बुधवार, 29 जून 2011

चले हैं बच्ची को सरकारी स्कूल में पढ़ाने

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
खबर है कि किन्ही एक ‘कलेक्टर साब’ ने अपनी बिटिया को ‘सरकारी स्कूल में दाखिल करवा दिया है। बिटिया के ननिहाल तरफ जो मातम मना होगा उसकी तो बस कल्पना ही की जा सकती है, ‘कलेक्टर साब’ के ससुरसाब सोच रहे होंगे, काहे को तो इस पागल से अपनी लड़की व्याह दी! नातिन को व्ही.आई.पी. स्कूल की सीट की जगह सरकारी स्कूल की टाटपट्टी पर बैठना पड़ रहा है। इससे तो किसी सरकारी बाबू-चपरासी से ब्याह देते, कुछ भी करके वह प्रायवेट स्कूल में तो पढ़ाता लड़की को!
उधर सरकारी स्कूल में ज़रूर हड़कंप मच गया होगा। मास्टर-मास्टरनियाँ गमज़दा होकर माथा ठोक रहे होंगे, बुरा हो इस ‘कलेक्टर’ का, अब तो रेगुलर स्कूल जाना पड़ेगा और पढ़ाना भी पड़ेगा, वर्ना यह कलेक्टर की बच्ची पूरे स्कूल की परेड निकलवा देगी।
इधर आई.ए.एस. अफसरों की लॉबी कोप भवन में चली गई होगी, नहीं गई हो तो एखाद दिन में चली जाएगी और वहाँ उन ‘कलेक्टर साब’ को बुलाकर उनकी खबर लेगी- क्यों जी, यही हरकतें करना थीं तो आई.ए.एस. अफसर क्यों बने ? नाक कटवा दी तुमने पूरी बिरादरी की, अब कहाँ जाकर जुड़वाएँ ?
‘कलेक्टर साब’ कहेंगे-जनाब, मैंने तो आदर्श स्थापित करने की कोशिश की है!
लॉबी नाराज़ होकर कहेगी - श्रीमान जी, बच्चों के फ्यूचर का रिस्क लेकर कभी आदर्श स्थापित किया जाता है ? और कुछ नहीं मिला आपको स्थापित करने के लिए! ए.सी. गाड़ी छोड़ देते, चपरासी की साइकिल के कैरियर पर बैठकर दफ्तर आना-जाना करते! न रहते इतने बड़े बँगले में, किसी घटिया से क्वार्टर में रहने चले जाते! लड़की को सरकारी स्कूल में डालने की क्या सूझी आपको ?
‘कलेक्टर साब’ नम्रता से कहेंगे-सर मेरी तो राय है कि सभी सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना चाहिए........!
लॉबी कहेगी-पागल कुत्ते ने काट लिया आपको ? या आपका दिमाग चल गया है ? हम अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाएँगे तो फिर चल गया देश। हमें और हमारी सात पुश्तों को देश चलाना है, देश के साथ चलना नहीं है।
‘कलेक्टर साब’ कहेंगे-मगर सर, इससे शिक्षा का स्तर सुधरेगा, सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधरेगी।
लॉबी नाराज़ हो जाएगी- आप क्या शिक्षा शास्त्री हैं जो शिक्षा का स्तर सुधारेंगे ? और किसने कहा आपको सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने को ?
‘कलेक्टर साब’ कहेंगे-सर किसी के कहने की क्या ज़रूरत है, यह मेरा फर्ज है।
लाबी फिर नाराज़ी ज़ाहिर करेगी-मिस्टर ये फालतू के फर्ज़-अर्ज़ भूल जाइए, सरकार ने आपको जो महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ दी है उन्हें निभाइये। जाइये पहले लॉ एंड आर्डर की स्थिति देखिये, कहीं असंतोष पनप रहा हो तो उसे दबाइये, कहीं विरोध सर उठा रहा हो तो उसे कुचलिए, चले हैं बच्ची को सरकारी स्कूल में पढ़ाने।
‘कलेक्टर साब’ अपना सा मुँह लेकर बाहर आ जाएँगे। घर-परिवार और ससुराल वाले, नाते-रिश्तेदार इस मुद्दे पर उनकी जितनी छीछालेदर नहीं कर पाएँगे, उससे कई गुणा ज़्यादा उनकी अपनी लॉबी कर देगी। बेचारे ‘कलेक्टर साब’ का साहसिक फैसला उनके लिए एक बड़ी मुसीबत बन जाएगा। ठहर जाओ ज़रा।

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