शुक्रवार, 28 मार्च 2014

जबरदस्ती का चुनावी टिकट



//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
वे नाहरमुँह भागे चले आए और बेहद शर्मिंदगी से बोले-‘‘कम्बख्तों ने कहीं का नहीं छोड़ा, जबरदस्ती टिकटपकड़ा दिया। ऊपर से धमकाया भी है कि-‘‘अगर ज़मानत ज़ब्त हुई तो बेटा तेरी खैर नहीं!’’ उनके साथ घटी इस त्रासद घटना से मुझ पर भी सकतेका दौरा सा पड़ गया है।
वे सुबकते हुए अपनी पीड़ा बयान कर रहे थे-‘‘ भगवान का दिया हुआ सब कुछ है अपने पास, मगर उस निर्दयी ने बिना माँगे चुनाव का टिकट दिलवाकर इस गरीब पर इतना बड़ा अन्याय किया है कि मत पूछो। पता नहीं किस जन्म का पाप है जो आज यह दिन देखने को मिल रहा है। कभी किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत नहीं आई, मगर अब वोटों के लिए हाथ फैलाकर भीख कैसे माँगू समझ में नहीं आ रहा है। जी करता है कि गले में फाँसी का फंदा लगाकर आत्महत्या कर लूँ।’’
मैंने उन्हें सात्वना देते हुए कहा-‘‘देखों, निराशा भरी बातें मत करों, जो होना है वह तो हो गया। नाम वापसी के समय तक कुछ हो सकता हो तो देख लो, किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता से जुगाड़ हो तो सिफारिश लगवाकर टिकट कैंसल करवाने की कोशिश कर लो, पैसे का मुँह मत देखना, जितना खर्च करना पड़े कर लो, तब भी अगर कुछ न हुआ तो फिर लड़ो भैया, ईश्वर की मर्ज़ी के आगे हम भी क्या कर सकते हैं। अब जब ओखली में सर डल ही गया है तो भलाई इसी में है कि परिस्थितियों का सामना करो।’’
वे बोले-‘‘क्या खाकर सामना करूँ? विरोधियों की प्रचंड लहर चल रही है और इन निकम्मों, बदमाशों के पिछले सढ़सठ सालों के कुकर्म मेरे माथे पर आ गए हैं। मैं तो कम्बख्त परचा दाखिल करने से पहले ही हारा हुआ केंडीडेट हूँ। मोहल्ले वालों तक के वोट नहीं पड़ने वाले। घर वाली भी शर्तिया नोटाका बटन दबा कर आएगी।’’
मैंने कहा-‘‘देखों भैया, तुम्हारे सर पटकने से न वोटर पिघलने वाला है और न चुनाव आयोग तुम्हें निर्विरोध विजेता घोषित करने वाला है। हिम्मत हारने से काम नहीं चलने वाला मित्र, चुनावी व्यूहरचना बनाना प्रारंभ करो।’’
वे बोले-‘‘काहे की व्यूहरचना! पार्टी वालों ने साफ कह दिया है कि एक पैसा नहीं देंगे, अपनी गाँठ से लगाओ। तुम्हीं बताओं हारने के लिए कोई अपनी गाँठ की पूँजी खर्च करता है। राजनीति में आदमी कमाने के लिए जाता है या गँवाने के लिए! मति मारी गई थी मेरी जो पार्टी की सदस्यता ले ली, किसे पता था कि कम्बख्त चुनाव गले पड़ जाएंगे। पार्टी का तमाम कार्यकर्ता भी विरोधी उम्मीद्वार से बारगेनिंग में लगा है, एक कमबख्त तो मेरे ही वोट का सौदा कर आया।’’
उपसंहार-कुछ समय बात सुना गया कि वे विरोधी पार्टी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने की विरोधी पार्टी की शिकायत पर चुनाव आयोग में तलब किये गए, जहाँ उन्होंने अपनी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए चुनाव आयोग को उसकी मान्यता समाप्त करने की गुजारिश की है। 
