सोमवार, 27 जुलाई 2020

लैंडलाइन में कोरोना वार्तालाप

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
          महानगर की एक खूबसूरत कोरोना पॉजीटिव दोशीज़ा ने किसी दूसरे शहर में अपने रिश्ते दार को लैंडलाइन फोन से सम्पर्क किया तो उसके अन्दर बैठा हुआ कोरोना वायरस खुशी से झूम उठा। उसे भी अपने रिश्ते्दार से बातचीत करने का मौका मिल गया, क्योंकि उधर फोन उठाने वाला आदमी खुद भी करोना पॉजीटिव होने का सिग्नल दे रहा था। सिग्नल से सिग्नल मिला और इधर वाले ने उधर वाले से चहकते हुए पूछा - क्यों बंधु, क्या चल रहा है।
          उधर वाला लापरवाही से बोला- और क्या, फॉग चल रहा है। हो कौन तुम?
          इधर वाला हँसता हुआ बोला – फॉग? टीवी बहुत देखते हो लगता है। अरे मैं तुम्हारा जाति भाई बोल रहा हूँ कोविड-19।
          उधर वाला प्रसन्न हो गया, बोला -अच्छा भैया तुम हो। क्या करें भैया ये साला बुढढा घर से निकलता ही नहीं, दिन-रात टीवी के सामने जमा बैठा रहता है। मैं भी मजबूरी में इसके आँख कान नाक में से झाँक-झाँक कर टीवी देखता रहता हूँ। वैसे बताएँ भैया, अभी टीवी के विज्ञापन वाला फॉग नहीं था, मुंसीपाल्टी वालों का दिखावे का फॉग था घर के बाहर। फालतू धुँआ छोड़ते रहते हैं कम्बख्त। उनके धुँए से मामूली अनलोडेड मच्छर तो मरता नहीं, हम तो सम्पूर्ण वायरस प्रजाति के बाप कोरोना वायरस हैं, कैसे मरेंगे भला? वैसे कहाँ से हो आप भैया?
          इधर वाला ठसक के साथ बोला-चीन से, एकदम ओरीजनल। फिलहाल मुम्बई में पड़े हुए हैं।
उधर वाले को लगा कि उसे कोई इंफीरियरिटी काम्प्लेक्स दिया जा रहा है। वह भी दम-दाटी के साथ बोला- हैं तो हम भी चीन ही से, ग्लोबलाईजेशन के कारण ईरान, दुबई घूमते-घामते यहाँ झूमरीतलैया में आ पहुँचे। अब यहाँ से आगे किस्मत में कहीं जाना लिखा लगता नहीं है। 
          इधर वाला थोड़ा डपटियाता हुआ बोला- क्यों बे, एक ही जगह जम कर बैठ जाओगे क्या? भूल गए अपनी परम्परा और संस्कृति? विश्व गुरू बनना है हमें विश्वगुरू। पूरी दुनिया पर राज करना है।
          उधर वाला बोला-भैया में तो अपना काम ईमानदारी से कर रहा हूँ। इस बुढ्ढे पर से होते हुए इसके सारे परिवार को चपेट में लेने ही वाला था कि यह बुढढा खाँसने लगा। सब के सब इसे अकेला छोड़कर भाग गए। बस एक बरतन वाली और दूध वाले पर ही हमला कर पाया हूँ। अब वे दोनोंं कहाँ हैं पता नहीं। अपने कुल का विस्तार हो भी रहा है या नहीं, आई डोंट नो। अगर कहीं क्वारेन्टाइन हो गए हों तो मेरा तो बर्थ कंट्रोल शुरू समझो। यह बुढढा भी आखिरी साँसें ले रहा है। पता नहीं कब चटक जाए। आपकी क्या हिस्ट्री है भैया? बताओ न।
          इधर वाला लम्बी साँस लेते हुए बोला- अपन तो थेट चीन से है भाई। माँ तो अपनी होती नहीं, बाप वुहान से है। एक घटिया चीनी इलेक्ट्रानिक आयटम के व्यापारी की मूँछ पर सवार होकर अपन इंडिया आ गए। अब तक हवाई जहाज, लोकल ट्रेन, बस, ऑटो में सैकड़ों लोगों के ऊपर फुदकते हुए अब इस महानगर में एक खूबसूरत हीरोइनी के ऊपर बैठे हुए है आजकल। 
          उधर वाला जलन के एहसास को दबाता हुआ बोला- वाह भैया, आप तो बड़े मज़े में हो। बढिया इंपोर्टेड परफ्यूम पाउडर की खुशबू में डूब उतरा रहे हो। 
          इधर वाला मायूसी से बोला- नहीं रे, सारा स्टॉक खत्म कर दिया इस बन्दरिया ने। घर के बाहर क्वारेन्टाइन का बोर्ड लगा है तो बाहर जा नहीं पाती और ऑन लाइन वाले भी इधर फटकते नहीं। बस साबुन की खुशबू से ही काम चलाना पड़ रहा है, क्या करें। वो भी पता नहीं कपड़ा धोने के साबुन से नहा लेती है, क्या करती है, क्या पता। उल्टी सी आने लगती है। बहुत छुप-छुपा कर बैठना पड़ता है।
          उधर वाला बोला- अच्छा तो क्वारेन्टाइन का मज़ा ले रहे हो। खुशकिस्मत हो भैया आप। यहाँ तो ये बुढ्ढा पता नहीं क्या तो गोमूत्र वगैरा पीता रहता है। बदन पर गोबर नामक पदार्थ चुपड़ लेता है और दवा की तरह कभी-कभी खा भी लेता है गुनगने पानी से। रात-दिन घर में हवन करता रहता है ताकि हम सब धुए से खाँस-खाँस कर मर जाए। घर की सारी किताब-कॉपी हवन कुंड में जला मारी। मुझे पहले पता होता यह संकट तो कभी इस बुढढे की गली में झाँकता तक नहीं। 
          इधर वाला लम्बी आह भरता हुए बोला- यार सुखी तो इतने अपन भी नहीं। यह लड़की रात दिन सिगरेट पीती रहती है। दारू पीकर टुन्न हो जाती है। तुम्हें तो पता है दारू अपने लिए कितनी खतरनाक साबित हो सकती है। प्राण भी जा सकते हैं। जैसे ही वो पैग बनाती है मैं तो उसकी नाक में घुसकर बैठ जाता हूँ। 
          उधर वाला सहानुभूति प्रकट करता हुए बोला- सम्हल कर रहना भैया, ये लोग नाक से गोमूत्र तक पी जाते हैं, वो लड़की नाक से दारू न पी ले कभी।
          इधर वाला ठठाकर हँस पड़ा फिर बोला- और बताओ उधर अपने खिलाफ क्या-क्या षड़यंत्र चल रहे हैं?
          उधर वाला उदास सा बोला- काहे का षड़यंत्र\  लॉकडाउन उठा लिया है पब्लिक को खुला छोड़ दिया है। लोग लगे हुए हैं अपने मन से अपना इलाज करने में। कोई काढ़े पी रहा है तो कोई सेनेटाइज़र से हाथ धो-धोकर खाल उधड़वा रहा है। आयुर्वेद वालों की चांदी कट रही है। कोई अल्लाह के भरोसे है कोई भगवान के। मंदिर बनाने में लगे हैं। अस्पतालों की चिंता किसी को नहीं। उस पर तुर्रा यह कि मन्दिर बनते ही हमारी कोरोना प्रजाति का अस्तित्व नष्ट हो जाएगा।  
          इधर वाला बोला- चिन्ता मत करो भाई, मन्दिर-मस्जि़द से कुछ नहीं होने वाला। अपना कुल अजर-अमर हैं। अपन विश्व  विजेता बन कर रहेंगे। सब कुछ ठीक-ठाक रहा न तो अपन तीनों लोक, सकल ब्रम्हांड पर विजयश्री हासिल कर लेंगे। 
          उधर वाला जिज्ञासा से बोला- अपन कब विश्व विजेता बनेंगे भैया, मुझे अमेरिका जाना है। व्हाइट हाउस में घुसकर ट्रंप को मजा चखाना है। बहुत गरिया रहा है आजकल वो अपनी मातृ भूमि चीन को। 
          इधर वाला वायरस आशा एवं विश्वांस के मिले जुले स्वर में बोला- यदि हिन्दुस्तान की जनता ज्ञान-विज्ञान को ताक पर रख कर यूँ ही मूर्खतापूर्ण हरकतें करती रहीं तो अपन पूरे हिन्दुस्तान को लपेटते हुए दुनिया भर में घूम मचा देंगे। कोविड-19 से आगे बढ़ कर कोविड-20, कोविड-22, कोविड-25, कोविड-40, प्रगति करते चले जाएंगे।
          तभी टू टू टू टू की आवाज के साथ अचानक फोन कट गया। दोनों कोरोना वायरस बिल-बिलाकर रह गए। किसी तरल पदार्थ के ढाले जाने की आवाज के साथ इधर वाला कोरोना फुर्ती से हीरोइनी के मुँह से वापस नाक में घुस गया, क्योंकि हीरोइनी ने फिर से दारू का गिलास भर लिया था।

