रविवार, 31 मई 2020

आत्‍मनिर्भर बनो ट्रेन बनो


//व्‍यंग्‍य-प्रमोद ताम्बट//
स्टेशन पर एनाउन्समेंट गूँजा- मुंबई से चलकर इंदौर, हैदराबाद, जयपुर, बिलासपुर के रास्ते छपरा जाने वाली धारवाड़-गोरखपुर एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से एक पखवाड़ा विलंब से चल रही है। यात्रियों से निवेदन है कि वे रेल प्रशासन का सहयोग करें। यात्रियों की सुविधा के लिए रेल विभाग दृढ़संकल्पित है। धन्यवाद। टिंग-टाँग।
मैंने एनाउंसमेंट में बताए गए रूट का खाका अपने दिमाग में खींचने की असफल कोशिश की एवं लपककर पास खड़े टीसी को पकड़ लिया और पूछा- भाईसाहब, मुझे लखनऊ  जाना है, जिस गाड़ी का अभी-अभी एनाउंसमेंट हुआ उसमें बैठ जाऊँ क्या?
टीसी बोला- एनाउंसमेंट में लखनऊ  का नाम आया क्या?
मैने कहा- नहीं, सुना तो नहीं।
वह बोला-तो कैसे बैठ जाओगे? पिताजी की ट्रेन है क्या?
मैने कहा- सर नाम तो भोपाल का भी नहीं सुना, तो फिर वह गाड़ी भोपाल क्यों आ रही है?
वह बोला-ससुराल है उसकी। तुमसे पूछकर भोपाल आएगी क्या गाड़ी?
मैंने कहा- मगर एनाउंसमेंट ......
वह बात काटता हुआ बोला-ऐसा कहीं लिखा हुआ है क्या कि गाड़ी जिस स्टेशन पर नहीं आ रहीं है वहाँ एनाउंसमेंट नहीं किया जा सकता?
मैं निरुत्तर हो गया। मैंने याचना पूर्वक कहा-साहब कोई तरकीब बताइये। मुझे किसी भी हालत में लखनऊ  पहुँचना है। दूसरा कोई साधन नहीं है। क्या करूँ बताइये।
वह बोला- आत्मनिर्भर बनो। जैसे हज़ारों मजदूर, औरतें, बच्चे रेल के भरोसे न बैठकर पैदल ही अपने गणतव्य की और कूच कर गए हैं। तुम भी निकल लो। भगवान ने चाहा तो ट्रेन से पहले लखनऊ  पहुँच जाओगे। ट्रेन का कोई भरोसा नहीं है। आत्मनिर्भर हो गई है न, तुम भी आत्मनिर्भर बन जाओ। निकल लो।
मैंने कहा-मज़ाक मत करिये साहब। मुझे तो लखनऊ  का रास्ता भी नहीं पता।
वह बोला- भाई गूगल कर ले। ट्रेनें भी आजकल गूगल से ही चल रही हैं। आ गई, आ गई- नहीं आई, नहीं आई। और नहीं तो ये सामने रही पटरी, पकड़ले, और निकल जा।
मैंने कहा- नहीं नहीं, मैं इतना लम्बा रास्ता पैदल नहीं चल सकता। मैं तो ट्रेन से ही जाऊँगा। मुझे भारतीय ट्रेनों पर पूरा भरोसा है। परन्तु ऐसा तो नहीं होगा न कि ट्रेन मुझे लखनऊ  की बजाय अहमदाबाद पहुँचा दे? गूगल का कोई भरोसा तो है नहीं।
वह बोला- बिल्कुल हो सकता है। क्या फर्क पड़ता है। वैसे भी लॉकडाउन में सारे शहर एक जैसे होते हैं।
मैंने कहा- आप मज़ाक बहुत अच्छा कर लेते हो। मगर मेरी समस्या को समझिये। मुझे किसी भी कीमत पर लखनऊ  पहुँचना है।
वह रुष्ठ हो गया। झल्लाकर बोला- अरे यार, रेल्वे ने क्या हरेक को यहाँ-वहाँ पहुँचाने का ठेका ले रखा है? चले आए मुँह उठाकर, लखनऊ  जाना है, लखनऊ  जाना है।
मैंने कहा- साहब टिकट है मेरे पास। दस गुना ज्यादा पैसा देकर खरीदा है। अब आप कह रहे हैं कि ठेका ले रखा है क्या? क्या मतलब है। अरे जब पहुँचाना ही नहीं था तो टिकट दिया क्यों?
वह बोला- अबे तो टिकट तो बहुतों को मिलता है। सब लखनऊ पहुँच जाते हैं क्या? मेरा माथा मत खाओ। जिसने टिकट दिया है उससे बात करो।
मैंने कहा- माथा न खाऊँ तो क्या खाऊँ? मज़ाक बना रखा है आप लोगों ने। एक तो ट्रेन एक पखवाड़ा विलम्ब से चल रही है, ऊपर से पता ही नहीं है कि लखनऊ  जाएगी या नहीं जाएगी।
वह बोला- यार तो जहाँ जाएगी वहाँ चले जाओ। बाद में एडजस्ट कर लेना।
मैंने कहा- अरे तो भोपाल आएगी कि नहीं इसकी क्या गारंटी है?
वह बोला- भोपाल में एनाउंसमेंट हो रहा है न?
मैंने कहा- हाँ, सो तो है।
वह बोला- तो क्या हमें पागल कुत्ते ने काटा है जो उसे यहाँ आना नहीं है और हम गला फाड़-फाड़कर एनाउंसमेंट कर रहे हैं?
मैं फिर निरुत्तर हो गया। थोड़ी देर पहले कह रहे थे, कहीं लिखा है क्या कि जहाँ ट्रेन नहीं आएगी वहाँ एनाउंसमेंट नहीं कर सकते, अब कह रहे है पागल कुत्ते ने काटा है क्या।
अचानक फिर टिंग-टाँग का स्वर गूँज उठा और एनाउंसमेंट होने लगा- मुंबई से चलकर हावड़ा, झारसुगड़ा, त्रिवेंदम के रास्ते छपरा जाने वाली धारवाड़-गोरखपुर एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय से अनिश्चितकालीन विलंब से चल रही है। यात्रियों से निवेदन है कि वे रेल प्रशासन का सहयोग करें। यात्रियों की सुविधा के लिए रेल विभाग दृढ़संकल्पित है। धन्यवाद। टिंग-टाँग।
मैंने पास की बैंच पर आड़े हो गए उसी टीसी को घूर कर देखा। टीसी कंधे उचकाता हुआ बोला- बोल तो रहे हैं, आत्मनिर्भर बनो, पैदल निकल लो। हमारी ट्रेन भी अब आत्मनिर्भर हो गईं हैं। या फिर एक काम करो, खुद ही ट्रेन बन जाओ। आत्‍मनिर्भर बनो, ट्रेन बनो, एक ही बात है।
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3 टिप्‍पणियां:

  1. पता नहीं आगे क्या क्या बनना है? :‌) लाजवाब

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  2. आत्मनिर्भर ही बनना है तो क्यों न हम सरकार ही बन जाएँ। बहुत अच्छा हास्य व्यंग्य। बधाई।

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