनिन ने रूसी कम्युनिस्ट पार्टी में व्याप्त गलतियों और कमजोरियों की आलोचना की थी। पश्चिम बंगाल में चौतीस साल का साम्राज्य धराशायी होने से यह साबित हुआ है कि वामपंथी एक कदम आगे तो बढ़ नही पाए मगर सौ कदम पीछे ज़रूर चले गए हैं। वामपंथी धड़े में यदि कोई लेनिन के नख-स्तर का भी नेता हो और वह अपनी पार्टी की इस दुर्दशा के वास्तविक कारणों पर ईमानदारी से नज़र डाले तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि उसे ‘‘एक कदम आगे सौ कदम पीछे’’ नाम से कोई किताब लिखना पड़ेगी, तब वह अपनी पार्टी की कारगुज़ारियों और काले इतिहास की पेट भर कर आलोचना-समालोचना कर पाएगा।
          कामरेड़ों के सामने समय काटने के आ पड़े संकट को लेकर मुझे बेहद चिंता हो रही है, क्या करेंगे अब वे ? वैसे शायद अब उन्हें पश्चिम बंगाल में व्याप्त गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, किसान मजदूरों का शोषण, अनैतिकता, महिलाओं पर अत्याचार, वेश्यावृत्ति इत्यादि-इत्यादि समस्याएँ करीब से दिखाई देने लगें, जो सत्ता में रहते हुए उन्हें कभी नज़र नहीं आईं। वे चाहे तो इस सबके विरोध में धरना - प्रदर्शन, आन्दोलन आदि कर टाइम पास कर सकते हैं परन्तु नई सरकार बदला भंजाने के लिए उन्हीं पुलिस वालों से उनके हड्डे तुड़वा सकती है, जिन्होंने पहले समय-समय पर सैकड़ों आन्दोलनकारियों के हाथ-पॉव तोड़कर वामपंथी क्रांति का झंडा ऊँचा उठाए रखा है।
          जिस तरह से इन काली-पूजक कामरेड़ों ने लगातार अत्याचार, दमन, और खून-खच्चर की राजनीति कर पश्चिम बंगाल की आम जनता का जीना मुहाल कर के रखा था, तो अब उन्हें चैन की सांस लेने का सौभाग्य तो शायद ही मिलेगा लेकिन अपनी आफतें कम करने के लिए वे ब्रम्हचारी बनने के अलावा तृणमूल में जगह बनाने, सहोदर कांग्रेस में पनाह लेने, यहाँ तक कि बी.जे.पी. में भीड़ बढ़ाने की भी सोच सकते हैं।
          अब चूँकि वे एक कदम आगे चले बिना सौ कदम पीछे पहुँच ही गए हैं तो अब वहीं से श्रीगणेश करें, बैठकर अपने दादा-पड़दादाओं की सीखों का बारीकी से पारायण करें, तब तक बेचारे सर्वहारा को ममता के ऑचल में चैन से सोने दें।

4 टिप्‍पणियां:

  1. अब तक चुप थे, अब समस्यायें ढंग से उठा पायेंगे।

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  2. वे बेकार कहाँ ? झंडा और जिंदाबाद हमेशा ज़िंदा जो है !

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  3. अरे सर ये कामरेड हैं। समय भी काट लेगें और अभियान में भी कमी नहीं आएगी। बस बीड़ी मिलती रहनी चाहिए।

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