शनिवार, 18 जुलाई 2020

आवश्‍यकता है कहानीकार की


//व्‍यंग्‍य-प्रमोद ताम्‍बट//

पुलिस विभाग को कांट्रेक्ट बेसिस पर प्रखर कल्‍पनाशील कहानीकारों की आवश्‍यकता है जो कि उपलब्ध कराए गए मौका-ए-वारदात पर फौरन उपस्थित होकर विभागीय एनकाउन्टर्स, हवालात में मारपीट के बाद मृत्यु, दबिश, पब्लिक पर किये गए ज़ुल्‍मों इत्‍यादि पर शीघ्रातिशीघ्र एक प्रभावी और विश्‍वसनीय कहानी एवं चित्‍तलोचक पटकथा लिखकर प्रस्तुत करने में माहिर हो।
अभ्यर्थी का अनुभवी एवं लोकप्रिय कहानीकार होना अत्यंत आवश्‍यक है। कहानी विधा के साथ-साथ वकालत की पढ़ाई के असली प्रमाण-पत्र धारी ऐसे अभ्यर्थियों को चयन में प्राथमिकता दी जाएगी जो कूटरचित कहानी में कानूनी पहलू से पुलिस का पक्ष बेहद मजबूती से प्रस्तुत कर सकें, जिसमें बचाव पक्ष का वकील अथवा जज साहेबान और प्रेस-मीडिया के जासूस भी लूपहोल न ढूँढ़ सके।
अभ्यर्थी यदि कहानीकार के साथ-साथ मनोविज्ञान का विद्यार्थी भी रह चुका हो तो उसे प्राथमिकता दी जाएगी। ध्येय है आमजनता, प्रेस-मीडिया, प्रबुद्धजन, राजनीतिकों के मनोविज्ञान के हिसाब से कहानी में इन्सटंट मनोवैज्ञानिक प्रभाव उत्पन्न किये जा सकें और अच्छे-अच्छों की सिट्टी-पिट्टी गुम की जा सके।
अभ्यर्थी यदि युवा अवस्‍था में कर्नल रंजीत, सुरेन्‍द्र मोहन, ओमप्रकाश शर्मा के उपन्‍यासों का अध्येता रहा है एवं स्‍वयं अपराध कथाओं का लेखक एवं अपराध पत्रिकाओं में लेखन-सम्पादन का अनुभवी रहा हो तो उसे प्राथमिकता दी जाएगी। इससे अपराधियों की सम्पूर्ण आपराधिक पृष्ठभूमि के त्वरित अध्ययन एवं विष्लेषण पश्‍चात कहानी का आकल्‍पन सुनिश्चित होगा एवं विश्‍वसनीयता का फर्जी वातावरण निर्मित करने में सहायता होगी।
अभ्यर्थी यदि बी ग्रेड की हिट अपराध फिल्मों की कहानी एवं पटकथा लेखन से जुड़े रहने का अनुभव रखता है तो उसे प्राथमिकता दी जाएगी। पुलिस विभाग की कहानियों के घिसे-पिटे शिल्प और शैली से मुक्ति पाने के लिए कहानी में कहानी, ड्रामा, सस्‍पेंस के साथ-साथ थ्रिल भी होना आवश्‍यक है जिससे बच्चे भी पेश की गई कहानी के धुर्रे न उड़ा सकें एवं आँख बंद कर के उसे सच मान लें।
फोटोग्राफर जर्नलिस्‍टों को सर्वोच्‍च प्राथमिकता दी जावेगी, उन्‍हें कूटरचित कहानी की पुष्टि हेतु फोटो खींचकर प्रस्‍तुत करना होगा ।
ऐसे आदर्शवादी अभ्यर्थी जिन्हें यथार्थवादी लेखन का चस्का है अथवा जो नई-पुरानी कहानी के छूत रोग से ग्रस्त हो या जो उद्देश्‍यपरक साहित्यिक पत्रिकाओं, प्रगतिशील-जनवादी लघु पत्रिकाओं में लेखन कार्य करते हों, जिनकी कहानियाँ सच्‍चाई से साक्षात्‍कार कराने की फ़र्ज़ी क्रांतिकारिता से ग्रस्‍त हों या जो कहानीकार स्‍थानीय पुलिस थाने में संदिग्‍ध बुद्धिजीवी के तौर पर निगरानी शुदा  हों, उन्हें पुलिस कहानीकार के इस प्रतिष्‍ठापूर्ण पद हेतु आवेदन करने की ज़हमत उठाने की कतई आवश्‍यकता नहीं है।
महत्वपूर्ण सूचना - अभ्यर्थी अभी हाल ही में घटित दो अथवा तीन पुलिस एनकांउटरों में प्रचारित की गई कहानियों में की गई गंभीर त्रृटियों-खामियों के ऊपर अपना विस्तृत लेख तैयार कर प्रस्तुत करेंगे जिसके लिए उन्‍हें पृथक से नम्बर दिये जाएंगे। मेरिट में आने वाले अभ्‍यर्थियों को तत्‍काल पुलिस मुख्‍यालय में उपस्थित होकर अपनी ज्‍वाइनिंग देना होगी।   
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मंगलवार, 14 जुलाई 2020

