रविवार, 31 मई 2020

आत्‍मनिर्भर बनो ट्रेन बनो


//व्‍यंग्‍य-प्रमोद ताम्बट//
स्टेशन पर एनाउन्समेंट गूँजा- मुंबई से चलकर इंदौर, हैदराबाद, जयपुर, बिलासपुर के रास्ते छपरा जाने वाली धारवाड़-गोरखपुर एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से एक पखवाड़ा विलंब से चल रही है। यात्रियों से निवेदन है कि वे रेल प्रशासन का सहयोग करें। यात्रियों की सुविधा के लिए रेल विभाग दृढ़संकल्पित है। धन्यवाद। टिंग-टाँग।
मैंने एनाउंसमेंट में बताए गए रूट का खाका अपने दिमाग में खींचने की असफल कोशिश की एवं लपककर पास खड़े टीसी को पकड़ लिया और पूछा- भाईसाहब, मुझे लखनऊ  जाना है, जिस गाड़ी का अभी-अभी एनाउंसमेंट हुआ उसमें बैठ जाऊँ क्या?
टीसी बोला- एनाउंसमेंट में लखनऊ  का नाम आया क्या?
मैने कहा- नहीं, सुना तो नहीं।
वह बोला-तो कैसे बैठ जाओगे? पिताजी की ट्रेन है क्या?
मैने कहा- सर नाम तो भोपाल का भी नहीं सुना, तो फिर वह गाड़ी भोपाल क्यों आ रही है?
वह बोला-ससुराल है उसकी। तुमसे पूछकर भोपाल आएगी क्या गाड़ी?
मैंने कहा- मगर एनाउंसमेंट ......
वह बात काटता हुआ बोला-ऐसा कहीं लिखा हुआ है क्या कि गाड़ी जिस स्टेशन पर नहीं आ रहीं है वहाँ एनाउंसमेंट नहीं किया जा सकता?
मैं निरुत्तर हो गया। मैंने याचना पूर्वक कहा-साहब कोई तरकीब बताइये। मुझे किसी भी हालत में लखनऊ  पहुँचना है। दूसरा कोई साधन नहीं है। क्या करूँ बताइये।
वह बोला- आत्मनिर्भर बनो। जैसे हज़ारों मजदूर, औरतें, बच्चे रेल के भरोसे न बैठकर पैदल ही अपने गणतव्य की और कूच कर गए हैं। तुम भी निकल लो। भगवान ने चाहा तो ट्रेन से पहले लखनऊ  पहुँच जाओगे। ट्रेन का कोई भरोसा नहीं है। आत्मनिर्भर हो गई है न, तुम भी आत्मनिर्भर बन जाओ। निकल लो।
मैंने कहा-मज़ाक मत करिये साहब। मुझे तो लखनऊ  का रास्ता भी नहीं पता।
वह बोला- भाई गूगल कर ले। ट्रेनें भी आजकल गूगल से ही चल रही हैं। आ गई, आ गई- नहीं आई, नहीं आई। और नहीं तो ये सामने रही पटरी, पकड़ले, और निकल जा।
मैंने कहा- नहीं नहीं, मैं इतना लम्बा रास्ता पैदल नहीं चल सकता। मैं तो ट्रेन से ही जाऊँगा। मुझे भारतीय ट्रेनों पर पूरा भरोसा है। परन्तु ऐसा तो नहीं होगा न कि ट्रेन मुझे लखनऊ  की बजाय अहमदाबाद पहुँचा दे? गूगल का कोई भरोसा तो है नहीं।
वह बोला- बिल्कुल हो सकता है। क्या फर्क पड़ता है। वैसे भी लॉकडाउन में सारे शहर एक जैसे होते हैं।
मैंने कहा- आप मज़ाक बहुत अच्छा कर लेते हो। मगर मेरी समस्या को समझिये। मुझे किसी भी कीमत पर लखनऊ  पहुँचना है।
वह रुष्ठ हो गया। झल्लाकर बोला- अरे यार, रेल्वे ने क्या हरेक को यहाँ-वहाँ पहुँचाने का ठेका ले रखा है? चले आए मुँह उठाकर, लखनऊ  जाना है, लखनऊ  जाना है।
मैंने कहा- साहब टिकट है मेरे पास। दस गुना ज्यादा पैसा देकर खरीदा है। अब आप कह रहे हैं कि ठेका ले रखा है क्या? क्या मतलब है। अरे जब पहुँचाना ही नहीं था तो टिकट दिया क्यों?
