सोमवार, 29 जून 2020

चीन के पिट्ठू का यहाँ कोई काम नहीं, यह बासठ का हिन्दुस्तान नहीं


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
अगड़म-बगड़म चाइनीज़ सामान की दुकान का आधा शटर खुला हुआ है और चीन के साथ हो गए पंगे से बेखबर चार-छः लोग सस्ता चाइनीज़ सामान खरीद भी रहे हैं। अचानक राष्ट्रवादी नवयुवकों का एक झुंड दुकान पर आ धमकता है और उनका नेता दुकान के बाहर से ही दुकानदार को ललकार कर पूछता है-कौन है बे अन्दर? साले राष्ट्रद्रोही की औलाद। टीवी न्यूज़ नहीं देखता क्या? वो हरामज़ादा चीन हमारी भारतमाता की छाती पर चढ़ा चला आ रहा है और तू उसे फाइनेंशिल सपोर्ट कर रहा है? बाहर निकल राष्ट्रदोही कहीं के।
घबराया हुआ एक अधेड़ उम्र का दुकानदार आधे शटर से बाहर निकलता है और झुंड से मुखातिब होकर पूछता है-अरे क्या हुआ पप्पू भैया? अरे डंपू तुम भी हो? क्या हो गया यार?
पप्पू भैया बोले- यह देश के साथ सरासर गद्दारी है। चीन हमें कुचले दे रहा है और तुम खुलेआम उसका माल बेचकर उसे फायदा पहुँचा रहे हो। चलो बंद करो सब वर्ना दुकान को आग लगा देंगे।
दुकानदार गिड़गिड़ाता हुआ बोला- पप्पू भाईसाहब कैसी बात कर हो यार। हम और गद्दार? क्या बताएँ पप्पू भैया, लॉकडाउन के एकदम पहले ही उधार लेकर 20 लाख का माल सीधे चीन से लाए थे। चार महीने से एक पैसे का धंधा नहीं हुआ। यार पैसे न फँसे होते तो कसम से मैं भी तुम्हारे साथ गद्दारों को सबक सिखाने के लिए निकल पड़ता। डंपू यार समझाओं पप्पू भैया को। हम तो खुद पक्के राष्ट्रवादी है, मगर अपना पैसा तो नहीं डुबा सकते न भाई।
डंपू बगलें झाँकता हुआ बोला- अंकल मैं क्या करूँ? अभी तो चीन के खिलाफ लहर चल रही है। आपको दुकान नहीं खोलना चाहिए थी।
दुकानदार बोला-तुम्हारी बात एकदम सोला आना दुरुस्त है। मैं कहाँ मना कर रहा हूँ। बिल्कुल दुकान नहीं खोलना चाहिए थी। मगर भाई क्या करुँ, घर में फाँके पड़ने की नौबत आ गई है। पैसा रिकवर नहीं हुआ तो घर-दुकान सब बिक जाएगा। उधारी वापस करना है भाई समझा करो। वर्ना हम कोई राष्ट्रवादी से एक रत्ती भी कम नहीं। थोड़ा माल निकलने तक राष्ट्रवाद को साइड में रखते है न भाई। तुम्हारा सब खर्चा पानी मैं दूँगा, पक्का। बस थोड़ा माल बेच लेने दो, नहीं तो मैं पटियों पर आ जाऊँगा।
पप्पू भैया और उनके राष्ट्रवादी साथियों ने दुकान का पूरा शटर उठा दिया और पूरा टोल अन्दर घुस गया। अन्दर सामान खरीद रहे लोगों को हड़काते हुए पप्पू भैया बोले-क्यों बे चीन के पिट्ठुओं, चीन का सामान खरीदकर चीन के हाथ मजबूत कर रहे हो? तुम्हें पता नहीं चीन ने क्या हरकत की है। हमारे बीस बहादुर सैनिकों की जान ले ली है, और तुम लोग खुद तो गद्दारी कर ही रहे हो और ऊपर से दुकानदार को भी पाप का भागीदार बना रहे हो। चलो फुटो यहाँ से।
