//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
कोरोनावर्त
के अन्तर्राष्ट्रीय कोरोना डिप्लाईमेंट सेंटर में रात दो बजे से ही जबरदस्त भीड़
लगना शुरू हो जाती है। हर उम्र के कोरोना वायरसों के झुंड के झुंड अपनी-अपनी
मनपसन्द जगहों पर डिप्लाईमेंट पोस्टिंग की हसरत लिए अपने बीवी-बच्चों और रिश्तेदारों
के साथ आकर सेंटर के बाहर भीड़ लगा लेते हैं। सुबह दस बजे जब काउंटर खुलता है और
सेंटर के कोरोना बाबू नमूदार होते हैं तो सारे कोरोना अभ्यर्थी धक्का-मुक्की करते, एक दूसरे को कुचलते हुए लाइन में लग जाते हैं।
ग्यारह
बजे काउंटर खुलते ही सबसे आगे भीड़ के धक्के से काउंटर पर चढता चला आ रहा एक कोरोना
अभ्यर्थी गुस्से में कोरोना बाबू से बोला- जल्दी करो न यार बाबूजी। रात दो बजे से
यहाँ पड़े हुए हैं और तुम एक तो घंटा भर लेट काउंटर खोल रहे हो ऊपर से चाय सुड़क
रहे हो।
कोरोना
बाबू चाय की चुस्कियाँ लेते हुए इतमिनान से बोले-इतनी देर इंतज़ार किये, थोड़ा और कर लो। कोई ट्रेन तो छूटी जा नहीं रही। तनिक चाय तो
पी लेने दो। तुम तो अपना काम करके यहाँ से खिसक जाओगे, हमें यहाँ दिन भर ऐसी-तैसी कराना है। फिर चाय की आखरी
चुस्की लेते हुए बोले- हाँ बोलो, कहाँ से आए हो? कहाँ जाना है?
कोरोना
अभ्यर्थी अपने कागज़ पत्तर सामने रखता हुआ बोला-हैदराबाद से आएँ हैं साहब!
बाबूजी
ने तुरंत पूछा- कौन सा हैदराबाद? पाकिस्तान
वाला या इंडिया वाला?
अभ्यर्थी
कोरोना बोला- इंडिया वाला साहब। अब डाकूमेंट मत मांगने लगना। हम तो यही पैदा हुए
हैं और लगता है यही मर भी जाएंगे। फॉरेन जाने का कभी मौका ही नहीं मिलेगा। अबकी
बार हमें अमेरीका भेज दो साहब, मुझे ट्रंप से
चिपटना है। कुछ ले-देकर देख लो साहब कुछ जुगाड़ हो जाए तो। बीवी बच्चे दुआएँ देंगे
साहब।
कोरोना
बाबू गुस्सा हो गया,
बोला-चार दिन इंडियन आदमी के साथ क्या रह लिए, लेना-देना सीख गए तुम? कोरोनावर्त को बदनाम कर रह हो ? मूर्ख साले, किसी सेनेटाइज़ ज़ोन में फिकवा दूँगा अभी। सब
भूल जाएगा।
कोरोना
अभ्यर्थी हाथ जोड़कर बोला-माफ कर दो साहब, गलती हो गई। आप तो ऐसा करो सउदी अरब भेज दो। हज के लिए लाखों लोग आएंगे दुनिया
भर से,
वहीं अपनी ड्यूटी निभा लेंगे हम लोग।
कोरोना
बाबू बोला-इंसानों के साथ रहकर लेना-देना सीख लिया, पेपर पढ़ना, टीवी देखना नहीं सीखा? सउदी अरब वालों ने ऐलान कर दिया है इस साल हज नहीं होगा। और
फिर इस समय विदेश यात्रा पर रोक भी है। ऐसा करो बिहार चले जाओ, वहाँ इलेक्शन होने वाले हैं। कैसे जाओगे बोलो।
कोरोना
अभ्यर्थी हताश होता हुआ बोला- ठीक है साहब, भेज दो बिहार। चुनाव है तो अच्छा है। यहीं किसी नेता से चिपक जाएंगे। सब ससुरे
बिहार जाएंगे चुनाव प्रचार के लिए। हम भी निकल जाएंगे। लाओ परमिट।
कोरोना
बाबू ने ज़रूरी खानापूर्ती करके पहली पार्टी बिहार की ओर रवाना की फिर अगले
अभ्यर्थी को बुला लिया। अगला आकर बोला- साहब चीन से आया हूँ। अकेला हूँ। वहाँ बीवी
बच्चे परेशान हो रहे होंगे। वापस चीन भेज दो साहब।
कोरोना
बाबू बोला- ऐसे कैसे भेज दे चीन? इंटरनेशनल
फ्लाइट अभी चालू नहीं हुई है। हवा में उड़कर जाओगे क्या? चीन के साथ इंडिया का लफड़ा भी चल रहा है। बिजनेसमेन लोग
धंधे की जगह राष्ट्रप्रेम को प्राथमिकता दे रहे हैं। चीन की तरफ कोई फटक तक नहीं
रहा,
कैसे जाओगे? और हम दुनिया पर राज करने के लिए निकलें हैं, दुनिया भर में फैल जाना लक्ष्य है कोरोनावर्त का। तुम्हारे बीवी-बच्चे भी न