वह बोला- अबे तो टिकट तो बहुतों को मिलता है। सब लखनऊ पहुँच जाते हैं क्या? मेरा माथा मत खाओ। जिसने टिकट दिया है उससे बात करो।
मैंने कहा- माथा न खाऊँ तो क्या खाऊँ? मज़ाक बना रखा है आप लोगों ने। एक तो ट्रेन एक पखवाड़ा विलम्ब से चल रही है, ऊपर से पता ही नहीं है कि लखनऊ  जाएगी या नहीं जाएगी।
वह बोला- यार तो जहाँ जाएगी वहाँ चले जाओ। बाद में एडजस्ट कर लेना।
मैंने कहा- अरे तो भोपाल आएगी कि नहीं इसकी क्या गारंटी है?
वह बोला- भोपाल में एनाउंसमेंट हो रहा है न?
मैंने कहा- हाँ, सो तो है।
वह बोला- तो क्या हमें पागल कुत्ते ने काटा है जो उसे यहाँ आना नहीं है और हम गला फाड़-फाड़कर एनाउंसमेंट कर रहे हैं?
मैं फिर निरुत्तर हो गया। थोड़ी देर पहले कह रहे थे, कहीं लिखा है क्या कि जहाँ ट्रेन नहीं आएगी वहाँ एनाउंसमेंट नहीं कर सकते, अब कह रहे है पागल कुत्ते ने काटा है क्या।
अचानक फिर टिंग-टाँग का स्वर गूँज उठा और एनाउंसमेंट होने लगा- मुंबई से चलकर हावड़ा, झारसुगड़ा, त्रिवेंदम के रास्ते छपरा जाने वाली धारवाड़-गोरखपुर एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से अनिश्चितकालीन विलंब से चल रही है। यात्रियों से निवेदन है कि वे रेल प्रशासन का सहयोग करें। यात्रियों की सुविधा के लिए रेल विभाग दृढ़संकल्पित है। धन्यवाद। टिंग-टाँग।
मैंने पास की बैंच पर आड़े हो गए उसी टीसी को घूर कर देखा। टीसी कंधे उचकाता हुआ बोला- बोल तो रहे हैं, आत्मनिर्भर बनो, पैदल निकल लो। हमारी ट्रेन भी अब आत्मनिर्भर हो गईं हैं। या फिर एक काम करो, खुद ही ट्रेन बन जाओ। आत्‍मनिर्भर बनो, ट्रेन बनो, एक ही बात है।
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ऑनलाइन विवाह का ऑनलाइन निमंत्रण



//व्‍यंग्‍य-प्रमोद ताम्बट//

ईश्‍वर की असीम अनुकम्पा से हमारे पुत्र चि. फलांना फलांना (बिल्लू) का ऑनलाइन शुभविवाह सौ.कां. ढिकाना ढिकाना (पम्मी) के साथ सम्पन्न होना सुनिश्चित हुआ है। अतः आप सबसे विनम्र अनुरोध है कि लग्न मुहूर्त ज्येष्ठ माह की फलां फलां तारीख को फलां फलां समय पर अपने-अपने लैपटॉप, डेस्कटॉप, टेबलेट, मोबाइल इत्‍यादि पर उपस्थित रहने का कष्ट करें। विवाह अनुष्ठान का सीधा प्रसारण फेसबुक लाइव, गूगल मीट, ज़ूम, स्काइप, इन्स्टाग्राम इत्यादि पर किया जावेगा जिसके लिए आवश्‍यक लिंक इत्यादि आपको विवाह पूर्व वाट्सअप कर दी जाएंगी।
इस शुभ-विवाह में हमारा पुत्र चि. फलांना (बिल्लू) सिनसिनाटी, यूनाइटेट स्टेट्स ऑफ अमेरिका से एवं श्री/श्रीमति फलां फलां की पुत्री सौ.कां ढिकाना (पम्मी) वैंकूवर, कनाड़ा से ऑनलाइन सम्मिलित होंगे। वर के माता-पिता भोपाल, मध्यप्रदेश से एवं वधु के माता-पिता गुलबर्गा, कर्नाटक से ऑनलाइन रहकर वर-वधु को आशीर्वाद देंगे। विधि-विधान पूर्वक विवाह सम्पन्न कराने की ज़िम्मेदारी काशी के प्रकांड पंडित श्री श्री 101 फलां फलां महाराज द्वारा ऑनलाइन निर्वहन की जाएगी एवं उनके सहायक के रूप  में उज्जैन के पंडित श्री श्री 51 ऑनलाइन उपस्थित रहेंगे। आरती की थाली में दक्षिणा हेतु पंडितजी का पेटीएम नम्बर निमन्त्रण के फुटनोट में उल्लेखित है।
