शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

उपासना देवी


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
          उपासना देवी को जब से देखा है, मन ही मन आश्वस्त हो गया हूँ कि देश पर खाद्यान्न संकट कभी आ ही नहीं सकता, क्योंकि वे हफ्ते में पाँच दिन निराहारी उपवास करके देश के लिए काफी अनाज बचाती हैं। रोज़ाना कोई ना कोई व्रत-उपवास करना उनका प्रिय शगल है। हफ्ते के पाँच श्येडूल्ड उपवासों के अलावा बचे हुए दो दिनों में भी वे इस फिराक में रहतीं हैं कि कोई तीज-त्योहार आ पड़े तो चट उपवास कर किराना बचा लिया जाए। जैसे, इतवार को किसी देवी-देवता का दरबार खुला नहीं रहता, वीकली ऑफ रहता है, कोई उपवास करने की ज़रूरत नहीं होती, मगर वे तमाम पंचांगों-पोथियों को खंगालकर कोई ना कोई अवसर ढूँढ़ ही निकालतीं हैं, जिसके उपलक्ष्य में उपवास ठोककर घ्येय पूरा कर लिया जाए। बुधवार को आमतौर पर किसी उपवास का प्रचलन नहीं है, सो उनका दिन भारी बेचैनी में गुज़रता है। कलेजे पर भारी बोझ सा लादे वे सारा दिन मातम सा मनाती रहतीं हैं-कि हाय दिन भर से कितना अन्न बरबाद हो रहा है, उपवास होता तो बच सकता था।
          कभी-कभी एक ही दिन में दो-दो, तीन-तीन उपवासों के सुअवसर आ धमकते हैं। कोई और हो तो टेंशन उठ खड़ा हो कि अब किसके लिए उपवास करें! इस भगवान के लिए उपासे रहो तो वे देवी नाराज़ हो जाएँ, उन देवी के लिए उपवास कर लो तो वे ईश्वर खफा हो जाएँ। मगर उपासना देवी को कोई फर्क नहीं पड़ता, वे निरपेक्ष भाव से तीनों आदि शक्तियों के आव्हान में जुटकर, एकसाथ तीनों के लिए उपवास कर लेतीं हैं। उनकी इस समर्पण भावना से जहाँ देवी-देवता प्रसन्न होते होंगे वहीं उनमें निश्चित रूप से आपस में ठन भी जाती होगी। जहाँ एक देव मुदित होकर कहते होंगे-उपासना देवी ने आज हमारे लिए अन्न त्यागा है, दूसरे देव उन्हें हड़काकर कहते होंगे- गलतफहमी में मत रहियो, आज मेरा डेहै, बचपन से इस डेको बच्ची मेरे लिए ही भूखी रहती है। तीसरी देवी जी बीच में कूदकर दोनों से भिड़ जातीं होंगी-चुप रहो तुम दोनों! चूँकि स्त्रियों की समस्या निवारण का विभाग मेरे पास है, इसलिए उपासना मेरे लिए ही की जा रही है। वास्तव में उपासना देवी को इन तीनों से कोई खास मतलब नहीं होता उन्हें तो बस अन्न बचाने का खब्त सवार रहता है जो कि उन्हें संस्कार के रूप में घुट्टी में पिलाया गया है।
          व्रत-उपवासों के प्रति यह अनोखा समर्पण भाव देखकर ही उपासना देवी को इस घर की बहु बनाया गया था। माँ-बाप ने बचपन से उपवास कर-करके जो बचत की थी उसे दहेज में देकर ससुराल वालों को आश्वस्त किया गया था कि आपके घर में पहुँचकर जो अन्न यह प्रतिभाशाली कन्या बचाएगी उससे आपकी तमाम कुँवारी लड़कियों का शादी-ब्याह, जचकी-वचकी सब निबट जाएगी। ससुराल वाले भी दूरदृष्टि से ताड़ गए थे कि लड़के के खानदानी निकम्मेपन से भविष्य में परिवार पर जो संकट आएगा, जब सरकारें एक्सक्लूसिवली महँगाई बढ़ाने के लिए ही गठित की जाएँगी और दालें सौ रुपए किलो, शकर पचास रुपये किलो होकर सबको नानी याद दिलाएगी, तब यह पुण्यात्मा खुद भूखी रहकर हमारा ख्याल रखेगी। पारम्परिक ससुराल धर्म निबाहते हुए इस पर लात-घूसे चलाना भी सुविधाजनक रहेगा, क्योंकि रात-दिन उपासी रहेगी तो मुकाबले के लिए ताकत कहाँ से लाएगी! फिर सबसे बड़ी बात, यूँ रोज़ कोई ना कोई उपवास रहेगा तो इस बात की संभावना तो बिल्कुल सिरे से ही खत्म हो जाएगी कि बहु खुद तो खा-खाकर मुटाए और सास-ससुर को भूखा मारे! बाज़ घरों की बहुएँ इस गुण में जन्मजात पारंगत होतीं हैं।
          उपासना देवी के उपासे रहकर अन्न बचाने की इस निपुणता और लम्बे अनुभव को देखते हुए जबकि वे स्वयं सूखकर काँटे की प्रतिकृति हो चुँकि हैं, चटोरी, खबोर बहु-बेटियों के परिवारों से उन्हें कल्सल्टेंसी के प्रस्ताव भी मिलने लगे हैं। महँगाई के मारे लोग बड़ी आशा से उपासना देवी से टिप्स ले-लेकर अपनी बहु-बेटियों को उपवास करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास कर रहे हैं। बहन बेटियाँ खुद भी स्वप्रेरणा से उपासना देवी से दीक्षा लेकर अन्न बचाने की मुहीम में तन-मन से जुटती जा रही हैं।
     उपासना देवी के अनुयाइयों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है। मुझे पूरी आशा है कि उपासे रह-रहकर बचाए गए दाने-दाने से अंततः देश का खाद्यान्न भंडार समृद्ध हो रहा है। देखा जाए तो देश में मात्र दो शक्तियों की समर्पण भावना की वजह से हमारा यह खाद्यान्न का भंडार कभी खाली नहीं होता और रात दिन खाने वालों के लिए भी हर वक्त अन्न उपलब्ध रहता है। एक तो देश की अधिकांश गरीब-गुरबा आम जनता जिसके नसीब में माता अन्नपूर्णा का आशीर्वाद है ही नही, दूसरी "उपासना देवी" और उनकी अनुयाइनें जो भूखी रहकर इस भंडार को कभी खाली ही नही होने देती हैं। अच्छा है, यह भी आखिरकार एक तरह की देश सेवा ही है जो कि महँगाई के इस विकट दौर में बेहद ज़रूरी है।
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मासिक पञिका कादम्बिनी के अक्‍टूबर-2014 अंक में प्रकाशित 

10 टिप्‍पणियां:

  1. कल 12/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  2. उपवास को इस दिशा में मोड़ देना अच्छी बात है ... आजादी के वक्त अन्न की बड़ी समस्या थी तो नेता जी ने आम जनता से सप्ताह में एक दिन का उपवास करने का आव्हान किया था....
    पर आज भारत के पास पर्याप्त खाद्यान है..और भरी मात्रा में निर्यात करता है... वो अलग बात है कि गरीब आदमी आज भी भूखा सोता है...

    आप मेरे ब्लॉग पर आमंत्रित  हैं. :)

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  3. वाह बहुत सटीक और सार्थक ---
    सादर

    मेरे ब्लॉग में भी पधारें

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  4. वाह बहुत खूब -- सटीक और सच
    सादर ---

    मेरे ब्लॉग में भी पधारें

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