कांग्रेस भ्रम फैलाती है


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
 कांग्रेस जब देखो तब भ्रम फैलाती है। वैसे कांग्रेस भ्रम की जगह कुछ और भी फैला सकती है मगर कांग्रेस को भी देखिए आजकल और कोई काम-धाम ही नहीं है, वो सिर्फ और सिर्फ भ्रम ही फैलाती रहती है। एक दिन तो मैं भारी चिंता में पड़ गया कि कांग्रेस अगर भ्रम न फैलाती तो फिर क्या फैलाती? बहुत चिंता करने के बाद यही निष्कर्ष निकला कि कांग्रेस अगर भ्रम न फैलाती तब भी भ्रम ही फैलाती।
कांग्रेस चाहे तो भ्रम के स्थान पर काफी कुछ फैला सकती है। जैसे उदाहरण के लिए वह मूर्खता फैला सकती है, वह धूर्तता फैला सकती है, यहाँ तक कि कांग्रेस घूर्तता भी फैला सकती है जिससे घूरने का काम आसानी से हो सके। लेकिन नहीं, कांग्रेस को पता नहीं किस पागल कुत्ते ने काट रखा है। मौका लगते ही वह बस भ्रम ही फैलाती है।
कितनी पुरानी है कांग्रेस, अपने लम्बे अुनभवों के दम पर वह चाहे तो साम्प्रदायिकता फैला सकती है, जातिवाद फैला सकती है, धार्मिक उन्माद फैला सकती है। लेकिन नहीं वह तो बस सिर्फ और सिर्फ भ्रम फैलाने पर ही तुली रहती है।
वैसे, भ्रम फैलाना अपने आप में एक लोकप्रिय कला है और कांग्रेस आज़ादी के बाद से ही यह कलाकारी दिखाती आ रही है। लेकिन कम से कम अब तो उसे यह भ्रम फैलाने की कलाकारी दिखाना बंद करके कुछ और फैलाना चालू कर देना चाहिए। परन्तु कांग्रेस है कि बिल्कुल मानती ही नहीं है रात-दिन बस भ्रम फैलाती रहती है। भ्रम फैला फैलाकर कांग्रेस ने पूरी धरती को पाट दिया है। यही नहीं बल्कि अब कांग्रेस आसमान को भी भ्रम से पाटने में लगी है। पता नहीं कांग्रेस को इस काम में ऐसा क्या मज़ा आता है कि और कुछ फैलाने की बजाए कांग्रेस बस भ्रम फैलाने में ही अपनी शान समझती है।
कांग्रेस को भ्रम फैलाना छोड़कर अब थोड़ा रायता भी फैलाना चाहिए। वैसे भी कांग्रेस के महत्वपूर्ण सिपाही लोग रायता फैलाने में बहुत माहिर होते ही है। अगर कांग्रेस से यदि रायता फैलाते नहीं बनता तो वह कढ़ी भी फैला सकती है। रायता और कढ़ी की फैलने की गति एवं विस्तार क्षमता भ्रम के फैलने की गति एवं विस्तार क्षमता से कई गुना अधिक होती है, यह एक वैज्ञानिक सत्‍य है, फिर भी पता नहीं क्यों कांग्रेस भ्रम फैलाने में ही ज़्यादा रुचि लेती है।
कभी-कभी मुझे भ्रम होता है कि जिसने भी कांग्रेस को बनाया भ्रम फैलाने के लिए ही बनाया है। देखिए न, आज़ादी के पहले उसने आज़ादी की लड़ाई का भ्रम फैलाया और अंग्रेज़ों से समझौता करके, सत्ता पर काबिज़ होकर, सत्तर सालों तक भ्रम फैलाती रही। और अब देखिए जब छः साल से सत्ता से महरूम हैं तब भी भ्रम फैलाती रहने से बाज नहीं आती। ऐसा लगता है इस कांग्रेस को न भ्रम फैलाने की कोई असाध्य बीमारी वगैरह है। बिना बात किसी भी मुद्दे पर बस भ्रम फैलाने बैठ जाती है।
अब देखिए, 2014 में कांग्रेस सत्ता में बने रहने के लिए तरह-तरह के खतरनाक भ्रम फैलाती रही। फिर 2019 में सत्ता में वापसी के लिए भ्रम फैलाने की कोशिश की और अब आगे 2024 में फिर से सत्ता हथियाने के लिए कांग्रेस भ्रम फैलने का षड़यंत्र करने को उतावली है। यही भ्रम फैलाने का प्रयास वह आगे 2029 में भी करेगी हम अच्छी तरह जानते हैं। लेकिन हमने भी कोई कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं, भ्रम फैला-फैलाकर ही तो आज हम इस मुकाम पर पहुँचे हैं। हम आने वाले पचास-सौ सालों तक कांग्रेस के इन भ्रम फैलाने के प्रयासों को विफल करते रहेंगे, बाकी कुछ चाहे करे या न करें।
हमें लगता है, कांग्रेस ने जल्दी ही अगर अपना यह भ्रम फैलाने का राष्ट्रीय कार्यक्रम बंद नहीं किया तो फिर हमें भी कांग्रेस के इस भ्रम फैलाने के कार्यक्रम के खिलाफ भ्रम फैलाना शुरू करना पड़ेगा।
हम भ्रम फैलाने के लिए जगह-जगह थानों में कांग्रेस के खिलाफ एफ.आई.आर दर्ज कराने का भ्रम फैलाएंगे। हम विधानसभाओं में कांग्रेस की भ्रम फैलाने की राजनीति के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित करने का भ्रम फैलाएंगे। हम पार्लियामेंट में अध्यादेश लाने का भ्रम फैलाकर भ्रम फैलाने की भ्रामक कांग्रेसी राजनीति को गैर जमानती अपराध घोषित कर देंगे। फिर देखते हैं कांग्रेस किस मुँह से भ्रम फैलाने का दुष्टतापूर्ण और गैर कानूनी काम कर पाएगी।
लेकिन हम कांग्रेस  की रग-रग से वाकिफ हैं। हम जानते हैं कि इतने भर से कांग्रेस  भ्रम फैलाने की अपनी यह पुरानी आदत छोड़ने वाली नहीं है। फिर वह विदेशों में जाकर भ्रम फैलाने का अपना यह कुकृत्य अवश्‍य करेगी। इसलिए हमने कांग्रेस की विदेशों में भ्रम फैलाने की कोशिश के जवाब में न केवल भारतीय समुदाय को भ्रमित करने की ठान ली है बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हर राजनैतिक प्लेटफार्म पर भ्रम फैलाने की इस राजनैतिक साजिश का जवाब भ्रम फैलाने की कूटनीतिक पद्धति से दिया जा सके इसकी भी पूरी तैयारी कर रखी है।
कांग्रेस  को फिर कभी भी, कहीं भी, किसी भी प्लेटफार्म पर किसी भी स्तर पर, किसी भी तरह का भ्रम फैलाने नहीं दिया जाएगा। जो भी फैलाना है वह सिर्फ और सिर्फ हम फैलाएंगे। आमीन।
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रविवार, 12 जुलाई 2020