विवाह की समस्त औपचारिकताओं के पश्‍चात ऑनलाइन उपस्थित समस्त घराती एवं बराती वर-वधु को अपना आशीर्वाद केश अथवा काइंड में दे सकते हैं। केश के लिए वर-वधु का बैंक एकाउन्ट नम्बर, पेटीएम नम्बर, गूगल पे, फोन पे इत्यादि के डिटेल निमन्त्रण के फुटनोट में दे दिए गए हैं। काइंड में आशीर्वाद हेतु हमारा एवं समधियाने का डाक पता नीचे लिखा गया है, आप अमेज़न, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, इत्यादि किसी भी खरीद एप से ऑनलाइन आर्डर कर डिलिवरी सीधे हमें पहुँचा सकते हैं।
विवाह के अन्त में स्वरुचि भोज का आयोजन है जिसके लिए खाद्य सेवाओं ज़ोमेटो, उबर ईट, इत्यादि पर व्यवस्था की गई है जो कि सांय 7 बजे से आपके जागते रहने तक डिब्बाबंद पद्धति से आपको उपलब्ध करा दिया जाएगा। आप चाहें तो लोकल स्तर पर अपने किसी पसंदीदा ऑनलाइन खाद्य प्रदाता से अपनी पसन्द का खाना मंगा सकते हैं जिसके लिए आपकी इच्छा अनुसार आपको ऑनलाइन भुगतान कर दिया जाएगा। खाने में किसी प्रकार के परहेज की स्थिति में आप स्वयं घर पर ही अपना परहेजी खाना बनाकर खा सकते हैं।
आप सभी से विनम्र अनुरोध है कि इस ऑनलाइन विवाह के ऑनलाइन निमंत्रण को व्यक्तिगत उपस्थिति मानकर कृपया नियत समय पर सपरिवार ऑनलाइन रहकर वर-वधू को आशीर्वाद प्रदान करने का कष्ट करें।
विशेष निवेदन- अपने ऑनलाइन उपस्थित रहने, नागिन डांस, भंगड़ा व खाने-पीने इत्यादि की ताज़ा तस्वीरे वाट्सअप पर तत्काल हमसे साझा करने का कष्ट करें ताकि समस्त तस्वीरें इन्स्टाग्राम पर एलबम के रूप में संकलित की जा सके।
ऑनलाइन विनीत - वर के माता-पिता भोपाल, म.प्र. से एवं वधू के माता-पिता गुलबर्गा, कर्नाटक से।
ऑनलाइन स्वागतातुर- वर के चाचा-चाची घाना, अफ्रिका से एवं ताऊ-ताई मस्कट, ओमान से। वधु के चाचा-चाची गुलू, उगांडा से एवं ताऊ-ताई वूहान, चाइना से।
ऑनलाइन दर्शनाभिलाषी- वर के मामा-मामी (1) लिसेस्टर, ग्रेट ब्रिटेन से एवं (2) थाना, महाराष्ट्र से। वधु के मामा-मामी (1) दुर्ग, छत्तीसगढ से एवं (2) ओस्लो, नार्वे से।  वर के मौसा-मौसी रावेत, पूणे इंडिया से एवं वधु के मौसा-मौसी श्रीकाकूलम, आंध्रप्रदेश से।
कृपया अवश्‍य अवश्‍य ऑनलाइन पधारकर हमारा मान बढ़ाएँ।
बाल आग्रह भोपाल से छोटू  - अमाले बैया की शादी में जलूल जलूल ऑनलाइन होना।
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सोमवार, 18 मई 2020

कोरोना काल में रचनात्‍मकता


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
लॉकडाउन में लोगों की रचनात्मकता उफन-उफनकर निकली पड़ रही हैं जिसने जीवन में कभी रचनात्मक का नहीं जाना वह भी, जो हाथ में आए उठाकर रचनात्मक हुआ जा रहा है। पुराने जमाने के बाप आज होते तो लट्ठ लेकर अपनी औलादों पर पिल पड़ते- सालों, बहुत रचनात्मकता सूझ रही है? कोई ढंग का काम कर लो तो जीवन सुधर जाएगा। बापों की इसी घुड़की की वजह से बहुत सारे लोग अब तक नीरचअर्थात अरचनात्मकज़िन्दगी जी रहे थे। लॉकडाउन ने उनकी उसी दबी-कुचली रचनात्मकता को खोद-खोद कर बाहर निकाल दिया है।
