सोमवार, 22 सितंबर 2014

भावनाओं में बहता पति


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
पतिगण इन दिनों ज़बरदस्त रूप से भावुक चल रहे हैं। पत्नियाँ उन्हें ईश्वरीय मान-सम्मान जो दे रही हैं। कितनी भी खूँखार पत्नी हो इस सीज़न में पतियों के लिए भूखे रहने का पारम्परिक विधान अवश्य निपटाती है, ताकि पति परमेश्वर की सत्ता हमेशा सुरक्षित रहे।
हाल ही में सावन समाप्त हुआ है। पाँच हफ्तों तक प्रत्येक सोमवार पत्नियों ने निर्जला व्रत रखा है ताकि अगले सात जन्मों तक जस के तस वे ही जनाब उन्हें साक्षात पति के रूप में मिलें, जो पिछले सात जन्मों से उनके नाम का पट्टा लिखाए घूम रहें हैं। अब, इतनी लम्बी अवधि तक इन्हीं से अपना नसीब फुड़वाने की योजना है, या दूसरे किसी बेहतर विकल्प की डिमांड रखी गई है, यह तो पत्नियाँ ही जाने, या जाने वे भोले भंडारी जिनके कान में यह रहस्यमय माँग रखी गई है। बहरहाल, पतिदेवगण तो सावन के पूरे महीने भावुक-भावुक से रहे। यूँ कभी धनिया-मिर्च लाकर न देते हों, मगर सावन के महीने में प्रत्येक सोमवार को बेल-पत्री, धतूरा जरूर ढूँढ़-ढूँढ़ कर ले आते रहे।
अभी तीजा गई है, पति देव की सुख-शान्ति और समृद्धि के निमित्त पत्नियों ने दिनभर उपवास किया, रात को जागकर आँखें फोड़ी। कुछ ही दिनों में करवा चौथ आने वाली है, उनकी लम्बी उम्र के लिए पत्नियाँ भूखी रहने वाली हैं। और भी कुछेक छुटपुट तीज-त्योहार इस बीच डाले गए हो सकते हैं, जो पतियों को भावनाओं में बहा ले जाते हों।
पति यदि दारू-खुट्टा हो, मुँह से कम, ज़्यादातर हाथों और लातों से संवाद बनाए रखने में विश्वास रखता हो, या, घर के बाहर रोज़ पिटने वाली गरीब प्रजाऔर घर में नादिरशाहबना फिरता हो, या फिर एकदम उस क्वालिटी का हो जो न लीपने के काम आए न पोतने के, तब भी ऐसे सभी नरपुंगवों की धर्मपत्नियाँ अवश्य ही इस पूरे सीज़न में उसके नाम पर भूखी रहकर अन्न बचाएंगी और भगवान से अपने अखंड सौभाग्यवती बने रहने का वरदान माँगकर पतिदेव को भावुक कर जाएंगी।
यही सीज़न है जब दुष्ट पतियों को पता चलता है कि उनकी पत्नियाँ उन्हें कितना प्यार करती हैं, भले ही वे साल भर उन्हें ठोकने-पीटने और बात-बात में उनकी लू उतारने में अपनी मर्दानगी की आजमाइश करते रहते हों। रात-दिन गालियों की झड़ी लगाने के बावजूद भी यदि वह उस कमीनेपति की लम्बी उम्र की कामना करती है, सात जन्मों तक उसी से पिटते रहने की आकांक्षा रखती है, तो अमर प्रेमकी इससे बेहतरीन अभिव्यक्ति और क्या हो सकती है। ऐसे में थोड़ा बहुत भावुक होना तो बनता है दोस्तों। इसी भावुकता में पति भी ऐसी टंकार लगा कर कभी-कभी पत्नी का ध्यान रखने का सात फेरों के समय लिया गया अपना प्रण पूरा करने का प्रयास करता है -‘‘ऐ हरामज़ादी, होमोगूलबिन कम है तेरा, फालतू निर्जला-उर्जला रहने की ज़रूरत नहीं है, वर्ना लगाऊँगा चार डंडे।’’ अर्थात, ‘‘भूखी तो रह ले, चलेगा! मगर पानी पीती रहियो। अस्पताल ले जाने की नौबत नइ आना चइये। बिल भरने के लिए तेरा बाप नहीं आने वाला।’’
पतियों के यूँ भावनाओं में बह जाने का दौर किसी न किसी बहाने वैसे तो साल भर चलता रहता है, मगर यह सीज़न खास कुछ इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि हर दूसरे दिन पत्नियाँ पतियों को भावुक हो जाने को मजबूर कर देती हैं। भावनाओं में बहता पति बार-बार उपासी रहने से एनिमिक हो गई अपनी पतिव्रता पत्नी को अस्पताल भले न ले जाए, मगर गाड़ी पर बिठाकर मंदिरजरूर ले जाता है, ताकि उस अबला की बढ़े न बढ़े, फोकट में उसकी अपनी उम्र ज़रूर बढ़ जाए।
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सोमवार, 8 सितंबर 2014

