शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

पुलिस वालों की पप्पी झप्पी


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट// 
लो, यूँ तो भारतीय पुलिस दुर्व्‍यवहार, गाली-गलौच, मारपीट-ठुकाई, डंडोपचार के लिए भारी बदनामी झेलती आई है, मगर अब जब वह अपने-आप में क्रांतिकारी सुधार के साथ अपराधियों का माथा चूम रही है, प्यार-मोहब्बत, पप्पी-झप्पी का लड़ियल आचरण अपना रही है, तब भी लोगों के पेट में दर्द हो रहा है। लगे हैं आलोचना पर आलोचना ठेलने, बेचारे प्रेमी जीव को सस्पेंड करवा दिया। अरे क्या हुआ जो शुरुआत अपराधियों से हो रही है, धीरे-धीरे शरीफ, सीधे-साधे लोगों को भी पुलिस वालों की पप्पियों और आलिंगन का लाभ मिलेगा। आप देखेंगे इस बदलाव के आश्चर्यजनक परिणाम निकलेंगे।
अभी कुछ ही दिन हुए है दिल्ली में पुलिस वालों ने छात्रों को खूब दौड़ा-दौड़ाकर पीटा है। भले ही बेचारों ने अपनी मातासे कभी चपत तक न खाई हो, मगर मातृभाषाके लिए उन्हें खोपड़ियाँ तुड़वाना पड़ी। पुलिस ज़रा पहले सुधर गई होती तो उन्हें सिपाहियों का वात्सल्यमय आलिंगन और चुंबनों की बौछार मिल सकती थी। पुलिस वाले वाटर कैनन में भरकर प्रदर्शनकारियों पर पप्पियोंकी बौछार कर सकते थे। कानून तोड़ने वालों के आँख-कान-नाक में प्रदूषित पानी की जगह पप्पियाँघुसतीं, तो वे निहाल होकर फिर अँग्रेजी से माथाफोड़ी करने जा बैठते।
पुलिस के चरित्र में यह युगान्तरकारी परिवर्तन मुझे तो बेहद सुखद लग रहा है। आप आजकल दादागिरी से किसी से कुछ नहीं निकलवा सकते। डंडे मारकर ना सत्य बाहर आता है और न नोटों के बंडल। प्यार से आप पिछले जन्म तक की वारदात कबूलवा सकते हैं। और तो और उस पिछले जन्म की वारदात को रफादफा करने के लिए इस जन्म की मुद्रा में धनलाभ भी पा सकते हैं। प्यारके बदले कोई भी सब कुछ प्यारसे देगा। दादागिरी आदमी को उदंड बना देती है। इसी घटना को लें, थानेदार अगर पुलिसिया अंदाज़ में कातिल को तमाचा मार देता तो संभव है कातिल भी पलटकर तमाचा जड़ देता। क्या भरोसा, आजकल बेटे भी बाप को पलट कर चाटा मार देते हैं, बाप कुछ नहीं कर पाता। इसलिए पुलिसवालों को अपने कमीनेपन की वजह से पिटने की नौबत आ जाए इससे पहले ही उसे अखिल भारतीय स्तर पर अपने आचरण में आमूल-चूल परिवर्तन ले आना चाहिए और सभी अपराधियों-निरपराध बंदों को चुंबन सुख बाँटना शुरू कर देना चाहिए। मुँह से ठर्रे का भभका छोड़े बिना पुलिस उन्हें बाहों में जकड़-जकड़कर आलिंगन सुख लुटाएँ फिर देखिए, न घर-घर में पुलिस फोटो लगें तो फिर कहना।
पुलिस में इस अद्भुत किस्म के परिवर्तन से लोग भले अपराध करना न छोड़े लेकिन उसे कबूल करने के लिए वे अवश्य ही दौड़े-दौड़े थाने चले आएंगे। ऐसा होने लगा तो फिर न थानों में इतना पुलिस बल पाल कर रखने की ज़रूरत होगी न कोर्ट-कचहरी, लॉकअप, जेल पर करोड़ों रुपयों का बजट प्रावधान रखना पड़ेगा। बस चंद पप्पियों-झप्पियों से ही काम हो जाएगा। देश अपराध मुक्त हो जाएगा।
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