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शुक्रवार, 21 मार्च 2014

बस एक अदद वादा दे दो



//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
चुनाव की बेला निकट है। शर्तिया चुनाव जीतने के लिए साम-दाम-दंड-भेद के अलावा अगर कुछ ज़रूरी है तो वह है एक अदद धाँसू वादा। कितनी भी न्याय-नीति, सुशासन की बातें कर लीजिए, जनता की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला, वह तब तक टस से मस नहीं होगी जब तक उससे एक लार टपकाने वाला वादा नहीं कर लिया जाएगा। जनता-जनार्दन को वोटर में तब्दील कर उसका वोट झड़ाने के लिए भाषणों की स्टेंडअप कॉमेडी के साथ-साथ चंद आकर्षक और लुभावने वादों की झड़ी लगाना अत्यंत आवश्यक है। मेरी ओर से कुछ बेहतरीन वादों के पेटी पैक नमूने प्रस्तुत हैं जिन्हें सचमुच जीतने का इच्छुक उम्मीद्वार बिना किसी रिस्क के आज़मा सकता है।
इन दिनों महँगाई आसमान छू रहीं है। सरकार तो अपने कर्मचारियों-अधिकारियों को महँगाई भत्ता बाँटकर उनका गुस्से पर ठंडा पानी डाल देती है। चुनाव जीतने की ख्वाहिश रखने वाले उम्मीदवारों वोटरों को भी महँगाई भत्ता बाँटने का वादा कर सीट सुरक्षित कर सकते हैं। चुनाव के बाद में महँगाई भत्ता सीधे वोटरों के खाते में जमा करने का वादा कर दें। वोटरों का बैंक तो ज़रूर होता है मगर उनका कोई खाता तो होता नहीं, लिहाज़ा कोई भत्ता जमा करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। बात आई गई हो जाएगी।
गरीबों के लिए सस्ती दरों पर जो गेहूँ-चावल बाँटा जा रहा है, मध्यमवर्गीय वोटरों को जिन्हें मुफ्त का माल नहीं मिल रहा उनके पेट में काफी दर्द है और इस वजह से उनका वोट दिशाहीन हो सकता है। इसलिए उनसे पाँच-पाँच किलो शरबती गेहूँ और आधा किलो भर बासमती राइस प्रति व्यक्ति बाँटने का वादा कर वोटों को मनचाही दिशा दी जा सकती है। घी-तेल के ढाई-ढाई सौ ग्राम के पाउच और कम से कम हफ्ते भर का किराना घर-घर पहुँचाने का वादा कर दिया जाए तो समझ लो वोटर अपने खर्चे पर देश भर में फैले अपने रिश्तेदारों को बटोर कर समारोहपूर्वक आपके नाम का बटन दबाने बूथ पर पहुँच जाएगा। पेट्रोल-डीज़ल, मिट्टी का तेल और रसोई गैस के भाव हमेशा चढ़े रहते हैं। ये ज्वलनशील पदार्थ सुविधाजनक पेकिंग में पैक करवा कर घर-घर बँटवाए जा सकते हैं, इससे फुटकर मतदाता को रिझाया जा सकता है। पेट्रोल-डीज़ल, घासलेट और रसोई गैस की ऐजेंसियाँ बँटवाने का वादा करके वोटरों के प्रभावशाली दलालों को अपने पक्ष में सक्रिय कर सके तो गजब हो जाए। ये लोग तो खुद सारी व्यवस्था जमा कर वोटरों को घेर-घेर कर बूथ तक ले आने की लोकतांत्रिक जिम्मेदारी निभा देंगे।