ज़्यादातर मर्द किचन में रचनात्मक हो रहे हैं। जो चीज़ बीवी बनाने से साफ-साफ मना कर दे उसे बनाकर रचनात्मकता का सुख ले रहे हैं, फिर भले ही वह पापड़ भूनने की रचनात्मकता हो। लौकी, तुरई, कद्दू जैसी नीरस सब्ज़ियों के पकवान बना-बनाकर रचनात्मक शोषण में लगे पड़े हैं। वैसे तो किचन पारम्परिक रूप से महिलाओं की रचनात्मकता का क्षेत्र रहा है मगर सदियों से रोज़ किचन में खटने के बावजूद भी उन्हें कभी रचनात्मक होने का श्रेय नहीं मिला। मात्र महीना भर वही काम करके पुरुष लोग एक-दूसरे की पीठ ठोके ले रहे हैं।
किचन में तो कई लोगों की रचनात्मकता विकट किस्म की हो पड़ी है। वे पूरे हलवाई बनने पर उतारू हैं। माफ कीजिएगा हलवाईनहीं आजकल शेफकहा जाता है। तो ये नव शेफ गण ऐसे-ऐसे आयटम बना-बनाकर बमुश्किल हासिल किया हुआ घर का सारा किराना बरबाद कर रहे हैं जो शादी पार्टियों या बड़ी-बड़ी मिठाई की दुकानों में ही दिखाई पड़ते हैं। कुछ लोग बेकरी आयटमों में हाथ आजमा कर आटा-मैदा चीनी का सत्यानाश कर रहे हैं तो कुछ लोग जलेबी, इमरती बनाने की असफल कोशिशों में लगे हैं।
रचनात्मकता का यह दौरा लेखन में भी देखा जा सकता है। जो हमेशा काम-धंधे और पैसा कमाने की चिंता में जीवन-यापन करते रहें हैं वे कविता लिखने पर उतारू हैं। शेरो-शायरी लिख-लिख कर गालिब और ज़ौक की आत्मा को झकझोरा जा रहा है। कोरोना काल है तो लेखन की रचनात्मकता का केन्द्र बिन्दु ज़ाहिर है कोरोना ही होगा। कोरोना पर दोहा, चौपाई, कविता, सानेट, शायरी, व्यंग्य, व्‍यंग्‍य चित्रों, चुटकुलों, वन लाइनरों की बाढ़ आ गई है। उन्हें लग रहा है इस बाढ़ में कोरोना ज़रूर डूब मरेगा।
किचन और लेखन यह दोनों गूढ़ विषय जिन महानुभावों से नहीं सधते उनके लिए रचनात्मकता का तीसरा क्षेत्र है बागवानी। यूँ कभी ज़िन्दगी में गमले में पानी न डाला गया हो मगर आजकल वे हाथ में खुरपा-खुरपी लेकर अपनी बीवी के तैयार किए किचन गार्डन की ऐसी-तैसी करने पर तुले नज़र आ रहे हैं। लगे हैं ज़बरदस्ती पौधों की कटाई-छटाई, रिपॉटिंग, ग्राफ्टिंग, एयर लेयरिंग करने में। उन्हें कौन बताए कि भैया फिलहाल इन सब कामों को करने का मौसम नहीं है। पानी भर देते रहो पौधों में। मगर मुश्किल यह है कि पानी दिन भर तो नहीं दिया जा सकता न! सो जो कुछ कर के टाइम काटा जा सके वह कर रहे हैं।
कुछ भाई लोग तो रचनात्मकता को बड़े ही खतरनाक क्षेत्र में खोज रहे हैं। एक भाई साहब का मैसेज आया मेरे पास - घर में दारू बनाने की विधि आती है क्या। मैंने कहा- भाई इतने ज़्यादा रचनात्मक मत बन जाओ कि लेने के देने पड़ जाए। फिलहाल घर में ही क्वारनटाइन हो, दारू बनाने लगोगे तो जेल में क्वारनटाइन होना पड़ेगा।
देखते चलिए, कोरोना काल में रचनात्‍मकता और कितने दिन दिलो-दिमाग पर तारी रहती है।   

शुक्रवार, 15 मई 2020

कोरोना के साथ रहना सीखना होगा


//व्‍यंग्‍य-प्रमोद ताम्बट//
बोल रहे हैं कोरोना के साथ रहना सीखना होगा। अब बोल रहे हैं, पहले ही बोल देते। क्यों डेढ़ महीने से देश को बंद कर रखा है। पहले तो बड़े गा-गाकर बोलते रहे, कोरोना को हराना है कोरोना को हराना है, अब अचानक बोलने लगे कोरोना के साथ रहना सीखना होगा। हम तो सीख ही लेते। जैसे दुनिया भर के वायरस बैक्टेरिया के साथ रहना सीख कर बैठे हैं वैसे ही कोरोना के साथ भी रहना सीख लेते। ,?