दुकानदार फिर गिड़गिड़ाने लगा-पप्पू भैया क्या कर रहे हो यार। ग्राहक देवता होता है, उसे ही भगा दोगे तो मेरी रिकवरी कैसे होगी? भाई शटर इसीलिए तो डाल रखा है कि न हमें शर्मिंदगी हो न ग्राहक को, और माल भी ठिकाने लग जाए। भाई अपने ग्राहक भी कम राष्ट्रवादी नहीं है, कसम से। मेरा माल खत्म हो जाने दो, यही ग्राहक अपने बुलावे पर इसी खरीदे हुए चाइनीज़ माल की होली जलाने के लिए बाहर न निकलें तो मेरा नाम बदल देना। मैं चलूँगा भाई आपके साथ चीनी सामान की होली जलवाने। आप प्रोग्राम तो बनाओ। बस मेरा माल बिक जाने दो।
पप्पू भैया बोले-यह अच्छा आइडिया दिया सेठ तूने। यहीं दुकान में ही चीनी माल की होली जला दें तो कैसा रहेगा? प्रेस वालों से कह देंगे कि दुकानदार ने देशभक्ति में खुद अपना बीस लाख का माल फूँक लिया।
दुकानदार बुरी तरह घबरा गया। हाँथ-पाँव जोड़ता हुआ बोला-अरे नहीं नहीं नहीं नहीं पप्पू भाई साहब। अरे डंपू तेरा पापा तो मेरे साथ रोज़ की बैठक वाला है। समझा न यार इसे। देख भाई राष्ट्रवाद हमारी रग-रग में है। हम कभी देश के खिलाफ कोई काम नहीं करते। पाकिस्तान के खिलाफ हम कभी पीछे नहीं रहते। चीन के खिलाफ भी कोई मनाही नहीं है। मगर बीस लाख कोई कम नहीं होते यार। मर जाऊँगा मैं। अपन करेंगे न बाद में, अभी थोड़े दिन राष्ट्रवाद स्थगित रख लो न। राष्ट्रवाद कहीं भागा थोडे ही जा रहा है। न चीन अपनी हरकतों से बाज आने वाला हैं। भाई जित्ते की कहोगे उत्ते की रसीद कटवा लूँगा। खर्चे पानी का वादा मैं पहले ही कर चुका हूँ। और क्या चाहिए बोलो?
पप्पू भाई जेब से बीड़ी माचिस निकालते हुए बोले- देखो सेठ, यह देश की इज्‍ज़त का सवाल है। हमने चीनी माल का बहिष्कार करने का प्रोग्राम हाथ में लेकर भारत माता की इज्‍ज़त को बचाने का प्रण लिया है। और तुम भारतमाता की इज्‍ज़त की धज्जियाँ उड़ा रहे हो। ऐसा बिल्कुल नहीं चलेगा। फिर धीरे से दुकानदार के कान में फुसफुसाते हुए बोले- बीस लाख का माल है, चालीस लाख तो बनाओगे ही। फिफ्टी-फिफ्टी कर लेते हैं।
दुकानदार ने पप्पू भैया के चरणों में लोट लगा दी। वह एक कुशल अभिनेता की तरह रोने गिड़गिड़ाने की एक्टिंग करता हुआ बोला-क्या बोल रहे हो पप्पू भैया, दोगुना? बीस का चालीस? भैया, बड़ी मुश्किल से खरीद के रेट में निकाल रहे हैं माल, आपको कहाँ से दें? ए डंपू समझा न भाई इनको। मैं तो जीते जी मर जाउँगा। आत्महत्या के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा मेरे पास भाई, दया करो।
पप्पू भाई अपने सपाट चेहरे को और सपाट बनाते हुए बोले- राष्ट्रद्रोहियों के साथ कोई दया नहीं। गद्दारों के साथ कोई मुरव्वत नहीं। चीन के पिट्ठू का यहाँ कोई काम नहीं, यह बासठ का हिन्दुस्तान नहीं। नारेबाजी ज़ोर पकड़ने लगी। राष्ट्रभक्तों की भीड़ दुकान के अन्दर घुस गई जिसमें डंपू सबसे आगे था। देखते ही देखते दुकान का सारा सामान बाहर सड़क पर फेंक दिया गया और आसपास मौजूद सैंकड़ों तमाशबीन चीनी सामान उठा-उठाकर भागने लगे।            
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