कोरोनावर्त में विद्रोह


//व्‍यंग्‍य-प्रमोद ताम्‍बट//

कोरोनावर्त के अन्तर्राष्ट्रीय कोरोना डिप्लाईमेंट सेंटर में रात दो बजे से ही जबरदस्त भीड़ लगना शुरू हो जाती है। हर उम्र के कोरोना वायरसों के झुंड के झुंड अपनी-अपनी मनपसन्द जगहों पर डिप्लाईमेंट पोस्टिंग की हसरत लिए अपने बीवी-बच्चों और रिश्‍तेदारों के साथ आकर सेंटर के बाहर भीड़ लगा लेते हैं। सुबह दस बजे जब काउंटर खुलता है और सेंटर के कोरोना बाबू नमूदार होते हैं तो सारे कोरोना अभ्यर्थी धक्का-मुक्की करते, एक दूसरे को कुचलते हुए लाइन में लग जाते हैं।
ग्यारह बजे काउंटर खुलते ही सबसे आगे भीड़ के धक्के से काउंटर पर चढता चला आ रहा एक कोरोना अभ्यर्थी गुस्से में कोरोना बाबू से बोला- जल्दी करो न यार बाबूजी। रात दो बजे से यहाँ पड़े हुए हैं और तुम एक तो घंटा भर लेट काउंटर खोल रहे हो ऊपर से चाय सुड़क रहे हो।
कोरोना बाबू चाय की चुस्कियाँ लेते हुए इतमिनान से बोले-इतनी देर इंतज़ार किये, थोड़ा और कर लो। कोई ट्रेन तो छूटी जा नहीं रही। तनिक चाय तो पी लेने दो। तुम तो अपना काम करके यहाँ से खिसक जाओगे, हमें यहाँ दिन भर ऐसी-तैसी कराना है। फिर चाय की आखरी चुस्की लेते हुए बोले- हाँ बोलो, कहाँ से आए हो? कहाँ जाना है?
कोरोना अभ्यर्थी अपने कागज़ पत्तर सामने रखता हुआ बोला-हैदराबाद से आएँ हैं साहब!
बाबूजी ने तुरंत पूछा- कौन सा हैदराबाद? पाकिस्तान वाला या इंडिया वाला?
अभ्यर्थी कोरोना बोला- इंडिया वाला साहब। अब डाकूमेंट मत मांगने लगना। हम तो यही पैदा हुए हैं और लगता है यही मर भी जाएंगे। फॉरेन जाने का कभी मौका ही नहीं मिलेगा। अबकी बार हमें अमेरीका भेज दो साहब, मुझे ट्रंप से चिपटना है। कुछ ले-देकर देख लो साहब कुछ जुगाड़ हो जाए तो। बीवी बच्चे दुआएँ देंगे साहब।
कोरोना बाबू गुस्सा हो गया, बोला-चार दिन इंडियन आदमी के साथ क्या रह लिए, लेना-देना सीख गए तुम? कोरोनावर्त को बदनाम कर रह हो ? मूर्ख साले, किसी सेनेटाइज़ ज़ोन में फिकवा दूँगा अभी। सब भूल जाएगा।
कोरोना अभ्यर्थी हाथ जोड़कर बोला-माफ कर दो साहब, गलती हो गई। आप तो ऐसा करो सउदी अरब भेज दो। हज के लिए लाखों लोग आएंगे दुनिया भर से, वहीं अपनी ड्यूटी निभा लेंगे हम लोग।
कोरोना बाबू बोला-इंसानों के साथ रहकर लेना-देना सीख लिया, पेपर पढ़ना, टीवी देखना नहीं सीखा? सउदी अरब वालों ने ऐलान कर दिया है इस साल हज नहीं होगा। और फिर इस समय विदेश यात्रा पर रोक भी है। ऐसा करो बिहार चले जाओ, वहाँ इलेक्‍शन होने वाले हैं। कैसे जाओगे बोलो।
कोरोना अभ्यर्थी हताश होता हुआ बोला- ठीक है साहब, भेज दो बिहार। चुनाव है तो अच्छा है। यहीं किसी नेता से चिपक जाएंगे। सब ससुरे बिहार जाएंगे चुनाव प्रचार के लिए। हम भी निकल जाएंगे। लाओ परमिट।
कोरोना बाबू ने ज़रूरी खानापूर्ती करके पहली पार्टी बिहार की ओर रवाना की फिर अगले अभ्यर्थी को बुला लिया। अगला आकर बोला- साहब चीन से आया हूँ। अकेला हूँ। वहाँ बीवी बच्चे परेशान हो रहे होंगे। वापस चीन भेज दो साहब।
कोरोना बाबू बोला- ऐसे कैसे भेज दे चीन? इंटरनेशनल फ्लाइट अभी चालू नहीं हुई है। हवा में उड़कर जाओगे क्या? चीन के साथ इंडिया का लफड़ा भी चल रहा है। बिजनेसमेन लोग धंधे की जगह राष्ट्रप्रेम को प्राथमिकता दे रहे हैं। चीन की तरफ कोई फटक तक नहीं रहा, कैसे जाओगे? और हम दुनिया पर राज करने के लिए निकलें हैं, दुनिया भर में फैल जाना लक्ष्य है कोरोनावर्त का। तुम्हारे बीवी-बच्चे भी न जाने दुनिया के किस कोने में होंगे। लाखों कोरोनागण दुनिया भर में अपनी जान की कुरबानी दे रहे हैं, और तुम्हें वापस चीन जाने की पड़ी है। लानत है। ज़्यादा याद आ रही है चीन की तो चाइना टाउन कलकत्ता भेज देते हैं। जाओगे कैसे बोलो।
