मंगलवार, 20 सितंबर 2011

चंद सुझाव चुनाव सुधार की खातिर


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
 चुनाव सुधारों की आवाज़ें उठ कर खड़ी होने वाली हैं। सोचा अपन भी योगदानदे लें, क्या जाता है। एक सुझाव घूम-घूमकर आ रहा है कि चुनाव का खर्च सरकार अपने कंधों पर उठाए। सही है, देश सेवा करने का लायसेंस सिर्फ धन कुबेरों को मिले यह तो लोकतंत्र की तौहीन है। लोकतंत्र को बचाने के लिए सरकार को संसाधन विहीनों की रोकड़े  से मदद करना चाहिए। अंटी में भरपूर पैसा न हो तो कोई चुनाव जीतकर देश सेवा करने का स्वप्न कैसे पूरा करेगा, इसलिए इस माँग का सम्मान करते हुए सरकार को हर चुनाव वर्ष में देश के बाकी सारे विभागों के बजट प्रावधानों को डायवर्ट कर आम चुनाव में लगा देना चाहिए।
चूँकि चुनाव की पूरी उठापटक का अन्तिम उद्देश्य एक अदद सरकार गांठना ही होता है, इसलिए सरकार अगर इस उठापटक का सारा काला-सफेद खर्चा खुद ही झेले तो उसका क्या बिगड़ जाएगा! बल्कि, सरकार को तो खुद आगे रहकर कई स्तरों पर चुनाव सुधार करना चाहिए। जैसे, जब तक शत-प्रतिशत वोट न पड़े सही चुनाव होना नहीं कहलाता। मगर देश का वोटर चुनाव के दिन को सोने का दिन समझता है और उस दिन आराम से चादर तानकर सोता है। या फिर, बहुत सारे महत्वपूर्ण घरेलू कामों को वह पाँच वर्षों से इसी दिन के लिए पेडिंग रखता है ताकि सूर्य की पहली किरण के साथ सारे काम एक के बाद एक निबटाए जा सकें, वोट डालने न जाना पड़े।
सरकार यह स्थिति सुधार सकती है। मेरे पास बढ़िया सुझाव है। वोटरों को घर पहुँच सेवा उपलब्ध कराई जाए, फिर तो वह झक मारकर वोट डालेगा। बैलेट बाक्स, वोटिंग मशीन और पूरे तामझाम को हर गाँव-शहर में दर-दर, दुकान-दुकान घुमा-घुमाकर वोटर को वोट डालने की सुविधा दी जाए। खोपड़ी पर जाकर बैठ जाया जाए कि चल रे डाल वोट, उसे डालना पड़ेगा। इस प्रकार भी यदि शत्-प्रतिशत् वोटिंग न हो पाए तो फिर सरकार खुद अपने खर्चे पर दारू और कम्बलों के साथ नगद राशि का वितरण सुनिश्चित करे, और वोट ले। इसके बाद भी यदि वोटिंग के लक्ष्य में कोई कमी रह जाए तो फिर फर्ज़ी वोटिंग के लिए पूरा लॉजिस्टिक सपोर्ट और नैतिक समर्थन, प्रोत्साहन इत्यादि उपलब्ध कराकर इस कमी को पूरा करवाए। सरकारी आदमियों की देखरेख में बूथ कैप्चरिंग, वोट लुटाई और छपाई के माध्यम से शांतिपूर्वक चुनाव सम्पन्न करवाए जाएँ।
अब बची काउंटिंग। काउंटिंग के समय ऐसे दक्ष गणकों की सेवा ली जाए जो दो को दस गिनने में महारथ रखते हों। यह सब काम सरकारी स्तर पर सम्पन्न होने में अड़चन हो तो इसे प्रायवेट सेक्टर को दे दिया जाए। जैसे मोबाइल वाले नाना प्रकार से लोगों की कॉल्स बढ़ाकर दुगना पैसा वसूलते हैं, उसी तरह वे काउटिंग में अपनी महारथ दिखाकर शत-प्रतिशत वोट गिन देंगे। अल्पतम मत में चुने लोगों की अल्पमत सरकार का धब्बा धुल जाएगा, और यह एक महत्वपूर्ण चुनाव सुधार होगा।
इस तरह जगह-जगह से रचनात्मक सुझाव आमंत्रित कर इससे पहले कि लोग अनशन कर मरने-मारने पर उतर आएँ, चुनाव सुधार कार्यक्रम सम्पन्न कर लिया जाए।

3 टिप्‍पणियां:

  1. wow... what are the ideas sir ji...
    sahi hai... sarkaar ko in ideas pe kaam karna chahiye...
    aur to aur ek kaam aur karna chahiye, netaon ke munh dhak dene chahiye, kyonki andar se sab waise bhi ek hi hain, chehre alag-alag hain to kya fayda... :)

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  2. सारा खर्च सरकार उठायेगी, पर वोटरों को दारू किस मद में पिलायेगी।

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  3. बहुत ही रचनात्मक सुझाव हैं- आमंत्रण तो है ही- और भी आवेंगे.

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