//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
वैसे, राजनैतिक दलों को अब
इन सब हथकंडों की कोई ज़रूरत नहीं रह गई है। चुनावी मैदान मारने के लिए आजकल जो सबसे
बड़ी ज़रूरत है वह यह कि पार्टी में कुछेक छिछोरे, मुँहफट, बड़बोले, बदतमीज किस्म के छुटभैयों-नेताओं
का जमावड़ा हो जो चौक-चौराहों, रैलियों-भाषणों, चुनावी बहस-मुबाहिसों, प्रेस कांफ्रेंसों
आदि-आदि जगहों पर अपनी तेज धारदार छुरी सी तीखी ज़बान से तू-तू मैं-मैं छेड़कर विरोधी
पार्टियों के धाकड़ से धाकड़ नेता को लोहूलुहान कर सके। मीडिया को चुंबक की तरह अपनी
ओर खींचकर बडे़-बडे आदरणीयों की लू उतार सकें। भाषण-संभाषण में राजनैतिक दुश्मनों को
पटना की मिर्च का एहसास करा सकने की योग्यता आजकल बड़ी योग्यता के रूप में मान्यता प्राप्त
कर चुकी है। यह योग्यता हो तो कोई छोटा से छोटा कार्यकर्ता भी राजनीति की ऊँची से ऊँची
सीढ़ी फर्राटे से चढ़ता चला जा सकता है। बड़े-बडे़ नेता भी आजकल छोटे-मोटे सड़क छाप नेताओं
से ट्रेनिंग लेकर इस गरियाव-भौकियाव कला में दक्ष हो रहे हैं। कहना ही क्या,
अब तो देश को दुनिया
पर राज करने से कोई माई का लाल रोक ही नहीं सकता।
देश के इन जिव्हावीरों
के सौजन्य से बहुत जल्द ऐसा समय आने वाला हैं जब ये लोग चुनावी मंचों पर रीति-नीति
की बातें छोड़कर परस्पर वस्त्र लोचन किया करेंगे और दुनिया के सामने एक-दूसरे के नग्नाचार
का आँखों देखा हाल बखान कर चुनाव जीत लेंगे। कुछ बेहद पहुँचे हुए वक्तागण तो निसंकोच
विरोधी को चोर-डाकू, कुत्ता-कमीना, चांडाल-नराधम आदि-आदि घोषित कर कुर्सी पर
अपनी दावेदारी पेश किया करेंगे।
जल्द ही वो दिन भी
आएंगे जब कुछ महान नेता, विरोधी पार्टी के नेताओं की बहु-बेटियों से गुप्त ज़ुबानी रिश्ते
स्थापित कर उन्हें ज़मीन में गड़ जाने को मजबूर कर देंगे और कुछ नरवीर तो अत्योत्साह
में अपनी ही पार्टी के नेताओं के घर की जनानियों से माँ-बहन का रिश्ता जोड़कर मैदान
मारने की कोशिश करेंगे और दुनिया के सामने साबित करेंगे कि उनसे बड़ा नारी अस्मिता का
रक्षक, परम न्यायप्रिय, लोकतांत्रिक विद्धान देश में दूसरा कोई है ही नहीं, इसलिए निर्विरोध चुना
जाना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। सार्वजनिक मंचों और चुनावी सभाओं से गाली-गुफ्तार,
अपशब्दों, अश्लीलता और अभद्रता
की ऐसी झड़ी लगा करेगी कि श्रोताओं को हिन्दी फिल्में देखने की कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।
राजनैतिक सभाओं में सीधे-साधे शरीफ किस्म के लोगों का कोई काम ही नहीं रह जाएगा वे
घर में बैठकर कीर्तन इत्यादि करने के लिए स्वतंत्र रहेंगे। चुनाव में हार-जीत इस बात
पर निर्भर होने लगेगी कि कौन कितनी निर्लज्जता से कर्णध्वंसक खड़ी-खड़ी अश्लील गालियों
और अपशब्दों की बौछार कर सकता है। ऐसे प्रखर वक्ता को सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार चुना जाकर