कोरोना अभ्यर्थी भुनभुनाता हुआ बोला- यह अच्छा है। एक तो कोरोनावर्त की निस्वार्थ सेवा करो फिर भी मनमर्जी से कहीं आ जा नहीं सकते। ज़्यादती है बाबूजी यह तो। ठीक है, देखता हूँ कहीं से मछलियों की खेप जाएगी कलकत्ता तो उन्हीं से चिपक कर निकल जाउंगा। लाओ दो परमिट।
कोरोना बाबू खुश होते हुए बोला- समझदार हो, शाबास। चलो निकलो। नेक्स्ट।
अगला कोरोना अभ्यर्थी ज़ोर-ज़ोर से हाँफता हुआ काउंटर पर आकर पसर गया और लम्बी साँसें लेता हुआ बोला-साहब कहीं भी भेजो, मगर जहाँ आयुर्वेदिक काढ़ा हो वहाँ हरगिज़ मत भेजना। दम निकाल दिया कम्बख़्तों ने। दिन में दस बार तरह का काढ़ा पीते हैं। मैं तो मर ही जाऊँगा।
कोरोना बाबू घबराकर बोला-अरे अरे अरे। क्या हुआ, तबियत ठीक है? डॉक्टर को बुलाए क्या? कहाँ से आए हो? कौन है साथ में?
कोरोना अभ्यर्थी फिर ज़ोरो से हाँफता हुआ बोला-हरिद्वार से आएँ हैं साहब। बीवी है साथ में। बच्चे तो अभी गंगा दशहरे पर गंगाजी में डुबकी लगाने वालों के साथ चिपक कर निकल गए। हमी दोनों बचे हैं। भेज दो कहीं भी।
हज़ारों कोरोनागणों की भीड़ में पीछे विद्रोह की चिंगारी सुलग उठी। कोई कोरोना चिल्लाकर बोला-बड़ा ढीला है यार यह बाबू। अबे ओ, इतने धीरे-धीरे काम करोगे तो हम सब यहीं पड़े-पड़े मर जाएंगे। इंसानी सरकारी बाबुओं की तरह काम मत करो। स्पीड़ बढाओ नहीं तो कोरोनावर्त पीएमओ में शिकायत कर देंगे।
कोई दूसरा कोरोना भी उत्तेजित होकर चिल्लाने लगा-भाड़ में गया तुम्हारा डिप्लाईमेंट सेन्टर। जैसे इंसानों ने लॉकडाउन खोल दिया है वैसे ही कोरोनावर्त गोरमेंट को भी डिप्लाईमेंट खोल देना चाहिए। हम खुद चले जाएंगे जहाँ हमें जाना होगा। कोरोनावर्त गोरमेंट होती कौन है हम पर हुक्म चलाने वाली। देखते ही देखते वहाँ ज़बरदस्त रूप से हाय-हाय के नारे लगने लगे।
इतने में कोरोना बाबू माइक पकड़कर काउंटर पर चढ़ गया और एनाउंसमेंट करने लगा- कृपया शांत रहिए, शांत रहिए। इंसानों की तरह हुड़दंगलीला मत मचाइये। देखिए दुनिया भर में हम कोरोनाओं के असमान रूप से फैलने की समस्या के कारण ही यह कोरोनावर्त सरकार ने यह डिप्लाईमेंट सेंटर खोला है। कोरोनावर्त सरकार एक धर्म-जाति-सम्प्रदाय निरपेक्ष, गाँव-नगर-महानगर निरपेक्ष, देश-द्वीप-महाद्वीप निरपेक्ष समाजवादी, साम्यवादी सरकार है। इसलिए कोरोना हेडक्वार्टर चाहता है कि हम सारी दुनिया के गाँवों-शहरों, नगरों-महानगरों में समान रूप से फैलें। आदमी-औरत, गरीब-अमीर, शोषक-शोषित कोई नहीं बचना चाहिए। यह नहीं होना चाहिए कि कहीं तो लाखों इंसान मर रहे हैं और कहीं बिल्कुल नहीं। इसलिए आप सब कोरोनागण धीरज रखिए, सबका नम्बर आएगा।
असंतोष और गुस्से से उबल रहे कोरोना समुदाय का कहीं भाषण से पेट भरता है? डिप्लाईमेंट सेंटर पर शोरगुल और अफरा-तफरी बढ़ती ही चली गई। आखिर सारे अभ्यर्थी डिप्लाईमेंट सेन्टर के अन्दर घुस गए और मेज-कुर्सियाँ उलट-पुलट कर धर दी। सारे के सारे कोरोना एक रेले की तरह वहाँ से निकले और जिसको जहाँ जाने का मन हुआ निकल पड़ा।
लॉकडॉउन खुलने से लाखों इंसान अपने अपने घरों से निकल पड़े हैं और इधर कोरोना वायरसों के झुंड भी छुट्टा घूम रहा है। देखिए दोनों की मुठभेड क्‍या रंग लाती है।
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निठल्‍लों के वाट्सअप ग्रुप


