सोमवार, 8 अगस्त 2011

भारत रत्न


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
सचिन तेंदुलकर और मेजर ध्यानचंद को भारत रत्नदेने की बात क्या चली, एक फिल्मी अभिनेत्री ने अपने पापा को भी आगे कर दिया- बाकी सब तो गधे हैं आप तो मेरे पापा को दो भारत रत्न। फिर एक फिल्मी गायक के साहबजादे भी आगे आए और बोले -मेरे पापा को दो भारत रत्न। इनकी देखा-देखी संभव है और भी पुत्ररत्न अपने-अपने पापाओं के ऊपर चढ़ी धूल की परत झाड़ने लगे हों, ताकि उन रत्नों के लिए भारत रत्नकी माँग की जा सके। कुछ तो जीवन में पहली बार अपने बाप को उलट-पलट कर देख रहे होंगे कि शायद उन्होंने जीवन में कभी थोड़े बहुत हाँथ-पॉव हिलाएँ हों और उनकी इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर भारत रत्न का दावा ठोका जा सके।
अन्य दूसरे क्षेत्रों के पापाओं के बेटे-बेटियों को शायद अभी पता नहीं है कि भारत रत्न सभी क्षेत्रों के लिए होता है। पता होता तो सबसे पहले राजनीतिक क्षेत्र के बेटा-बेटी अपने-अपने पापाओं को लेकर मैदान में कूद पड़ते। वे अपने पापाओं के सामने दूसरे किसी पापा को टिकने ही नहीं देते। कांग्रेसियों का तो शत्-प्रतिशत् पक्का है कि वे निश्चित ही पापाकी जगह बाबाके लिए भारत रत्नकी माँग कर देश के बच्चों के लिए भारत रत्न का रास्ता खोलेंगे। इस कोने से माँग के अस्तित्व में आते ही सारे विपक्षी एक साथ उस कोने पर टूट पड़ेंगे और अपने दर्जनों गुटों के सैंकड़ों नेताओं के लिए भारत रत्न की माँग को लेकर गुलगपाड़ा करेंगें। इस गुलगपाड़े के बीच से हो सकता है एक तीसरा मोर्चा उठ खड़ा हो और उसके सर्व सम्मति से नेता बने नेता को आधे लोग भारत रत्न के लिए आगे की ओर खदेड़ें और आधे उसकी टाँग पकड़कर पीछे की और घसीटें, मजाल है जो बेचारा भारत रत्न ले पाए।
वाम मोर्चें की ओर से भारत रत्न के लिए कोई माँग नहीं आएगी, वे इन्तज़ार करेंगे कि कब टाटा या अन्य कोई मित्र-पूँजीपति उनके पोलिट ब्यूरों के किसी कामरेड का नाम भारत रत्न के लिए प्रस्तावित करें ताकि वे उस पर पोलिट ब्यूरों में गहन विचार विमर्श के बाद इस माँग को अपनी निचली कमेटियों तक पहुँचा सकें, कमेटियाँ रेंक एंड फाइल के बीच इसे ले जाकर आन्दोलन की संभावनाएँ तलाश सकें। अन्त में मामला कलेक्टर को ज्ञापन देकर समाप्त हो जाए।
अपराधों, घपलों-घोटालों के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर जो प्रतिभाएँ सामने आ रहीं हैं, लग रहा है कि असली भारत रत्न तो वही हैं। कुछ लोग देश को बेचने का काम इतनी कुशलता से कर रहे हैं जैसे उन्हें पहले कई देश बेच खाने का अनुभव हो। इन सबको तो घर-घर जाकर भारत रत्न दिया जाना चाहिये।
साहित्यकारों के लिए कोई बेटा-बेटी या साहित्य मठ भारत रत्न की माँग करता हुआ दिखाई दे जाएँ तो कसम से गोली मार देना मुझे। मगर हाँ, खुदा न खास्ता सरकार ने किसी साहित्यकार को इस काबिल मान लिया तो साहित्य-वाहित्य को ताक पर रखकर उसकी टाँग खीचने वाले अनेक मिल जाएँगे।

10 टिप्‍पणियां:

  1. Nice post .

    हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।
    बेहतर है कि ब्लॉगर्स मीट ब्लॉग पर आयोजित हुआ करे ताकि सारी दुनिया के कोने कोने से ब्लॉगर्स एक मंच पर जमा हो सकें और विश्व को सही दिशा देने के लिए अपने विचार आपस में साझा कर सकें। इसमें बिना किसी भेदभाव के हरेक आय और हरेक आयु के ब्लॉगर्स सम्मानपूर्वक शामिल हो सकते हैं। ब्लॉग पर आयोजित होने वाली मीट में वे ब्लॉगर्स भी आ सकती हैं / आ सकते हैं जो कि किसी वजह से अजनबियों से रू ब रू नहीं होना चाहते।

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  2. सही व्यंग्य है सर ।
    ---------
    कल 09/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. बहुत सही कहा है आपने इस आलेख में ...आभार

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  4. सटीक व्यंग ... यहाँ तो टांग खींचने की परम्परा ज्यादा है ..

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  5. सटीक व्यंग्य के साथ ही सार्थक आलेख ....

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  6. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच

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