शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

ढाक के वही रहेंगे-तीन पात

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
बात निकली है तो फिर अब दूर तलक चली ही जाना चाहिये। मैं भ्रष्टाचार की बात कर रहा हूँ। जाहिर है जब देश में इसके अलावा दूसरी कोई बात चल ही नहीं रही है तो मैं भी उसी की बात करूँगा।
भ्रष्टाचार का ऐसा है कि वह हमारी रग-रग में बसा हुआ है, संस्कृति की तरह। किसी की भी रग काट कर देख लो, खून नहीं, भ्रष्टाचार बहेगा। कभी संस्कृति बहती हुई निकलेगी और उसके पीछे भ्रष्टाचार निकलने लगेगा, कभी भ्रष्टाचार निकलेगा, उसके पीछे मुस्कुराती हुई संस्कृति निकल पड़ेगी। कभी-कभी दोनों एक साथ बहकर निकल पड़ेंगे। कुछ लोग हँसें या मुस्कुराएँ तो फूल नहीं भ्रष्टाचार झड़ने लगता है, दो-चार ट्रक तो समझलो कम पड़ जाएँ यदि उसे बटोरा जाए। मार्निंग-ईवनिंग वॉक पर निकलने वालों के शरीर से जो बदबूदार पदार्थ निकलता है वह पसीना नहीं भ्रष्टाचार  होता है, जो चर्बी के रज़ाई-गद्दों के रूप में थुलथुल शरीरों में बैठा रहता है। कुछ लोगों के चेहरों पर गज़ब की दिपदिपाती चमक दिखाई देती है, मगर वह चमक-वमक नहीं शुद्ध भ्रष्टाचार होता है, जो पाँच सौ वॉट के बल्ब सी रोशनी देता है।
कहा जाता है कि तालाचोर के लिए नहीं बल्कि शरीफों के लिए बनाया गया है। तिजोरी खुली देखकर शरीफ आदमी की नीयत न डोल जाए, इसलिए। ज़ाहिर है देश में संस्कृति की महानता के बावजूद ईमान की कोई गारंटी नहीं है, खुला ताला देखकर कभी भी डगमगा सकता है, भीतर फिर चाहे धन-दौलत हो या अकेली स्त्री। सड़क पर किसी का बटुआ गिर भर पड़े, पीछे आ रहे शरीफ सुसंस्कृत आदमी का ईमान चट से डोल जाता है, वह बटुआ अपनी जेब में डाल गरदन दूसरी दिशा में घुमाकर चलता बनता है।
दूसरों का माल हज़म करने में हम आगे, सौ-पचास रुपये से लेकर जमीन-जायदाद, घर-मकान तक कुछ भी हज़म कर जाएँ। दूसरों को चूना लगाने में हम माहिर। बस चले तो सड़क चलती मैयत का कफन खीचकर बेच खाएँ। इंसानों को पत्थर-मिट्टी से लेकर घोड़े की लीद तक खिला देने वाले भ्रष्ट-आचरण वाले पापियों की आत्मा जब, बेबीफूड तक में मिलावट करते नहीं कॉपती तो फिर लोकपाल बने या त्रिलोकपाल होगा क्या? ढाक के वही रहेंगे-तीन पात।

5 टिप्‍पणियां:

  1. मुझे लगता है जैसे प्रकृति अपना संतुलन बनाती है। वैसे ही आचार अपना संतुलन स्थापित करता है। सद और भ्रष्ट के उतार-चढ़ाव का भी साम्य बिंदु स्थापित होता है। एक अधिक चढ़ा तो दूसरा उतारने के लिए लपक जाता है।

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  2. जिसको भी मौका मिलता है, खसोट लेता है।

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  3. नई पुरानी हलचल से आपके ब्लॉग पर आना हुआ.
    आपके तीखे लेख ने भ्रष्टाचार को उजागर किया.
    अब अन्ना जीत गए हैं.
    ६०% से ६५% ब्रेक लगेगा.
    आशा पर दुनिया कायम है.
    सपनों में जीना भी अच्छा लगता है.
    आपकी इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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  4. उम्मीद पर दुनिया कायम है ..शायद अब कुछ कमी आए मिलावट में ...

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