घर में छिपकली, मकड़ी, काकरोज, चूहों के साथ रहना सीखते है न? कीट-पतंगों और खटमल-मच्छरों के साथ भी रह लेते हैं। कोरोना कौन सी बड़ी चीज़ है, उसके साथ भी रहना सीख लेंगे। ऐसी कोई बहुत बड़ी बात नहीं है।
बड़े-बड़े बालों के झुरमुट और कौवे के घोंसलों सी दाढ़ी के साथ कोई कितने दिन रह सकता है? लेकिन इस लॉकडाउन में हमने रहना सीख लिया है। इस भयानक रूप में देखकर आस-पड़ोस के बच्चे हमसे डरने लगे हैं। शोड़षियाँ हिकारत की नज़रों से देखने लगी हैं। लेकिन हमने ऐसे अघोरी बाबाओं की तरह रहना सीख लिया है। लॉकडाउन दो-चार पखवाड़े और चले तो अड़ोसी-पड़ोसी बच्चे, नादान शोड़षियाँ भी धीरे-धीरे बर्दाश्‍त करना सीख जाएंगी।
सुना है कि लॉकडाउन में जालंधर से हिमालय दिखने लगा। पहले भी पृथ्वी से स्वर्ग-नर्क दिख जाया करते थे। देवता लोग अपने बीवी-बच्चों के साथ तीनों लोकों के बीच आते-जाते साथ-साफ दिखाई देते थे। बाद में इतना प्रदूषण हो गया कि सब दिखना बंद हो गया। इंसान को इंसान तक दिखना बंद हो गया। प्रदूषण हुआ तो हम मर-खप तो नहीं गए न? जीवित रहे। कड़ाके की ठंड पड़ते ही देश के तमाम शहरों में प्रदूषण के मारे आँखें बाहर निकल पड़ती है। साँस लेना दूभर हो जाता है। फिर भी हम जीते हैं। क्यों? क्योंकि हमने प्रदूषण के साथ रहना सीख लिया है। हमें सिखाने की ज़रूरत नहीं है, हम खुद ब खुद सब सीख जाते हैं।
बता रहे हैं कि लॉकडाउन में नदियों तालाबों का पानी एकदम शुद्ध हो गया। लॉकडाउन नहीं होता है तब? इन्हीं नदियों तालाबों का पानी गटर के पानी से बीस ही साबित हो उन्नीस नहीं। उद्योगों की मेहरबानी से नदियों में पानी नहीं एसिड को बहना पड़ता है। घरों में मुंसीपाल्टी के नलों से पानी की जगह कल-कल करती बीमारियाँ चली आती हैं। हमने बिना ना-नुकुर किये बीमारियों के साथ रहना सीख लिया। बी-कोलाई, हेपीटाइटस बी, कॉलेरा, हम सबके साथ रहते हैं। मलेरिया, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू, आदि-आदि हर प्रकार के वायरस और बैक्टेरिया के साथ हमने बिल्कुल गंगा-जमुनी तहज़ीब की तरह रहना सीखा है। अस्पताल हो न हो, दवा हो न हो, डॉक्टर हो न हो, हम हर हाल में इन परजीवियों के साथ रहना सीख लेते हैं। कोरोना क्या चीज़ है? रह लेंगे उसके साथ भी। तुम्हारे कहने से नहीं, इस तरह किसी भी चीज़ के साथ सुखपूर्वक रह लेना हमारा जन्मजात गुण है।
भूख के साथ रहना कितना मुश्किल होता है न? लेकिन रह ही रहे हैं न गरीब लोग। पहले दो सौ साल अंग्रेजों के समय भूखे रहे, फिर आज़ादी के बाद तिहत्तर साल भूखे रहना सीखा, अब लॉकडाउन में चालीस-पचास दिन से भूखे रहते-रहते लाखों लोगों ने भूखा रहना सीख लिया है। किसी को पता ही नहीं चला। अपना सर्वस्व न्योछावर करके भूख के साथ रहना वे पीढ़ी दर पीढी से सीखते चले आए हैं। उन्हें कोरोना के साथ रहना सिखाने की कोई ज़रूरत नहीं है। वे माहिर हैं सीखने के।
