शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

थोड़ी सी पी लेने दो

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
          हलक में शराब के दो घूँट उतरने के बाद इंसान की ज़ुबान बे-लगाम हो जाती है यह तो पता था, मगर असह्य बदबू का वास होने के बावजूद भी मुँह में उसके सरस्वती आ बिराजती होंगी नहीं पता था। फिल्म अभिनेता ओम पुरी ने अन्ना के मंच से शराब के नशे में धुत्त होकर नेताओं की जो लू उतारी, होशो-हवास में तो कभी न उतारी होंगी।

          यूँ देखा जाए तो इंसान होशो-हवास में सार्वजनिक मंचों से कितनी अनर्गल बकवास करता रहता है, एक काम की बात कोई कह जाए तो मजाल है। मगर उसे थोड़ी पिला दो, फिर मज़ा देखों, दूसरों की तो दूसरों की अपनी भी पोले खोलना शुरु कर देता है। शराबबंदी के कट्टर हिमायतियों को इंसान के इस नैसर्गिक गुण की ओर ध्यान देना चाहिए, वे अगर यूँ ही शराबबंदी के पीछे पड़े रहे, और खुदा न खास्ता कभी वह हो गई तो देश में कोई सत्य बोलने वाला बचेगा ही नहीं। मेरी विनम्र राय है कि भारत में पीना-पिलाना एकदम अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए, कम से कम इंसान अपने घटिया स्वार्थों को ताक पर रखकर चार सच्ची बातें तो बोलेगा। इससे महत्वपूर्ण बात यह होगी कि लोग उसकी बातें गौर से कान खोलकर सुनेंगे, जैसे ओमपुरी की बातें सबने सुनी, यहाँ तक कि जो उन्होंने नहीं कहा वह भी सुन लिया। वे नशे में न होते तो लोग अपने इस कान से उस कान तक की सुरंग एकदम साफ-सुथरी रखते ताकि कही गईं बातें एक तरफ से प्रवेश कर दूसरी तरफ से निर्विघ्न रूप से निकल जाएँ।
          देश की तमाम आम जनता नेताओं के सारे सत्य जानती है, और अपने-अपने निजी मंचों पर, मुँह में निजी भोपू लगाकर, निजी कानों में उन सारे सत्यों को ढोलती भी रहती है। मगर फर्क क्या पड़ता है ? वजह यही है, बिन टुन्न हुए कितना भी बड़ा सत्य बोलों किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। मगर, यदि लोग थोड़ी सी चढ़ा लें और फिर सत्यों का शंखनाद करना चालू करें तो फिर देखिए कितनी जल्दी परिवर्तन की हवा बहना चालू होती है। कारण वही है थोड़ी सी पी लेने से मुँह में सरस्वती का वास हो जाता है।

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