शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

आदमी नहीं मरता



 व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट
तम्‍बाकू की वकालत करने वालों के हौसले देखकर कई सौदाइयों की हौसला अफजाई हुई है और अब वे भी अपना-अपना धंधा चमकाने के लिए अपनी क्रांतिकारी दलीलों के साथ मैदान में कूँदने की तैयारी कर रहे हैं। सबसे पहले सीना फूलाने वालों में शराब लॉबी के सज्‍जन लोग होंगे। बयान आने ही वाला है कि-शराब पीने से कोई नहीं मरता। शराब पीकर आदमी जानवर नहीं बनता न अपनी बीवी को पीटता है। शराब पीने से कभी किसी का लीवर नहीं सड़ता। शराब से कभी किसी के घर के बरतन-भांडे़ नहीं बिकते। इसलिए इसे घर पहुँच व्‍यवस्‍था के अन्‍तर्गत लाया जाना चाहिए। पाउचों और बोतल बंद पानी की तरह इसे स्‍टॉल-स्‍टॉल पर उपलब्‍ध कराया जाना चाहिए और तो और मुन्‍सीपाल्‍टी के नलों के ज़रिए इसे घर-घर पहुँचाने का व्‍यापक प्रबंध किया जाना चाहिए।
गाँजा, भाँग, चरस, कोकीन, हेरोइन आदि-आदि पदार्थों के समर्थक भी एकजुट होने की फिराक में हैं। इनका यह मत स्‍ट्रांग होने ही वाला है कि- इन अमृत तुल्‍य पदार्थों के सेवन से कभी कोई नहीं मरता। ड्रग एडिक्‍शन एक भ्रम है। नशाखोरी एक दुष्‍प्रचार है। इससे कभी किसी का कुछ बुरा नहीं होता, बल्कि अर्थव्‍यवस्‍था और इंसान दोनों को पंख लग जाते हैं।
इनकी देखा-देखी मिलावट के क्षेञ के विद्वान भी अपनी बिरादरी को सपोर्ट करने वाले शक्तिशाली जन-प्रतिनिधि की तलाश में लग गए हैं। उन्‍हें भारी अफसोस है कि उन्‍होंने समय रहते चुनाव में अपना आदमी नहीं खड़ा किया। उनका भी सीना ठोककर कहना है कि-“मिलावट से कोई नहीं मरता। पिछले सढ़सठ सालों से हल्‍दी में पीली मिट्टी, मिर्च पाउडर में ईट का चूरा और धनिया में घोड़े की लीद मिलाई जाती आ रही है, आज तक किसी के मरने का कोई समाचार नहीं है। खान-पान की कौनसी सामग्री नकली नहीं बनती, कभी किसी की मौत हुई है? हमारे देश में तो मरीज़ लोग नकली दवाइयों से ही ठीक होते हैं और ह्रष्‍ट-पुष्‍ट बने रहते हैं। लिहाज़ा मिलावट और नकली उत्‍पादों के संरक्षण-संवर्धन के लिए शीध्र कुछ किया जाना चाहिए। अलग से एक मंञालय बना दिया जाए तो मिलावटी और नकली उत्‍पादों में इफरात वृद्धि की जा सकती है।
फल-सब्जि़यों और तमाम तरह के कृषि उत्‍पादों में पेस्‍टीसाइड्स के इस्‍तेमाल से लोगों का स्‍वास्‍थ खराब होने की अफवाहें आम हैं, मगर इन्‍हें खाकर कभी किसी के मरने की खबर सुनी है? सुनी भी होगी तो वह सरासर झूठ है। बेवजह पेस्‍टीसाइट्स को ज़हर बताकर इन्‍हें बंद करवाने का षड़यंञ रचाया जाता है। यह लॉबी तो इस बात की भी सिफारिश करवाने की फिराक में है कि पेस्‍टीसाइट्स को नमक और चटनियों की तरह थाली में परोसकर खाने की प्रथा को प्रचलन में लाने के लिए कुछ कद्दावर जन-प्रतिनिधियों का समर्थन मिल जाए तो पेस्‍टीसाइट के उत्‍पादन के सारे रिकार्ड टूट पड़े।
इधर हाल ही में जयपुर में खून के नाम पर थैली में लाल रंग का पानी भरकर बेच देने की अद्भुत घटना सामने आई है। किधर हैं महान लोग, आओ और मुनादी करो कि शरीर में खून की जगह लाल रंग का पानी चढ़ाने से कभी कोई नहीं मरता, क्‍योंकि आदमी का खून वैसे ही पानी हो चुका है। आदमी यूँ ही नहीं मरता।