महँगाई-बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के वादों के साथ नेता लोग गद्दी पर काबिज़ हो जाते हैं पर वादाखिलाफी करना सीखने में उन्हें टाइम नहीं लगता। हम भी अच्छे खासे बेशरम हैं जो अपने जीवट से महँगाई-बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के साथ भी रहना सीख जाते हैं। शोषण, दमन, उत्पीड़न कौन सी ऐसी बला है जिसके साथ हमने रहना नहीं सीखा है। इसके लिए हम कोई तुम्हारे स्कूल-कॉलेजों के भरोसे नहीं बैठे रहे, न भाषणों-प्रवचनों के भरोसे बैठे, हमने खुद अपने अन्दर इतनी ज़बरदस्त प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है कि हम हर अच्छी बुरी चीज़ के साथ खुशी-खुशी रहना सीख जाते हैं, फिर कोरोना कौन से खेत की मूली है? देर-सवेर उसके साथ भी हम रहना सीख लेंगे। पहले बता दिया होता तो अब तक न केवल हम कोरोना के साथ रहना सीख चुके होते, बल्कि कोरोना को कुत्‍ते की तरह बाँधकर एक कोने में खड़ा भी कर दिया होता।

यह है अवसर यही है अवसर

//व्‍यंग्‍य-प्रमोद ताम्बट//
धुर खोजियों ने खुलासा किया है कि चीन से खरीदी गई कोरोना टेस्टिंग किट में वे फिर कमीशन खा गए। ताज्जुब है, कण-कण में व्याप्त चौकीदारों के, श्वानों की माफिक सतर्क होने के बावजूद कम्बख्त वे कमीशन खाने में सफल हो गए, वह भी न खाने वालों की नाक के नीचे से!
चलो खाया तो खाया, मगर कितना खाया, 18-19 करोड़ बस? इससे ज़्यादा तो चीटियाँ खा जाती हैं। पारम्परिक भारतीय कमीशनखोरों के लिहाज़ से देखा जाए तो यह तो ऊँट के मुँह में ज़ीरे के बराबर है। या कहें, बिल्ली की छिच्छी। एक ज़माने में लोग हाथी की लीद के बराबर खा जाते थे, पता ही नहीं पड़ता था। दरअसल हाथी से ज़्यादा लीद करने वाला जानवर इस धरती पर है भी या नहीं मैं नहीं जानता लेकिन बिल्ली की छिच्छी की जगह चीटी की छिच्छी पकड़ ली जाए तो हाथी की लीद के साथ जो अनुपात बनता है, उतना कमीशन तो पहले के ज़माने में चलते-फिरते खा लिया जाता था। देखा जाए तो टेस्टिंग किट कमीशनखोरों ने ज़ीरे के बराबर कमीशन खाकर अपनी बिरादरी की नाक कटवा ली है।
वैसे मुझे तो इसमें भी काफी षड़यंत्र की बू आ रही है। छिच्छी और लीद की बात की जाएगी तो बदबू तो यकीनन आएगी ही। कमीशनखोरी है ही संडांध वाला काम। ऐसा करिए, आप घर में पड़ा हुआ कोई भी चाइनीज़ आयटम उठा कर देख लिजिए, समझ आ जाएगा। मैंने लॉक डाउन के पहले एक चार्जेबल चाइनीज़ इमरजेंसी लाइट खरीदी थी, मात्र 60 रुपए में। उसमें एक झकास लाइट के साथ दूर तक अंधेरे में दिखा देने वाली टार्च भी है। और तो और 2 सेल उसके साथ एक्स्ट्रा दिए गए थे बिल्कुल मुफ्त। टाँगने की, खड़ा करने की, हाथ में पकड़ने की सुविधा अलग। एक स्विच है साथ में जिससे इमर्जेंसी लाइट और टार्च दोनों की रोशनी कम ज़्यादा की जा सकती है। अर्थात काफी तामझाम है उसमें। इतनी सारी सुविधाओं के साथ इतनी बड़ी चायनीज़ लाइट मेरे हाथ में मात्र 60 रुपए में पहुँच गई तो सोचिए वह चायना से कितने में चली होगी! इसीलिए चाइनीज़ टेस्टिंग किट के कमीशनखोरी से पूर्व के असली दामों पर भी मुझे गहरा शक है। कुछ तो झोल है।
इतनी बड़ी टार्च 60 रुपए की और ज़रा सी टेस्टिंग किट 250 रुपए की जो 600 में टिपा दी गई, शक की गुंजाइश तो बनती है भई। मेरे हिसाब से तो 5-10 रुपए से ज़्यादा कीमत उसकी हो ही नहीं सकती। सबका कमीशन वगैरह जोड़कर ज़्यादा से ज़्यादा 20-25 रुपए किसी भी चाइनीज़ आयटम के लिए एकदम वाजिब दाम प्रतीत होते है। भाई साहब, चाइनीज़ इलेक्ट्रॉनिक घड़ियाँ 20-20 रुपए में मुंफली की तरह ढेर में मिलती हैं अपने देश में, तो टेस्ट किट 250 रुपए की कैसे? बहुत नाइंसाफी है।
