रविवार, 17 जुलाई 2011

तिहाड़ में ओलम्पिक

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
       सुना है खेल-पितामह कलमाड़ीइन दिनों तिहाड़ जेल में ओलम्पिक की महत्वाकांक्षी योजना तैयार करने में व्यस्त है। तिहाड़ में ओलम्पिक हो तो खेलभी अनोखे होने चाहिये और स्पर्धाएँभी। हालाँकि योजनाएँ बनाने में कलमाड़ी जी का लोहा इस समय दुनिया मान रही है, इसलिए उन्हें मुझ जैसे किसी ऐरे-गैरे नत्थू-खैरे के सलाह-मशवरे की ज़रुरत नहीं है फिर भी कुछ छूट ना जाए इसलिए कुछ सलाहें दरपेश है।
     तिहाड़ कुछ अलग तरह के खेलों के माहिर खिलाड़ियों का खेल गॉव सा है, लिहाज़ा तिहाड़ ओलम्पिक भी कुछ अलग किस्म का होना चाहिये, जिसका उद्घाटन देश के किसी कुख्यात अपराधी से कराया जाए और उद्घाटन समारोह में गोलियों की तड़तड़ से दर्शकों का और हथगोलों की धमधम से अतिथियों का स्वागत हो। ओलम्पिक की मशाल देश भर में बाहर छुट्टे घूम रहे अपराधियों के हाथों से होती हुई तिहाड़ प्रांगण तक पहुँचे, तो अन्दर-बाहर दोनों ही जगह अपराधकर्मियों का उत्साह बस देखते ही बने।
     जेल के अन्दर एक कॉलोनी का भव्य सेट लगवाकर चोरों की एक चोरी स्पर्धा कराई जानी चाहिये, जिसमें कम से कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा कीमत के, ज़्यादा से ज़्यादा माल पर हाथ साफ करने वाले शातिर चोरों की चोर्यकला का प्रदर्शन हो सकें। स्पर्धा में रोचकता रहे इसलिए सिर पर चोरी का माल रखकर तेज गति से दौड़ने का इवेंट भी इसके साथ जोड़ा जा सकता है। और ज़्यादा रोचकता बनी रहे इसके लिये दौड़ते प्रतिस्पर्धियों के पीछे पुलिस के खूँखार कुत्ते भी छोड़े जा सकते हैं।
     इसी सेगमेंट में डकैती स्पर्धा भी रखी जा सकती है, जिससे व्यवस्था पोषित डकैतियों के मुकाबले, लुप्त होती जा रही पारम्परिक डकैती कला को प्रोत्साहन मिल सके। डकैत, कॉलोनी के मालदार घरों को पहचानकर उनकी अच्छे से रेकी करने के उपरांत घर मालिकों के हाथ-पाँव तोड़कर माल ले जाने का अपना कौशल दिखा सकते हैं। बैंकों में डकैती की एक विशेष स्पर्धा भी इसमें रखी जा सकती है जिसमें जेल परिसर में बैंक की बिल्डिंग बनाकर बैंक से ज़्यादा से ज़्यादा नोट बोरियों में भरकर सफलता पूर्वक फरार होने और पुलिस के हथ्थे न चढ़ने की अद्भुत् योग्यता रखने वाले डकैत पुरस्कृत किये जा सकें।
     एक इवेंट कत्ल का रहे, जिसमें इन्सान को खल्लास करने के विभिन्न तरीकों की स्पर्धा हो। क़त्ल होने के लिए देश की आम जनता से सम्पर्क किया जा सकता है। वह यूँ भी आए दिन घुट-घुटकर मरती ही है, कलमाड़ी के काम आकर मरेगी तो उसका जीवन सार्थक हो जाएगा। क़त्ल के ही इवेंट में, बलात्कारके बाद क़त्लका इवेंट भी रखा जा सकता है और केवल बलात्कारका इवेंट तो पृथक से हो ही सकता है। क़त्ल के नाम से भले ही ओलम्पिक के टिकट ना बिकें मगर बलात्कार के नाम से अवश्य बिकेंगे, प्रतिस्पर्धियों में भी ग़ज़ब का उत्साह देखा जाएगा। प्रश्न यह उठेगा कि बलत्कृत होने के लिये काफी सारी अबलाएँ कहाँ से आएँगी, तो इसके लिये पुलिस विभाग से सहायता ली जा सकती है।
     इसी प्रकार, तमाम और भी अपराधों में खेल भावना और रोचक प्रतिस्पर्धत्व को ध्यान में रखते हुए तिहाड़ ओलम्पिक का शानदार आयोजन किया जा सकता है। इसकी भव्यता में चार चाँद लग जाएँ अगर इसमें घपला-घोटाला स्पर्धाएँ भी शामिल की जावे। कौन, किस तरह से अनोखी-अनोखी योजनाएँ बनाकर देश का पैसा हड़प सकता है, इसकी एक महास्पर्धा आयोजित हो। टेबलों पर नोटों की गड्डियाँ रखी हों और प्रतिस्पर्धी कम से कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा नोट खाने का पराक्रम दिखाएँ।
          कलमाड़ी जी की कल्पनाशीलता और तिहाड़ में बंद अब्वल दर्जे के अपराधियों की अद्भुत खेल भावना से तिहाड़ ओलम्पिक एक विश्व स्तर के आयोजन का रूप ले सकता है, बशर्ते राजनैतिक वरदहस्त पाकर कलमाड़ी जी जल्दी छूट कर बाहर न आ जाएँ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. "तिहाड़ कुछ अलग तरह के खेलों के माहिर खिलाड़ियों का खेल गॉव सा है,"

    लगता तो अब ऐसा ही है सर.:)

    सादर

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  2. कल 18/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. तिहाड़ ओलम्पिक का आपका आइडिया वाकयी जबरदस्त है।

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  4. wah kya jabardast aaidiyaa hai.kalmaadiji usme bhi apnaa hissa baant lenge.wah jail main bhi apni aadton se baaj thode hi aayenge.badiyaa lekh ke liye badhaai sweekaren.



    please visit my blog.thanks

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  5. कलमा़डीजी के नेतृत्व में तिहाड में ओलम्पिक का धांसू आईडिया है यह । इसके लिये अग्रिम बधाईयां...

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