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//

वाट्सअप ग्रुप आजकल इफरात में बढ़ चले हैं । इससे साबित होता है कि निठल्‍ले भी बड़ी तादात में बढ़ गए हैं। इन निठल्‍लों ने अपने-अपने वाट्सअप ग्रुप बना रखे हैं और अपनी सल्‍तनतों की तरह वे रात-दिन उन ग्रुपों की छाती पर सवार रहते हैं । एक ग्रुप से जी नहीं भरता तो चार-छ: और ग्रुप तो बनाते ही हैं साथ ही आठ-दस अन्‍य वाट्सअप ग्रुपों में भी अपनी आवाजाही बनाए रखते हैं ताकि निठल्‍लेपन के इस समय को हर ग्रुप में बराबर-बराबर काटा जा सके और वाट्सअप निठल्‍लेपन की समस्‍त गतिविधियों पर गिद्ध सी नज़र भी बनाई रखी जा सकें ।
ऐसे ही कुछ निठल्‍लों की वाट्सअप सल्‍तनत पर मैंने एक लघु शोध सा शुरू किया तो पता चला कि एक सल्‍तनत में तो एक निठल्‍ला रात तीन बजे से ही सक्रिय हो जाता है। जैसे उसे ग्रुप की चौकीदारी करने का महत्‍वपूर्ण कार्य सौंपा गया हो । तड़के 3 बजे उठकर अपने ग्रुप में आठ दस फूल-पत्तियों, देवी-देवताओं के चित्रों के साथ, गुडमार्निंग, सुप्रभात, सतश्री अकाल, चोरी की शेरों -शायरी, कविताएँ इत्‍यादि-इत्‍यादि का मलबा उढेलकर फि‍र एक-एक कर सारे ग्रुपों में चक्‍कर लगाना चालू करके यही कचरा सभी जगह छोड़ आने के बाद तब वह चैन की साँस लेता है । किसी सुंदर निठल्‍ली का जन्‍मदिन हो तो फिर तो पूछो ही मत। फूलों के गुच्‍छे, मिठाई के डिब्‍बे, चाकलेट, केक, पेस्‍ट्री इत्‍यादि-इत्‍यादि के वर्चुअल गिफ्ट ग्रुप की बजाय व्‍यक्तिगत मैसेज में भेजकर फिर रिटर्न गिफ्ट का इंतजार करने बैठ जाता था ।
एडमिन निठल्‍ला यू तो निठल्‍ला ही होता है मगर अपने वाट्सअप ग्रुपों के काम से इतना ओव्‍हर लोडेड होता है कि बाकी निठल्‍लों को आश्‍चर्य होता है कि इतना सारा काम वह पता नहीं क्‍या खाकर कर लेता है। इधर-उधर से सामग्री उड़ा-उड़ाकर ग्रुप में डालना और फिर बाकी निठल्‍लों के कमेन्‍ट्स का इंतजार करना । कमेन्‍ट आया नहीं कि उसका जवाब खेच कर मारना । जवाब न आए तो जूता फेंक के मारना। संवाद के साथ-साथ वाद-विवाद, प्रतिवाद, पैदा करना । गरम लोहे पर तुरंत चोट होना चाहिए । अगर किसी ने निठल्‍ला कह कर पुकारा है तो तुरंत तू निठल्‍ला, तेरा बाप निठल्‍ला का प्रत्‍युत्‍तर पहुँच ही जाना चाहिये । चाहे शौचालय में हों परंतु तब भी मोबाइल वहीं ले जाकर हमला- प्रतिहमला जारी रखना ज़रूरी है । ग्रुप के ऊपर पकड़ ढीली नहीं होना चाहिये, चाहे कुछ भी हो जाए ।
कुछ ग्रुपों में कड़े अनुशासन का पालन करना बेहद जरूरी होता है । जो निठल्‍ला अनुशासन भंग करने का प्रयास करता है उसको सजा दी जाती है। एडमिन निठल्‍ले का बस चले तो वो अनुशासन हीनता के लिए अन्‍य निठल्‍लों को देश निकाले की  सज़ा दे दे, परंतु वह दया करके मात्र 2-3 दिनों या हफ्ता भर के लिए उसे ग्रुप से बाहर निकलने की सजा देकर काम चला लेता है ।
ग्रुप के किसी निठल्‍ले को बुरा मानने का अधिकार नहीं है। अगर खुदा न खास्‍ता कोई बुरा मान ही जाए तो उसे मनाने के लिए एक हाई पावर कमेटी टाइप का विशेष दल गठित किया जाता है, जिसमें ग्रुप के कुछ सीनियर निठल्‍ले शामिल किये जाते हैं जो किसी भी सूरत में सदस्‍य को वापस लाने में माहिर होते हैं ।
एडमिन गलतियों खामियाँ करने के लिए स्‍वतंत्र होता है । किसी निठल्‍ले ने एडमिन की गलती निकाल दी तो समझो ग्रुप में 9 रिक्‍टर स्‍केल का भूकंप आ जाएगा। फिर तो इस भूकम्‍प के झटके कई दिन तक रूक-रूक कर ग्रुप में लगते रहने हैं । एडमिन निठल्‍ला आठ-पन्‍द्रह दिन तक बाकी सारे निठल्‍लों की गलतियाँ निकाल-निकाल कर उन्‍हें खरी-रोटी सुनाता रहता है । जब तक कि वह गरीब हर सम्‍भव प्‍लेटफार्म पर एडमिन से क्षमा याचना नहीं कर लेता।
ग्रुप के बाकी निठल्‍लों की भूमिका को भी कोई कम कर के आँका नहीं जा सकता । समय-समय पर हा हा, ही ही, ठी ठी, वाह-वाह, क्‍या बात-क्‍या बात, साधु-साधु करते रहकर ग्रुप का निठल्‍लापन बरकरार रखने का जि़म्‍मा उनका होता है। साहित्यिक-सांस्‍कृतिक ग्रुपों में इसकी बानगी देखी जा सकती है। सारे निठल्‍ले एक-दूसरे की रचनाओं को बिना पढ़े लहालोट हुए जाते हैं । उनका बस चले तो वे अपने मोबाइल से वाट्सअप में घुसकर जिसकी रचना छपी है उसके वाट्सअप से बाहर निकलकर उसे हार-फूल, मालाएँ, शाल-श्रीफल इत्‍यादि चढ़ा आएँ। लगे हाथ आरती करके प्रसाद वितरण भी कर दें ।
लॉकडाउन में निठल्‍लों के हजारों नए-नए वाट्सअप ग्रुप कुकरमुत्‍तों की तरह उग आए थे । उन्‍होंने अपना निठल्‍लापन एक दूसरे से बाँटने के लिए रात-दिन एक कर दिए । अब लॉकडाउन कुछ-कुछ खुलने लगा है । निठल्‍ले अपने-अपने काम में लगने लगे हैं । कई वाट्सअप ग्रुप अब ठंडे पड़ गए लगते हैं । मगर सदा के निठल्‍लों के वाट्सअप ग्रुपों में अब भी वही धमाचौकड़ी जारी है ।
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शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