मुगलेआज़म पतिदेव


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
दुनिया के सारे पतियों में भारतीय पति सबसे विशिष्ट होता है, क्योंकि वह राजाओं-महाराजाओं की तरह घोड़ी पर सवारी गाँठकर, बैंड-बाजों के साथ पति बना करता है। इस प्रक्रिया में किसी खुर्राट राजा-महाराजा की आत्मा उसमें घुस बैठती है और वह आजीवन महाराजाधिराजबना पत्‍नी पर रौब गाँठता रहता है। रौब गाँठने का यह सिलसिला पति की निजी औकात से निरपेक्ष चलता रहता है। अर्थात पति भले ही परचूनी की दुकान पर कारिन्दा हो या पत्‍नी की कमाई पर ही गुलछर्रे उड़ाने वाला खाली-फोकटिया तीसमारचंद हो, घर में घुसते ही वह अपने आप को मुगलेआजम समझने लगता है। चार गुना पढ़ी लिखी, डॉक्टर-इन्जीनियर पति की प्रोफेशनल पत्‍नी हो तब भी उसे घर में बांदीबन कर ही रहना पड़ता है, क्योंकि मुगलेआज़म को गुस्से में आकर कोड़े बरसाने का ईश्वरीय अधिकार प्राप्त है।
भारतीय पति दुनिया के दूसरे पतियों से इसलिए भी अलग है क्योंकि उसमें पत्‍नी को पीटनेका कौशल जन्मजात रूप से विद्यमान रहता है। पैदा होते ही यदि उसे पत्‍नी उपलब्ध करा दी जाए तो वह पहले उसे पीटेगा, फिर रोने की क्रिया की ओर ध्यान देगा। अपनी ब्याहता को पीटने, गरियाने, दबाने, कुचलने, पंखे पर लटका देने का कौशल वह वहाँ ऊपर ही से सीख कर आता है जहाँ पति-पत्नी के जोड़े फायनल होते हैं। वहीं वह एक कमज़ोर नाजुक सी पत्‍नी अपने लिए छाँट लेता है ताकि बाद में खुद अपनी पिटाई की नौबत न आ जाए।
मंडप में अग्नि के समक्ष जब पति सात फेरे लेता है तो प्रत्येक संकल्प के साथ वह पति का विराट रूप धारण करता जाता है, जैसे पुराने ज़माने में राक्षसगण अपना विराट रूप दिखाकर डराया करते थे। फेरे समाप्त होते ही वह विदाकी ज़िद करने लगता है। बड़े-बूढ़ों को लगता है कि बच्चे को सुहागरात की जल्दी मच रही है, मगर दरअसल उसे पत्‍नी को थप्पड़ मारने की जल्दी मच रही होती है। उसका बस चलता तो वह, वहीं मंडप में नई नवेली दुल्हन को एक ज़बरदस्त कंटापमारकर गृहस्थ जीवन का शुभारंभ करें, मगर अनुभवी पतियों ने उसे पहले ही समझा रखा होता है कि-‘‘मुन्ना पहले ही दिन थाना-कचहरी मत कर लीजो।’’
ईश्वर के बारे में कहा जाता है कि वह सर्वशक्तिमान है, अधिपति है, भाग्यविधाता है, सबका मालिक है। दरअसल यह सब पति के बारे में कहा गया है। तभी तो पति को परमेश्वर कहा जाता है। पति परमेश्वर ! पत्‍नी को पति परमेश्वर की लातें खा-खाकर सृष्टी का संतुलन बनाए रखना होता है।
जो पति, पत्नी को नहीं पीटता वह दुनिया का सबसे घटिया पति होता है और उसे जोरू का गुलाम कहा जाता है। विडंबना है कि गृहस्थ जीवन में सुख-शांति के लिए स्वतंत्रता, समानता, लोकतांत्रिक अधिकारों से बेहद दूर, पति-पत्नी दोनों में से किसी न किसी को किसी न किसी के गुलाम के रूप में देखने की परम्परा सी बन गई है, जबकि गुलामी का युग कब का समाप्त हो चुका है। 
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