भारतवर्ष की चुनाव परम्परा में देसी-विदेशी ठर्रे का काफी महत्व रहा है। दरअसल ठर्रा लोकतंत्र के अभिन्न अंग के रूप में लम्बे समय से अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है। पहले के ज़माने के चुनावों में एक अदद पव्वे की आपूर्ति के एक नशीले वादे से काम चल जाता था, परन्तु अब ज़माना बदल गया है, लोगों को रिजल्ट आने तक का कोटा चाहिए। चुनावी सख्तियों के मद्देनज़र यह एक बड़ा मुश्किल काम है, उम्मीद्वारी खतरे में पड़ सकती है। सबसे बढ़िया तरीका यह है कि आप समाज के कुछ दंदफंदी ब्लेक मार्कटियर्स को मुफ्त में देसी-विदेशी शराब के ठेके दिलवाने का पुख्ता वादा कर लें, बाकी का काम वे खुद कर लेंगे।
उम्मीद्वारों के सामने इन दिनों भीड़ पर नियंत्रण रखने वाले छुटभैये नेताओं को साधना एक बड़ा चुनौती भरा काम है। वे थाली के मैंढक की तरह उछल-उछल कर दूसरी पार्टियों के पाले में कूदते रहते हैं। उनसे वादा किया जाए कि उन्हें सोने अथवा हीरे की खदान दिलवाई जाएगी। फिर भी यदि वे न माने तो उनसे कोयले अथवा मुरम-कोपरे, पत्थर की खदान दिलवाने का लालच दे दीजिए, वे नोटों के अंबार का  सुखद स्वप्न आँखों में लिए आपके लिए वोटों का अंबार लगवा देंगे। आजकल सोने-हीरे की खदान से इतना सोना-हीरा नहीं निकल रहा है जितना मुरम-कोपरे और पत्थर की खदानों के ज़रिये पैदा किया जा सकता है।
कहा जा रहा है कि आसन्न चुनावों में इस बार सबसे ज़्यादा अनिर्णय की स्थिति में पड़ा हुआ युवा वर्ग निर्णायक भूमिका निभाने जा रहा है। कम्प्यूटर, टेबलेट, मोबाइल फोन, से लेकर पीज़ा-बर्गर पेप्सी-कोक तक कुछ भी मुफ्त बाँटने का वादा कर इस युवा ऊँट अपनी मनपसन्द करवट बिठाया जा सकता है। जींस, टी शर्ट, आदिदास के जूते भले ही फटे हों मगर हों ब्रांडेड तो देश के ये होनहार अपनी शक्ति ई.वी.एम. में आपके नाम के बटन पर उतार देंगे।
जहाँ तक मुझ जैसे बुद्धिजीवी का प्रश्न है मुझसे तो बस एक अदद रेमण्ड के सूट का वादा कर देना, मैं तुरंत तुम्हारे जाल में फँस जाउँगा और अपना कीमती वोट उम्मीद्वार के घर जाकर दे आउँगा। मेरी बीवी का वोट चाहिए तो एक चंदेरी की साड़ी मेरे हवाले कर देना उसे बूथ तक ले जाने की जिम्मेदारी मेरी, बाकी वो बदन किसका दबाएगी यह मैं नहीं कह सकता।
यदि कोई उम्मीद्वार चुनाव आयोग के डर से अथवा अपने किन्हीं अदृश्य सैंद्धातिक आग्रहों के कारण उपरोक्त में से कुछ भी बाँटने का वादा करने में अपने आप को असमर्थ पाता है तो कोई समस्या नहीं है, बस जनता-जनार्दन को थोड़ा सा डर, भय, आतंक, दंगा-फसाद, मार-काट कत्लेआम का वादा दे देना, भगवान ने चाहा तो वोट आपके पक्ष में पड़ जाएगा। कुछ भी नहीं चाहिए हमारे देश के सम्मानित वोटर को, खूब चुनाव लड़ो, जीतो, सांसद बनो, मंत्री बनो। उसे कुछ दो न दो, एक बस एक अदद वादा दे दो, इस चुनाव में तो आपका काम पक्का बन जाएगा।
            उम्‍मीद्वार खुद अपनी रिस्‍क पर ये वादे करे। चुनाव आयोग का डंडा पड़ने पर मेरी कोई जिम्‍मेदारी नहीं होगी।