जाने दुनिया के किस कोने में होंगे। लाखों कोरोनागण दुनिया भर में अपनी जान की
कुरबानी दे रहे हैं,
और तुम्हें वापस चीन जाने की पड़ी है। लानत है। ज़्यादा याद
आ रही है चीन की तो चाइना टाउन कलकत्ता भेज देते हैं। जाओगे कैसे बोलो।
कोरोना
अभ्यर्थी भुनभुनाता हुआ बोला- यह अच्छा है। एक तो कोरोनावर्त की निस्वार्थ सेवा
करो फिर भी मनमर्जी से कहीं आ जा नहीं सकते। ज़्यादती है बाबूजी यह तो। ठीक है, देखता हूँ कहीं से मछलियों की खेप जाएगी कलकत्ता तो उन्हीं
से चिपक कर निकल जाउंगा। लाओ दो परमिट।
कोरोना
बाबू खुश होते हुए बोला- समझदार हो, शाबास। चलो निकलो। नेक्स्ट।
अगला
कोरोना अभ्यर्थी ज़ोर-ज़ोर से हाँफता हुआ काउंटर पर आकर पसर गया और लम्बी साँसें
लेता हुआ बोला-साहब कहीं भी भेजो, मगर जहाँ
आयुर्वेदिक काढ़ा हो वहाँ हरगिज़ मत भेजना। दम निकाल दिया कम्बख़्तों ने। दिन में दस
बार तरह का काढ़ा पीते हैं। मैं तो मर ही जाऊँगा।
कोरोना
बाबू घबराकर बोला-अरे अरे अरे। क्या हुआ, तबियत ठीक है? डॉक्टर को
बुलाए क्या?
कहाँ से आए हो? कौन है साथ में?
कोरोना
अभ्यर्थी फिर ज़ोरो से हाँफता हुआ बोला-हरिद्वार से आएँ हैं साहब। बीवी है साथ में।
बच्चे तो अभी गंगा दशहरे पर गंगाजी में डुबकी लगाने वालों के साथ चिपक कर निकल गए।
हमी दोनों बचे हैं। भेज दो कहीं भी।
हज़ारों
कोरोनागणों की भीड़ में पीछे विद्रोह की चिंगारी सुलग उठी। कोई कोरोना चिल्लाकर
बोला-बड़ा ढीला है यार यह बाबू। अबे ओ, इतने धीरे-धीरे काम करोगे तो हम सब यहीं पड़े-पड़े मर जाएंगे। इंसानी सरकारी
बाबुओं की तरह काम मत करो। स्पीड़ बढाओ नहीं तो कोरोनावर्त पीएमओ में शिकायत कर
देंगे।
कोई
दूसरा कोरोना भी उत्तेजित होकर चिल्लाने लगा-भाड़ में गया तुम्हारा डिप्लाईमेंट
सेन्टर। जैसे इंसानों ने लॉकडाउन खोल दिया है वैसे ही कोरोनावर्त गोरमेंट को भी
डिप्लाईमेंट खोल देना चाहिए। हम खुद चले जाएंगे जहाँ हमें जाना होगा। कोरोनावर्त
गोरमेंट होती कौन है हम पर हुक्म चलाने वाली। देखते ही देखते वहाँ ज़बरदस्त रूप से
हाय-हाय के नारे लगने लगे।
इतने
में कोरोना बाबू माइक पकड़कर काउंटर पर चढ़ गया और एनाउंसमेंट करने लगा- कृपया शांत
रहिए,
शांत रहिए। इंसानों की तरह हुड़दंगलीला मत मचाइये। देखिए
दुनिया भर में हम कोरोनाओं के असमान रूप से फैलने की समस्या के कारण ही यह कोरोनावर्त
सरकार ने यह डिप्लाईमेंट सेंटर खोला है। कोरोनावर्त सरकार एक धर्म-जाति-सम्प्रदाय
निरपेक्ष,
गाँव-नगर-महानगर निरपेक्ष, देश-द्वीप-महाद्वीप निरपेक्ष समाजवादी, साम्यवादी सरकार है। इसलिए कोरोना हेडक्वार्टर चाहता है कि हम सारी दुनिया के गाँवों-शहरों, नगरों-महानगरों में समान रूप से फैलें। आदमी-औरत, गरीब-अमीर, शोषक-शोषित
कोई नहीं बचना चाहिए। यह नहीं होना चाहिए कि कहीं तो लाखों इंसान मर रहे हैं और
कहीं बिल्कुल नहीं। इसलिए आप सब कोरोनागण धीरज रखिए, सबका नम्बर आएगा।
असंतोष
और गुस्से से उबल रहे कोरोना समुदाय का कहीं भाषण से पेट भरता है? डिप्लाईमेंट सेंटर पर शोरगुल और अफरा-तफरी बढ़ती ही चली गई।
आखिर सारे अभ्यर्थी डिप्लाईमेंट सेन्टर के अन्दर घुस गए और मेज-कुर्सियाँ उलट-पुलट
कर धर दी। सारे के सारे कोरोना एक रेले की तरह वहाँ से निकले और जिसको जहाँ जाने
का मन हुआ निकल पड़ा।
लॉकडॉउन
खुलने से लाखों इंसान अपने अपने घरों से निकल पड़े हैं और इधर कोरोना वायरसों के
झुंड भी छुट्टा घूम रहा है। देखिए दोनों की मुठभेड क्या रंग लाती है।
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