शनिवार, 11 मई 2013

यहाँ भी है छेड़छाड़

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
छेड़छाड़के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए सख्त कानूनों के बावजूद कोयला आवंटन घोटाले की रिपोर्ट से छेडछाड़हो गई। छेड़छाडभी सड़क छाप मजनुओं के हाथों नहीं बल्कि चोटी के अधिकारियों-मंत्रियों के कर-कमलों से। जो टुच्चाई अब तक गली-नुक्कड़ों और बाज़ारों में आवारा शोहदों द्वारा की जा रही थी, वह अब हाई प्रोफाइल लेवल से होने लगी है, क्या ज़माना आ गया है।

सारे देश की नज़रों के सामने रिपोर्टोंसे ऐसी अहमकाना छेड़छाड़ की जाती रहीं तो इस देश में रिपोर्टोंका मान-सम्मान कैसे सुरक्षित रखा जा सकेगा। उनकी दशा भी देश की अबला नारियों की तरह होकर रह जाएगी जिसे चाहे जो, चाहे जहाँ छेड़ कर चलता बनता है।  

कुछ आदर्शवादियों का आरोप है कि रिपोर्टेंमजबूत फाइल-पैड, क्लाथिंग वाले लिफाफों में सुरक्षित होकर नहीं चलेंगी, फटे-टूटे, भौंडे-भड़काऊ लिबास में अंग प्रदर्शन करती फिरेंगी तो फिर छेड़छाड़तो होगी ही। रिपोर्टोंको मर्यादा के आवरण में लाख-चपड़ीसे पैक होकर चाहरदिवारियों में दुबके रहना चाहिए। वे अगर यू ही यहाँ-वहाँ छुट्टी घूमती रहेंगी तो छेड़छाड़तो क्या उनके साथ बलात्कारभी हो सकता है। समय बहुत खराब चल रहा है, रिपोर्टों के माई-बाप, अभिभावकों को भी बेहद सावधानी एवं एहतियात बरतना चाहिए। कब कौन कहाँ से आकर उनकी प्यारी-दुलारी रिपोर्टका छेड़ जाए कोई भरोसा नहीं।

रिपोर्टोंके साथ छेड़ाछाड़ीकी प्रथा तो हमारे देश में पुरानी है। छोटे बच्चे स्कूल के समय में ही एक्ज़ाम रिपोर्ट के साथ छेड़ाछाड़ी कर अपने आप को इस काम में दक्ष बना लेते हैं। कालान्तर में देश के बड़े-बड़े संस्थानों में बैठकर रिपोर्टों की व्यापक छेड़ाछाड़ी कर अपना और दूसरों का स्वार्थ साधते हैं। वैसे संसद में बैठकर की जाए या विधानसभा में सचिवालयों में बैठकर की जाए या डायरेक्टरेटों में, रिपोर्ट से छेड़छाड़ कहीं भी बैठकर की जाए छेड़छाड़ तब भी छेड़छाड़ ही रहेगी और इस घटिया हरकत पर सख्ती से अंकुश लगाने की ज़रूरत है। जब तक काननू पर्याप्त कड़े नहीं होते ये लुच्चे-लफंगे अपनी हरकतों से बाज आने वाले नहीं हैं। यू ही रिपोर्टों से छेडछाड़ करते रहेंगे।

इस मामले में पुलिस महकमें की भूमिका खासी महत्वपूर्ण है। यूँ तो पुलिस को देख कर अच्छे-अच्छे छेड़कों की हवा खिसकती है, मगर फिर भी यदि पुलिस विभाग रिपोर्टोंके हितों की रक्षा के लिए कमर कस ले तो फिर कोई अकेली देख रिपोर्टको छेड़ने की हिम्मत नहीं करेगा। मगर पुलिस का रवैया भी रिपोर्टों के प्रति यदि छेड़छाड़ करने वालों के समान ही असंवेदनशीलता भरा रहा तो बेचारी रिपोर्टके सामने आत्महत्या के अलावा दूसरा कोई चारा ही नही बचेगा।

यह तो महज़ एक रिपोर्टका मामला है जिसके साथ की गई छेड़छाड़ उजागर हो गई है। देश में अब तक कितने घोटालों की रिपोर्टें छेडी़-छाड़ी जाकर चलती कर दी गई होंगी कौन जानता है। रिपोर्टों से छेड़छाड़ के विरूद्ध आवाज़ उठाई जाना बेहद जरूरी है।

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