मुझे तो लगता है चौकीदारों को तगड़ा धोका दिया गया है। क्या समझते हो आप कमीशनखोरों को, पिछले 73 सालों के अनुभव के साथ कमीशन खा रहे हैं वो। ऐसे ही बिल्ली की छिच्छी खाने वाले संस्कार नहीं हैं उनके। उन्हें हाथी की लीद खाने की आदत है। कोई माने या न मान, ज़रूर उन्होंने 5-10 रुपए वाली टेस्टिंग किट 250 रुपए में खरीदना दिखाकर 600 रुपए में बेच कर अच्छे खासे अनुपात में कमीशन खा लिया है।
इधर बहुत सारे लोगों का यह मानना है कि कोरोना की महामारी को सुनहरे अवसर के रूप में देखना चाहिए। टेस्टिंग किट सप्लायरों ने इस अवसर को चतुराई से भुना लिया। हमारे पास कोरोना के व्यापक हमले से निबटने के लिए साधन तो है नहीं। हम यहाँ वहाँ दुनियाभर से खरीदारी करेंगे। तुम कमीशन खाने के लिए तैयार रहो। इससे अच्छा अवसर और कब मिलेगा।
       अवसरों की भरमार है साहब। 3 रुपए का मास्क 50 रुपए में बेचो, यह है अवसर। सब्ज़ी-भाजी, आटा-दाल-चावल मनमाने दामों पर बेचो, यह है अवसर। पूरी दुनिया हिली हुई है उसे मनमाने दामों पर माल-असबाब निर्यात करो, यह है अवसर, यही है अवसर। लगे हाथों देश को मनमाने दामों पर जीवन रक्षक वस्तुएँ बेच मारो, इससे सुनहरा अवसर और फिर कभी नहीं मिलेगा ।

शनिवार, 9 मई 2020

बस एक अदद कोरोना भर मिल जाए

//व्‍यंग्‍य-प्रमोद ताम्बट//
          अपन भी कोई कम साइंटिस्ट नहीं हैं। स्कूल में बहुत मेंढकों की चीर-फाड की है। संकट की इस घड़ी में अनुभव का लाभ उठाने में क्या हर्ज है। जब लाखों लोग कोरोना विशेषज्ञ बने चले जा रहे हैं तो अपन में क्या कमी है। बस एक अदद कोरोना का सेम्पल मिल जाए। सेम्पल लेने के लिए कफ सिरप की शीशी निकाल रखी है अपन ने, बस उसका ढक्कन पलंग के नीचे चला गया है, निकल नहीं पा रहा है। कोई बात नहीं पॉलीथीन से मुँह बंद कर रबरबैंड लगा देंगे, हो जाएगा काम। हाथ आ जाए फिर उस खबीस कोरोना का विच्छेदन कर के देखेंगे कि कौन सी चक्की का आटा खाता है कम्बख्त, और वह चक्की चीन की है या अमरीका की।
          सबसे पहले तो मैं ऐसा सस्‍ता चश्मा इजाद करूंगा जिसे कोई भी खरीद सके। उस चश्‍में से कोरोना को साफ-साफ देखा जा सकेगा। इससे मेरे वैज्ञानिक शोध अनुसंधान के अलावा आम जन साधारण को भी लाभ होगा। मैं अपना अनुसंधान करता रहूँगा लोग लॉकडाउन का फायदा उठाकर कोराना की तलाश में लग जाएंगे। मोहल्‍ले भर में चश्मा लगाकर घूमेंगे बस, आस-पास जहाँ कहीं भी कोरोना लुका बैठा होगा तो दिख जाएगा। कोई घर आए आपके तो पहले चश्मा लगा कर बाहर ही उसकी स्क्रीनिंग कर लो कि कहीं उसके नॉक-मुँह-कान, दाँतों-मसूड़ों में कोरोना तो नहीं छुपा बैठा है। या कपड़ों-जूतों में खटमल की तरह कोरोना ले आया हो आगंतुक। चश्में से सब दिख जाएगा। इससे पहले कि सामने वाला आपके घर में कोरोना छोड़ जाए, उसे मोहल्‍ला छोड़ने को मजबूर कर सकते हैं आप। तब तक एक एंटी कोरोना स्‍प्रे बना लूँगा मैं। बस एक अदद कोरोना भर मिल जाए।
