सोमवार, 8 सितंबर 2014

मुगलेआज़म पतिदेव


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
दुनिया के सारे पतियों में भारतीय पति सबसे विशिष्ट होता है, क्योंकि वह राजाओं-महाराजाओं की तरह घोड़ी पर सवारी गाँठकर, बैंड-बाजों के साथ पति बना करता है। इस प्रक्रिया में किसी खुर्राट राजा-महाराजा की आत्मा उसमें घुस बैठती है और वह आजीवन महाराजाधिराजबना पत्‍नी पर रौब गाँठता रहता है। रौब गाँठने का यह सिलसिला पति की निजी औकात से निरपेक्ष चलता रहता है। अर्थात पति भले ही परचूनी की दुकान पर कारिन्दा हो या पत्‍नी की कमाई पर ही गुलछर्रे उड़ाने वाला खाली-फोकटिया तीसमारचंद हो, घर में घुसते ही वह अपने आप को मुगलेआजम समझने लगता है। चार गुना पढ़ी लिखी, डॉक्टर-इन्जीनियर पति की प्रोफेशनल पत्‍नी हो तब भी उसे घर में बांदीबन कर ही रहना पड़ता है, क्योंकि मुगलेआज़म को गुस्से में आकर कोड़े बरसाने का ईश्वरीय अधिकार प्राप्त है।
भारतीय पति दुनिया के दूसरे पतियों से इसलिए भी अलग है क्योंकि उसमें पत्‍नी को पीटनेका कौशल जन्मजात रूप से विद्यमान रहता है। पैदा होते ही यदि उसे पत्‍नी उपलब्ध करा दी जाए तो वह पहले उसे पीटेगा, फिर रोने की क्रिया की ओर ध्यान देगा। अपनी ब्याहता को पीटने, गरियाने, दबाने, कुचलने, पंखे पर लटका देने का कौशल वह वहाँ ऊपर ही से सीख कर आता है जहाँ पति-पत्नी के जोड़े फायनल होते हैं। वहीं वह एक कमज़ोर नाजुक सी पत्‍नी अपने लिए छाँट लेता है ताकि बाद में खुद अपनी पिटाई की नौबत न आ जाए।
मंडप में अग्नि के समक्ष जब पति सात फेरे लेता है तो प्रत्येक संकल्प के साथ वह पति का विराट रूप धारण करता जाता है, जैसे पुराने ज़माने में राक्षसगण अपना विराट रूप दिखाकर डराया करते थे। फेरे समाप्त होते ही वह विदाकी ज़िद करने लगता है। बड़े-बूढ़ों को लगता है कि बच्चे को सुहागरात की जल्दी मच रही है, मगर दरअसल उसे पत्‍नी को थप्पड़ मारने की जल्दी मच रही होती है। उसका बस चलता तो वह, वहीं मंडप में नई नवेली दुल्हन को एक ज़बरदस्त कंटापमारकर गृहस्थ जीवन का शुभारंभ करें, मगर अनुभवी पतियों ने उसे पहले ही समझा रखा होता है कि-‘‘मुन्ना पहले ही दिन थाना-कचहरी मत कर लीजो।’’
ईश्वर के बारे में कहा जाता है कि वह सर्वशक्तिमान है, अधिपति है, भाग्यविधाता है, सबका मालिक है। दरअसल यह सब पति के बारे में कहा गया है। तभी तो पति को परमेश्वर कहा जाता है। पति परमेश्वर ! पत्‍नी को पति परमेश्वर की लातें खा-खाकर सृष्टी का संतुलन बनाए रखना होता है।
जो पति, पत्नी को नहीं पीटता वह दुनिया का सबसे घटिया पति होता है और उसे जोरू का गुलाम कहा जाता है। विडंबना है कि गृहस्थ जीवन में सुख-शांति के लिए स्वतंत्रता, समानता, लोकतांत्रिक अधिकारों से बेहद दूर, पति-पत्नी दोनों में से किसी न किसी को किसी न किसी के गुलाम के रूप में देखने की परम्परा सी बन गई है, जबकि गुलामी का युग कब का समाप्त हो चुका है। 
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