भाँति भाँति के फेस मास्क


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//

आ गए, आ गए, आ गए, मल्टी स्पेशियलिटी, मल्टीपरपज़ फेस मास्क आ गए । शानदार डिज़ाइनर मास्कों की बेहतरीन रेंज आकर्षक दामों में। हमारे फेस मास्कों को लगाने से कोरोना के नाक-मुँह में घुसने का खतरा तो खत्म हो ही जाता है, एक से एक बेहतरीन सुविधाएँ भी मिलती हैं।
रेंज का पहला मास्क मुँह में इनबिल्ट टाइप का होता है और हनुमान जी के मुँख की तरह प्रभाव उत्पन्न करता है जिससे आप खुद भी रामभक्त नज़र आते हैं और हनुमान भक्तों के पूज्य भी हो जाते हैं। इनबिल्ट होने के कारण इसके बाजू से कोरोना तो क्‍या कोरोना को छूकर आई हवा भी प्रवेश नहीं कर सकती।
दूसरे मास्क में यह सुविधा है कि आप जो कुछ भी खाते हैं, जैसे गुटखा-तमाकू या प्याज़-मूली, उसका स्वाद आपके मुँह के अन्दर ही सुरक्षित रहता है। दूसरों को उसकी खुशबू-बदबू का आनंद उठाने का मौका नहीं मिलता। पायरिया के मरीज़ों को इससे बहुत ही फायदा है। मुँह की बदबू मुँह में ही भ्रमण करती रहती है, बाहर नहीं आती। प्रेमिका वगैरह के सामने मास्क हटाने की ज़रूरत नहीं पड़ती क्योंकि हमारे इस मास्क में ज़िप भी लगी हुई है। मास्‍क के सेन्टेड होने के कारण पायरिया की बदबू का प्रेमिका को एहसास ही नहीं हो पाता। सबसे शानदार फीचर इस मास्क का यह है कि बीवी से छुपकर दारू पीने वालों के लिए यह एक वरदान की तरह है। पी कर बीवी के बगल में भी बैठ जाओंगे तब भी उसे पता नहीं चलेगा।
तीसरे टाइप का मास्क उधार खाकर बैठने वालों के लिए बेहद उपयोगी है, क्योंकि इस मास्क से नब्बे प्रतिशत चेहरा ढक जाता है। किसी के पहचानने का प्रश्‍न ही नहीं उठता है। उधारी माँगने वाले यदि ज़्यादा ही चतुर हों तो उनको चकमा देने के लिए हमने दाढ़ी वाले मास्क, मूँछ वाले मास्क, या अड़ोसी-पड़ोसी लोगों के जबड़े-बत्तीसी की डिज़ाइन के मास्क भी बना कर देने की स्कीम चलाई है।
चौथी किस्म के मास्क हैं लोकप्रिय हस्थियों के चेहरों के मास्क। जैसे मोदी-शाह मास्क, सोनिया-राहुल मास्क, शाहरुख-सलमान-बच्चन मास्क, दिपिका-कंगना मास्क इत्यादि। विशेष आर्डर पर हम ट्रम्प और जिनपिंग का मास्क भी उपलब्ध करा सकते हैं। परन्‍तु दोनों मास्‍क धारियों के लड़ पड़ने का खतरा देखकर ऐसा करते नहीं है।
राजनेताओं के लिए हमारा पाचवाँ मास्क बहुत उपयोगी हैं। लगाकर खुले आम घूमते रहो, जनता पहचानेगी ही नही तो विकास का हिसाब-किताब भी नहीं मांग पाएगी। पार्टी के किसी काम्पीटीटर का केरियर बरबाद करने के लिए हुबहु उसके चेहरे का मास्क भी तैयार कर दिया जाता है, ताकि उसे लगाकर, विरोधी पार्टी के दफ्तर में घुसने का विडियों बनाकर वायरल किया जा सके।
एक मास्क तो हमने ऐसा इन्ट्रोड्यूज़ किया है जिसे लगाकर किसी को भी मुँह पर ही गंदी-गंदी गालियाँ दी जा सकती हैं। उस मास्क में गालियाँ छनकर अन्दर ही रह जाती है और बाहर सिर्फ चापलूसी वाले अच्छे-अच्छे शब्द ही निकलते हैं। इससे सिर फुटव्वल का खतरा नहीं उत्पन्न होता और भड़ास भी निकल जाती है।
हमने इकोफ्रेंडली मास्क भी बनाया है जो कि पेड़ के पत्तों इत्यादि से बना हुआ है। सड़क पर फेंक देने से इसे गाय-बकरी खा लेती हैं और पर्यावरण की रक्षा हो जाती है। आने वाले समय में हमें न जाने कितने मास्‍क सड़कों पर फेंकना पड़ें, उस लिहाज़ से यह बहुत उपयोगी है।
एक मास्क तो हमने इतना ज़बरदस्त बनाया है मत पूछिए। इसे कोरोना के खतरे से बचाव के साथ-साथ खाया भी जा सकता है। भूख लगने पर मुँह पर बंधे-बंधे ही आप इसे खा ले सकते हैं और वेज-नानवेज फास्ट फूड के सैंकड़ों अलग-अलग टेस्टों में इसका लुत्फ उठाया जा सकता है। भूख की भूख मिटेगी और रोज़ नया मास्क लगाने का उत्साह रहेगा। एक ही मास्क धो-धोकर चढ़ा लेने के खतरों से सामना नहीं होगा।
एक अनोखा मास्क हमने बाज़ार में ऐसा भी उतारा है जिसमें सामने वाला अपनी शक्ल देखकर कंघी कर सकेगा। इसी को मोबाइल स्क्रीन की तरह विकसित करने की हम कोशिश कर रहे हैं ताकि कोई भी सामने बैठकर अपना फेसबुक वाट्सअप स्टेटस देख सके।
एक मास्क हमारे पास ऐसा है जो अपने आप आपके कपड़ों के मैच का बन जाता है। आप नीली शर्ट पहनोगे तो वह नीला बन जाएगा और लाल शर्ट पहनने से लाल। लड़कियों के लिए तो इसमें प्रिंट मैच का आप्‍शन भी मौजूद है और लिपिस्टिक दर्शन के लिए ट्रांसपिरेंट खिड़की का प्रबंध भी होगा।
आइये, आइये, आइये। एक से एक बढि़या फेस मास्क खरीदकर लगाइये, कोविड 19 के साथ-साथ अपने पड़ोसी को भी हराइये और महामारी को अवसर बनाइये।
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गुरुवार, 9 जुलाई 2020