          पता नहीं अल्कोहल बेस सेनेटाइज़र से कोरोना मर भी रहा है या अल्कोहल के प्रभाव से टुन्न होकर हमारे शरीर पर ही यहाँ-वहाँ लुड़कता फिर रहा है। यह तो मेरे बनाए उस चश्में से ही पता चलेगा। घर में आने वाले नलके के भीषण प्रदूषित पानी का छिड़काव करके कोरोना पर उसका प्रभाव देखने की तो किसी को सूझी ही नहीं अब तक। अपन यह प्रयोग करेंगे। नल के प्रदूषित पानी से जब हमें दस्त और मरोड़ उठने लगती हैं तो करोना कौन सा अमृत पी कर बैठा होगा! अगर पीकर बैठा भी है तो इसी बहाने शुद्ध भारतीय अमृत के मुकाबले चायनीज़ या अमेरिकन अमृत पर भी लगे हाथों शोध हो जाएगा, कि कौन सा ज़्यादा पावरफुल है।
          बड़ा कन्फ्यूजन है कि हवा से कोरोना फैलता है या नहीं। बस इत्ती सी बात है। इतना ही तो पता करना है कि कोरोना को पंख हैं या नहीं। बहुत आसान है। चश्मा बन जाए तो देख लेंगे। फिर उसके पंख झड़ाने के लिए कोई तरकीब इजाद कर लेंगे। पंख झड जाए तो कम्बख्त उड़ेगा कैसे! जैसे हम घर में दुबके बैठे हैं वह भी जहाँ का तहाँ पड़ा रहेगा। उसकी चेन वहीं टूट कर गिर पड़ेगी। हम ऐसी-ऐसी खतरनाक हवन सामग्री तैयार करने की दिशा में शोध करेंगे कि जिसके अग्नि में समर्पित होते ही कोरोना भी आत्‍म समर्पण कर दे। अपन यह भी कर सकते हैं कि तीखी लाल मिर्चों का धुआ फॉग मशीनों में भरवाकर शहर भर में उड़वा देंगे। करोना मरा तो ठीक, न भी मरा तो लोग तो कम से कम घर के अन्दर बैठे रहेंगे। अपने शोध का इतना ही योगदान काफी होगा।
          अभी हमने अपनी रिजर्व फोर्स का तो जिक्र ही नहीं किया है। हमारे इर्द-गिर्द तो लाखों ऐसे जीवाणू-किटाणू मौजूद हैं जो आए दिन हमारी नाक में दम किए रहते हैं। टी.बी., मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया जैसी सैकड़ों बीमारियों के एक्सपर्ट जीवाणू, वायरस हमारे किस दिन काम आएंगे। हम कोरोना की नाक में दम करने के लिए उनका इस्‍तेमाल करेंगे। हमें बस हमारे इन पुराने भरोसेमंद दोस्तों को कोरोना के खिलाफ भड़काना भर ही तो है। ऐसा थोड़ी है, आखिर धार्मिक, साम्प्रदायिक, जातीय, और नस्लीय भावनाओं से तो वायरस लोग भी ओत-प्रोत होते ही होंगे। उनकी भावनाओ को भड़काएंगे फिर दूर बैठे तमाशा देखेंगे। हालाँकि इनमें से किसी भी वायरस का रंग मुझे पता नहीं है, मगर चश्में की इजाद होते, कोरोना के रंग का पता चलते ही मैं तो इनमें आपस में रंगभेदी दंगा भड़का दूँगा। देखो कोरोना कैसा दुम दबाकर भाग खड़ा होता है। दरअसल यह भी पता नहीं है कि कोरोना की दुम भी है या नहीं! बस एक अदद कोरोना मिल जाए और सुपर पावर चश्मा इजाद हो जाए बस, सब कुछ पता चल ही जाएगा।
          एक बार यह कम्‍बख्‍त कोरोना पकड़ में भर आ जाए, इसका व्‍यावसायिक उत्‍पादन करके आसपास के दुष्‍ट देशों को डराने की भी योजना है मेरी। तोप के गोलों में कोरोना भरवाकर एक-एक बोफोर्स तोप आठों तरफ सीमाओं पर तैनात कर दी जाएगी। हर साल के अरबों-खरबों के सुरक्षा बजट की बचत हो जाएगी। बच्‍चों को दूध मिल जाएगा, पाठशाला मिल जाएगी। सबसे बड़ी बात हम देश भर में अस्‍पतालों की कतार लगा देंगे और उनमें डाक्‍टरों की फौज भरती कर लेंगे। बस एक बार उस कोरोना का बच्‍चा मेरे हाथ भर आ जाए।