गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014

इनवेस्टर मीट

//व्‍यंग्‍य-प्रमोद ताम्बट//                  
    आजकल देश में इन्वेस्टर मीट का सीज़न चल रहा है। देश-विदेश से बड़े-बड़े इनवेस्टर झुंड के झुंड पधार रहे हैं। हाल ही में हुई एक इन्वेस्टर मीट में मैं भी पहुँच गया, देखा शोरगुल के ज़रिए ऊर्जा का इन्वेस्टमेंट ज़्यादा हो रहा था। इन्वेस्टरों का एक समूह ‘‘ग्राउंड रियलिटी-ग्राउंड रियलिटी’’ चिल्ला रहा था - ‘‘ कहा जा रहा था कि सड़कें इस कदर ऊबड-खाबड़ और उधड़ी हुई हैं कि चलना-फिरना मुश्किल है। सड़कें ऐसी होना चाहिए कि खाया-पीया आँतों में हिले बगैर पच जाए और किसी को पता भी न चले। पहले रद्दी सड़कों को ठीक करवाया जाए फिर इन्वेस्टमेंट के बारे में सोचा जाएगा।’’
इतना सुनना था कि इन्वेस्टरों का दूसरा समूह गरजने लगा-‘‘ये लोग लक्झरी कारों, स्कूटर, मोटर-साइकिलों की बिक्री बढ़ाने के लिए सड़कें ठीक करवाना चाहते हैं, मगर यदि सड़कें ही चिकनी हो गई तो फिर हम क्या भुट्टे भूनेंगे ? हमारे टायर-ट्यूब कैसे बिकेंगे। हमारी फेक्ट्रियों में ताले लग जाएँगे ताले! श्रीमान यदि आप चाहते हैं कि हम भी रुचि लेकर इन्वेस्टमेंट करें तो आपको सड़कों को यथास्थिति में बनाए रखना होगा। यही नहीं, बल्कि उन्हें और भी ज़्यादा बरबाद करने के लिए वैज्ञानिक विधियों को अपनाना होगा ताकि हमारे साथ-साथ गाड़ियों के शॉकप बनाने वालों का भी फायदा हो। चिकित्सा-व्यवसाइयों को भी इससे अच्छा धंधा मिलेगा, क्योंकि गढ्ढों में गाड़ियाँ दौड़ाने से लोगों की रीढ़ की हड्डियाँ भी टूटेंगी।’’
                एक तीसरा इन्वेस्टरों का समूह उधर हल्ला मचाने लगा-‘‘श्रीमान! आपके प्रदेश में बिजली का कुप्रबंधन कितनी बड़ी बाधा है जानते हैं आप? आखिर हम इन्वेस्ट करे तो कैसे करें? और किसी को मिले न मिले, हमें भरपूर बिजली मिलना चाहिए!’’ इतना सुनना था कि चौथा समूह गरजने लगा-‘‘आ हा हा हा हा ! मतलबियों, भरपूर बिजली मिलने लगेगी तो हम क्या पचकुट्टे खेलेंगे। हमारे जनरेटर, इनवर्टर, यू.पी.एस, और मोमबत्तियाँ क्या तुम्हारा बाप खरीदेगा! श्रीमान, बिजली का प्रबधंन तो कुसे कु-तरहोना चाहिए।’’ कूलर, पंखे, फ्रीज, टी.वी. बल्ब, ट्यूबलाइट और बिजली से चलने वाले दूसरे उपकरण बनाने वाले फौरन उठकर खड़े हो गए और धमकाने की मुद्रा में चिल्लाने लगे-‘‘हम भी पचकुट्टे खेलने के लिए नहीं बैठे हैं यहाँ, भरपूर बिजली होगी तभी तो हमारा माल बिकेगा वर्ना ग्राहक को क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो हमारा माल खरीदेगा।’’
                एक अन्य समूह खड़ा हुआ और चीखने लगा-‘‘पानी कहाँ है श्रीमान! आज सुबह होटल में हम कितना परेशान हुए हम ही जानते हैं। जब नहाने धोने को पानी नहीं है तो प्रदूषित करने के लिए कहाँ से मिलेगा! कान खोल कर सुन लो, हमें चौबीस घंटे पानी की उपलब्धता और उसे प्रदूषित करने का फ्री लायसेन्स चाहिए, वर्ना हम तो ये चले। बोतलबंद पानी का धंधा करने वाले इन भावी प्रदूषणकारियों की वकालत में नारे बाजी करने लगे-‘‘प्रदूषणकारियों संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं। फिर उन्होंने भी अपनी माँग पेश की -‘‘ढूँढ़-ढूँढ कर पानी का एक-एक स्त्रोत प्रदूषित करवाएँ श्रीमान, आखिर हमें भी अपनी बोतलें बेचनी हैं।’’
                एक-एक कर कई इन्वेस्टर अपने धंधे में रोड़ा बनने वाले दूसरे इन्वेस्टर की टाँगें खीच रहे थे। सही भी है, यदि एक को अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराने के चक्कर में दूसरे के पेट पर लात पड़ती हो तो कौन इन्वेस्ट करेगा। उम्मीद है कि आने वाले समय में सभी इन्वेस्टरों की समस्याओं का एकजाई समाधान पहले से ही सोचकर रखा जाएगा ताकि किसी को तकलीफ न हो।
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1 टिप्पणी:

  1. अभी हाल ही में इंदौर में हुयी एक ग्लोबल इन्वेस्टमेंट मीट
    में भी बड़े बड़े उद्योगपति आये थे, सभी कई हज़ारो करोड़ का इन्वेस्टमेंट करने का वादा करके गए हैं, अब देखिये क्या होता है . ये सब एक दिखावा था या फिर वास्तविकता , ये तो आने वाला समय ही बताएगा !

    हमारे मानीय मुख्यमंत्री शिवराज जी अक्सर जहा भी जाते हैं मध्य प्रदेश के विकास के बहुत डंके पीटते हैं ! मध्य प्रदेश को नंबर वन बताते हैं नंबर वन का तो मुझे पता नही मगर यहाँ की सड़को की जो हालात है, यहाँ के गावो में जिस तरह के घरो में लोग रहते हैं, जो कच्ची सड़को की भरमार है उसे देखकर ऐसा कुछ नही लगता. शिवराज जी केवल गावो में बिजली दे देने से आप मध्य प्रदेश को नंबर वन नही बना सकते !आपके प्रदेश प्रदेश में तो रोडवेज विभाग ही नहीं है, यात्रियों को आने जाने के लिए बहुत परेसानी का सामना करना पड़ता है , प्राइवेट बस वाले न समय के पावंद हैं और न ही किराए के.

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