देश की बागडोर थमा दी जाएगी जो अभद्रता की सारी सीमाएँ लाँघकर देश सेवा करने की क्षमता
को साबित कर सके।
ग्रास रूट लेवल पर
चुनाव जीतने के लिए भोले-भाले लल्लू किस्म के समाजसेवी कार्यकर्ताओं की अब कोई उपयोगिता
नहीं है जो धुला, इस्तरी किया हुआ साफ-सुथरा कुर्ता-पाजामा और गाँधी टोपी धारण
कर वोटरों से माताजी, बहनजी, भाईसाहब, और काका, चाचा, मामा का रिश्ता जोड़कर ‘‘वोट हमी को देना’’
की विनम्र अपील करते
घूमते थे। अब पार्टी में शहर के एक से एक छँटे हुए आवारा, टपोरी, गुंडों, जिलाबदर बदमाशों,
माफिया सरगनाओं की
फौज का रिक्रूटमेंट ज्यादा ज़रूरी है जो धौंस-दपटदार ‘फतवों’ से चुनावों में वोटों
की झड़ी लगा दें। सभ्यता और संस्कार रहित इन अतिमानवों की फौज का देश की राजनीति में
यह एक महानतम योगदान है कि उन्होंने अपने शरीर सौष्ठव एवं वाणी प्रताप के दम पर भीड़
को वोटर में तब्दील करने का ऐतिहासिक पराक्रम किया है। एक दृष्टि से इस प्रकार उन्होंने
लोकतंत्र का आसन्न संकट समाप्त किया है, वर्ना जनता ने तो अपने-आप को नालायक वोटर
मान कर चुनाव के समय घर में बैठना चालू ही कर दिया था । कौन जानता था कि जिन्हें समाज
का कूड़ा-करकट, खरपतवार समझा जाता है, भारतीय राजनीति में
उनकी भूमिका इतनी महत्वपूर्ण हो पड़ेगी कि उनके हिले-डुले, मुँह खोले बगैर लोकतंत्र
का ऊँट कभी करवट ही नहीं लेगा।
युगान्तरकारी राजनैतिक
परिवर्तन ले आने की यह चमत्कारिक प्रतिभा और अजेय ‘पौरुष’ जिन अभागे राजनीतिज्ञों
के पास नहीं होगा वे नौंटकी के भाँड की तरह अपनी फूहड़, भौंडी हरकतों से दर्शकों
को हँसा-हँसा कर वोट और नोट बटोरने को मजबूर होंगे। नाटक-नौटंकी, फिल्मों, टी.व्ही. सीरियलों
के मसखरे हास्य कलाकार और सर्कस के जोकर जिस तरह अपना पृष्ठ भाग दिखा-दिखाकर दर्शकों
को लोट-पोट कर देते हैं उसी तरह राजनैतिक भाँड और जोकर जनता का टैक्स फ्री मनोरंजन
करेंगे और इस तरह आनन-फानन में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकारें बन जाया करेंगी।
राजनीति और भाँडगिरी एक ही सिक्के के दो पहलुओं की तरह दिखाई देंगे, और देश चलाना किसी
छिछोरे कामेडी सीरियल की तरह ठी-ठी ठू-ठू का काम हो जाएगा। स्टेंडअप कामेडियन की तरह
मंच पर आओ, पब्लिक को पेट पकड़-पकड़ हँसाओं और उनकी वाह-वाह के साथ चुपचाप उनका ‘वोट’ भी लूटकर ले जाओ।
‘जनता’, खुद अपना तमाशा देख
खुशी से दोहरी-तिहरी होती नज़र आएगी। ढोल-मंजीरे, तालियाँ पीटकर नेताओं
का उत्साहवर्धन करेगी। तू-तू मैं-मैं, गाली-गलौच और ही-ही, ठी-ठी की संस्कृति
में लोकतन्त्र का महान उत्सव ‘चुनाव’, पवित्रता की सीढ़ियॉं चढ़ता चला जाएगा। मजाक ही मजाक में हम दुनिया
भर में सबसे बड़े लोकतंत्र की पताका फहराने निकल पड़ेंगे। दुनिया हमारी तरफ फटी आँखों
से देखती आ रही है और देखती रहेगी।
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08.12.2017 को जनसंदेश टाइम्स लखनऊ में प्रकाशित।