अर्थव्‍यवस्‍था का अर्थ-अनर्थ


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था एक ऐसी व्‍यवस्‍था है जिसमें न कोई अर्थ है और न कोई व्‍यवस्‍था। यह  एक ऐसी अर्थव्‍यवस्‍था है जिसका अर्थ व्‍यवस्‍था के ऊपर और व्‍यवस्‍था अर्थ के ऊपर चढ़ कर बैठी हुई होती है। यह वैसा ही है जैसा कि यह सवाल- लाड़ी है कि साड़ी है, साड़ी है कि लाड़ी है। लाड़ी ऊपर साड़ी है, साड़ी ऊपर लाड़ी है।
बहरहाल, भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था पूँजीपतियों की तिजोरी में नहीं बल्कि रेल की पटरियों पर रहती है। पटरियों पर रहती है इसीलिए तो अक्‍सर पटरी से उतरी रहती है। पटरियों से नीचे वह ज्‍यादातर खेतों को रोंदती हुई चलती है। इसीलिए भारतीय किसान हर वक्‍त इस भारी-भरकम अर्थव्‍यवस्‍था के बोझ तले आत्‍महत्‍या करता रहता है।
पटरियों पर रहती है लेकिन इसे आप रेल नहीं कह सकते। क्‍योंकि कभी-कभी तगड़ा सरकारी पैकेज पाकर अर्थव्‍यवस्‍था तो पटरी पर लौट आती है परन्‍तु रेल बेपटरी होकर कभी पटरी पर नहीं लौटती। सीधे कबाड़खाने पहुँचकर किलो के भाव में तुल जाती है।
अर्थव्‍यवस्‍था कभी-कभी आसमान में भी चलती है परन्‍तु वहाँ पटरियाँ न होने के कारण वह दिशाहीन होकर भटक जाती है और सीधे सड़क पर आ जाती है। न न, इसका यह मतलब नहीं है कि पी.डब्‍लू.डी. ने आसमान में भी सड़कें बनाई हैं। वह दरअसल हमारे देश की उबड़खाबड़ सड़कों पर आ गिरती है। उठाने जाओ तो बुरी तरह सड़क से चिपक जाती है, जैसे सड़क पर गिरा मोबिल ऑइल, जिस पर से आमजनता और अक्‍सर सरकार भी, दोनों फिसल-फिसल कर गिरते रहते हैं। उठते हैं फिर गिरते हैं।
सड़क पर आ गिरी अर्थव्‍यवस्‍था को वापस खींचकर पटरियों पर लाना बेहद दुष्‍कर और लगभग असंभव सा कार्य हो जाता है। बिना अनुभवी और सक्षम ड्रायवर के यह कतई संभव नहीं होता। ड्रायवर की जगह अगर भटियारे को यह काम सौंप दिया जाएगा तब तो स्‍वाभाविक है कि सड़क पर रायता ही फैला हुआ मिलेगा। जैसा कि इन दिनों फैला हुआ है।
अर्थव्‍यवस्‍था रायते सी फैली हुई ही नहीं बल्कि उस मिल्‍क आइसक्रीम केंडी की तरह भी होती है जो फ्रिजि़ंग तापमान से मुक्‍त होते ही पिघलकर लोंदे की शक्‍ल में बहने लगती है और बच्‍चे उसकी खाली डंडी हाथ में लिए घूमते रहते हैं। बीच-बीच में आइसक्रीम की सूनी डंडी को ही चाट लेते हैं। कुछ देर तक तो अर्थव्‍यवस्‍था स्‍वादिष्‍ट लगती रहती है, फिर आइसक्रीम की डंडी की फाँसें चीभ में चुभने लगती हैं।  
इन दिनों अर्थव्‍यवस्‍था चुसे हुए आम सी हो गई है। अर्थशास्‍त्री यह कयास लगाते रहते हैं कि इसे आखिर कौन चूस गया है। जनता चूस गई है या कोई और। सच्‍चाई यह है कि आम जनता तक तो आम कभी पहुँचता ही नहीं है, चूसना तो बहुत दूर की बात है। दरअसल आम को तो खुद आम का पेड़ ही चूस कर खा गया होता है। कह सकते हैं कि अर्थव्‍यवस्‍था उस भक्षक वृक्ष के समान है जिसके फूल पत्‍ते और फल खुद वह वृक्ष ही खा जाता है। बाकी एक ठूँट बचा रह जाता है जिसे देख-देखकर अर्थव्‍यवस्‍था के विद्वान लेक्‍चर झाड़ते रहते हैं।
अर्थव्‍यवस्‍था के अर्थ का अर्थ है व्‍यापक अनर्थ और अर्थव्‍यवस्‍था के व्‍यवस्‍था का अर्थ है व्‍यापक दुर्व्‍यवस्‍था। इस अनर्थ और दुर्व्‍यवस्‍था में अर्थव्‍यवस्‍था की व्‍यवस्‍था चौपट है। ऐसी व्‍यवस्‍था का आखिर क्‍या अर्थ है जो अर्थ और व्‍यवस्‍था विहीन हो।
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