शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

महँगाई से निबटने के सौ तरीके

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//            
          समय आ गया है कि मैं अपनी लेखन प्रतिभा और प्रखर बुद्धिमत्ता को किसी लोकोपयोगी कार्य में लगाऊँ। इसका सबसे अच्छा तरीका जो मुझे समझ में आ रहा है वह यह है कि मैं तत्काल ‘‘महँगाई से निबटने के सौ तरीके’’ नुमा कोई किताब लिखूँ और महँगाई से हाय-हाय कर रही जनता को कुछ राहत पहुँचाऊँ। इससे पहले कि मैं यह महत्वपूर्ण किताब लिखना प्रारंभ करूँ, महँगाई से निबटने के कुछ छँटे हुए नायाब तरीकों का ज़िक्र यहाँ करता चलूँ। सबसे पहला और अहम तरीका यह है कि आप कोई भी महँगी चीज़ भूलकर भी मत खरीदिये, फिर देखिए महँगाई आपको परेशान कर ही नहीं पाएगी। दस चक्कर बाज़ार के लगा आइये, मगर जेब में हाथ ही मत डालिए, पहले से डला हो तो बाहर ही मत निकालिये, देखिए आप महँगाई से अप्रभावित रहेंगे। दुकानदार आपकी ओर आशा की नज़र से देखें तो आप उसकी ओर निराशा की नज़र से ताककर चले आइये।
          जीभ पर आने से पहले और जीभ के ऊपर से जाने के बाद किसी चीज का कोई स्वाद नहीं होता। अतः किसी योग्य झोला छाप डाक्टर से सलाह लेकर जीभ के ऊपर एक कवरचढ़वा लीजिए, उसके बाद मुर्ग-मुसल्लम खाइये या बेशरम के पत्तों का साग, आपको पता ही नहीं चलेगा। प्रकृति में एक से एक नायाब वनस्पतियाँ मौजूद हैं, जिन्हें गाय-बकरी भी नहीं खाते, उन सबको एकत्र कर खाना शुरु कीजिए आपको महँगाई का जरा भी आभास नहीं होगा।
          अपनी सूँघने की क्षमता को प्रबल बनाइये और हराम का पैसा उगाहने वालों के मोहल्ले में सुबह-शाम अपनी नाक साथ लेकर जाइये और एक से एक पकवानों का स्वाद नाक में भरकर उसे पेट के रास्ते ढकेल दीजिये। इस प्रक्रिया में कभी शाकाहार की जगह माँसाहार भी करना पड़ सकता है मगर चिन्ता की कोई बात नहीं, इस विधि में मुख का कोई काम नहीं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह रहेगा कि आप पर रसोई गैस की महँगाई का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
          पेट्रोल-डीजल की महँगाई से निबटने का भी मेरे पास अनोखा उपाय है मगर उसे में अपनी पुस्तक में ही सार्वजनिक करुँगा। फिलहाल उपरोक्त तीन-चार तरीकों से किताब पापुलर होगी या नहीं अंदाज लगा लूँ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. एक सबसे कारगर उपाय यह है कि बाजार जब खाने पीने का सामान खरीदने जाइऐ तो कुछ भी मत खाइऐ। बस पानी पी कर सो जाइए। सोनीया माई का गुण गाइऐ। जय हो। करारा।

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  2. बिलकुल पापुलर होगी साहब...शक की तो कोई गुंजाईश ही नहीं है
    बढ़िया व्यंग्य

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  3. ज़्यादा ही भूख सताए तो एक मुट्ठी चने(वो भी कबूतरखाने से चुराए हुए या हथियाए हुए)तीन लौटे पानी के साथ निगल लें...अपने आप पेट में फूलते रहेंगे ससुरे...भूख का नामोनिशान गायब कर के ही दम लेंगे...

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  4. न जाने कहाँ कहाँ परत चढ़ानी होगी।

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  5. आजमाता हूँ , सूंघने के लिए राजा या मोहन की गली का चक्कर लगाता हूँ !

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