//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
जैसे हमेशा आता-जाता है, स्वतंत्रता दिवस फिर आ गया। यही वह दिन है जब अँग्रेज़ हमें आज़ा़दी का झुनझुना पकड़ा कर अपने घर भाग गए थे। इस झुनझुने की झुन-झुन सुनते-सुनते चौसठ साल बीत गये, उसके अन्दर पड़ी कंकड़ी घिस-घिसकर खत्म हो चुकी, अब झुनझुने में से कोई आवाज़ नहीं आती।
अँग्रेज़ क्यों हमें इतनी बड़ी दुनिया में अकेला छोड़कर भाग गये इस संबंध में कई धारणाएँ प्रचलित हैं। एक धारणा है कि भारतीयों को अँग्रेज़ी सिखाना उन्हें भारी पड़ रहा था, उन्हें सिखाते-सिखाते अँग्रेज़ी की ही खटियाखड़ी होती जा रही थी। इसलिए, अपनी भाषा बचाने की गरज से सारे अँग्रेज़ भारत से भाग निकले।
एक धारणा यह है कि अँग्रेज़ गाँधीजी की लाठी से डरकर भागे थे, और इसी के समानान्तर एक मत यह भी है कि वे गाँधीजी के ‘सत्य’ और ‘अंहिसा’ के सिद्धांत से घबराकर भागे। उनका सोचना था कि ‘लाठी’ और ‘अहिंसा’ के विरोधाभासी संबंध के बारे में गाँधीजी ‘सत्य’ का प्रकटीकरण नहीं कर रहे थे। उनके सिद्धांतकारों में यह आम राय बन चुकी थी कि गाँधीजी दिखाने भर के लिये अहिंसा-अहिंसा का राग आलापते हैं, दरअसल उनके इरादे नेक नहीं हैं, एक न एक दिन अवश्य ही पूरा देश अँग्रेज़ों पर ‘लठ’ लेकर पिल पड़ेगा। पिटने के डर से कौन बड़ा से बड़ा गुंडा जान बचाकर नहीं भागता ?अँग्रेज़ भी भाग गये।
एक मत यह है कि अँग्रेज़ों को आभास हो चुका था कि आगामी राजनैतिक परिस्थितियाँ अपने बाप से नहीं सम्हलने वाली और देश में तेज़ी से फैलती जा रही विकट प्रजातांत्रिक चेतना का मुकाबला उनकी गोरी फौज से नहीं हो सकेगा। जनता से तो फिर भी वे लाठी-गोली की मदद से निपट लेंगे मगर सौ दो सौ राजनैतिक पार्टियों का मुकाबला आखिर वे क्या खाकर करेंगे।
अँग्रेज़ दूरदृष्टि सम्पन्न तो थे ही, सन सैतालिस में ही उन्हें पता चल गया था कि भविष्य में भारत, लालू-राबड़ी, मोदियों-ठाकरों और, राजाओं, कलमाड़ियों, कनिमोझियों, रेड्डियों-येदीयुरप्पाओं का देश बनने जा रहा है। इसीलिए उन्होंने फालतू झँझट में न पड़कर आज़ादी का झुनझुना भारत की जनता को सौंप अपने मुल्क की और कूच कर दिया। हम चौसठ वर्षों से निरन्तर यह बेआवाज़ झुनझुना बजाए जा रहे हैं।
आपके हर व्यंग्य की तरह सटीक !
जवाब देंहटाएंस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
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कल 15/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
आगामी राजनैतिक परिस्थितियाँ अपने बाप से नहीं सम्हलने वाली..
जवाब देंहटाएंइसी लिए भागे थे :)
पहले भूगोल बदला, अब इतिहास बदल रहा है।
जवाब देंहटाएंसच है बस हम आजादी का झुनझुना ही बजाए जा रहे हैं .. आपके इस सुंदर सी प्रस्तुति से हमारी वार्ता भी समृद्ध हुई है !!
जवाब देंहटाएंस्वाधीनता दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।
जवाब देंहटाएंयथार्थ को बताता हुआ सार्थक लेख /बहुत सही ढंग से लिखा है आपने /सच कहा आपने हम इतने सालों से स्वंत्रता का झुनझुना ही बजा रहे हैं /बधाई आपको /
जवाब देंहटाएंब्लोगर्स मीट वीकली (४)के मंच पर आपका स्वागत है आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आभार/ इसका लिंक है http://hbfint.blogspot.com/2011/08/4-happy-independence-day-india.html
धन्यवाद /