गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

आभार से लदे-फदे


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//

 वे हर वक्त आभारी होने को तत्पर रहते हैं। अल्ल सुबह से लेकर देर रात तक वे आभार से इस कदर लद-फद जाते हैं कि उनकी थुल-थुल काया देखकर भ्रम होता है कि वे चर्बी से लदे हुए हैं या आभार से।

रोज़ सबुह उठते ही वे ईश्वर के आभारी होते है कि उसने उन्हें नींद में ही उठा नहीं लिया। फिर नहा-धो चुकने के बाद इसबघोल, लाइफबॉय साबुन और जल देवता का आभारी होते हैं। चाय-नाश्ता करने के बाद वे अन्न देवता का एक तिहाई आभारी होते हैं, बाकी दो तिहाई लंच और डिनर के लिए शेष रखते हैं। अखबार पढ़ने के बाद वे माँ सरस्वती का आभारी होते हैं क्योंकि उन्हीं की कृपा से अखबार में उनके खिलाफ कोई खबर प्रकाशित नहीं होती, बावजूद इसके कि वे सामाजिक जीवन में खबरों के बड़े उत्पादक हैं। कल ही उन्होंने पढ़ाई-लिखाई छुड़वाकर गाँव से लाई मासूम बच्ची को ठीक से कपड़े-बरतन साफ न करने पर मार-मार कर अधमरा कर दिया था, फिर न्याय के देवता का आभारी होकर फारिग हो गए कि उन्होंने उन्हें पुलिस-कोर्ट-कचहरी-जेल के लफड़े से बचाए रखा।

घर के बाहर कदम रखते ही वे अपने दो पहिया वाहन का आभारी हो लेते हैं क्योंकि वह चोरों के साथ नहीं चला गया। बाबा आदम के ज़माने से उनके दलाली के धंधे में कंधे से कंधा मिलाकर साथ रहने के लिए उसका पुनः पुनः आभारी होना भी नहीं भूलते। फिर अपने ठीए पर पहुँचकर दुकान के सभी तालों का आभारी होते-होते वे कागज़ पर बनाकर तिजोरी पर चिपकाए गए तिलस्मी यंत्र का आभारी होते हैं कि उसने रात भर तिजोरी में रखे उनके काले धन की रक्षा की।

अब वे अपने ठीए में स्थापित छोटे से मंदिर के सामने बैठकर सर्वशक्तिमान ईश्वर के सभी अनुकम्पाओं के लिए उसका आभारी होते हैं। वे ईश्वर के आभारी होते है उस गरीबी, महँगाई-बेरोजगारी के लिए जिसकी वजह से उनका ब्याज का धंधा चलता है। वे ईश्वर का आभारी होते हैं उस भ्रष्टाचार के लिए जिसकी बहती गंगा में वे भी हाँथ-पाँव मारकर अपनी तिजोरी का भार बढ़ाते जाते हैं। वे आभारी होते हैं ईश्वर का उस अपराध जगत के निर्माण के लिए जिसके कारण वे पुलिस-प्रशासन, कोर्ट-कचहरी के बीच समाज सेवा की अपनी छोटी सी भूमिका निभाकर अपने वारे-न्यारे कर लेते हैं। वे ईश्वर का आभारी होते हैं उस सामाजिक राजनैतिक व्यवस्था के सृजन के लिए जिसमें वे जहाँ भी हाँथ डालते हैं पाँचों उंगलियों में घी लिपटा हुआ चला आता है।

शाम की बत्ती जलते ही वे रोशनी के देवता का आभारी होने के साथ-साथ थोड़ा सा भावुक होकर उनके जीवन में आई नई रोशनी के लिए भी लगे हाथ उसका आभारी हो लेते हैं जिसने सही समय पर उनके अंधकार पूर्ण जीवन में प्रकट होकर उन्हें भला आदमी बनने से बचा लिया। खुदा न खास्ता अगर वे भला आदमी बन जाते तो इस तिलस्मी दुनिया में दर-दर की ठोकरे खाते फिरते और इस खूबसूरत दुनिया का लुत्फ ही नहीं उठा पाते।

अब रात हो गई है। दिन भर किए कुकर्मों के लिए उन्हें माफ कर देने के लिए सभी देवी-देवताओं का आभारी होकर वे ज्यादा नहीं चार पैग चढ़ाएंगे और खाना खाकर बचा हुआ एक तिहाई आभार अपनी आँखों में लिए निद्रा देवी को समर्पित हो जाएंगे। रात में अगर ठीक समय पर नींद खुल गई तो किसी अज्ञात देवता का आभारी होने में देर नहीं करेंगे जिसने उन्हें बिस्तर पर पेशाब करने से बचा लिया।     

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