शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

दूसरी आज़ादी की अंगड़ाई


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
            जिल्लेसुभानी, शहंशाह अकबर का इक़बालअंतिम समय तक इसलिए बुलन्द रहा क्योंकि उनके सारे सलाहकार-नौरत्न बड़े दूरअंदेश और समझदार किस्म के लोग हुआ करते थे। इतिहास बताता है कि उनकी अचूक सलाहों की वजह से जिल्लेसुभानी के सामने कभी थूक कर चाटने की स्थिति नहीं बनी और ना ही उनकी सल्तनत पर किसी बड़बोले सलाहकार की वजह से कोई मुसीबत आयद हुई। मगर बादशाही के इतिहास में कई ऐसे टुच्चे किस्म के सलाहकार होने के सबूत भी मौजूद हैं जिन्होंने अपने बादशाह सलामत को उल्टी-सीधी सलाह दे-देकर उनकी बादशाहत का बेड़ा ग़र्क करवा दिया।
            आधुनिक युग की सत्ताओं में भी कई सत्ताधीशों को उल्लू के पट्ठे सलाहकारों की वजह से अपनी खटिया खड़ी और बिस्तर गोल करवाना पड़ा। इमरजेंसी के दौरान कुछ सलाहकारों की एक चांडाल-चैकड़ी ने ऐसी धमाचैकड़ी मचाई कि देश का पहला अनुशासन पर्व, कुशासन पर्व बनकर रह गया और कड़ी मेहनत, दूरदृष्टि, पक्का इरादा आदि-आदि प्रातः स्मरणीय सूत्र वाक्य लोकतंत्र की आँधी में सूखे पत्तों की तरह उड़ गये। हम सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे थे मगर जनता की ज़ालिम ताकत द्वारा जबरदस्ती बीच में ही रोक दिये गये।
            सलाहकार फिर सक्रिय है और जिल्लेसुभानी को दे-दनादन उल्टी-सीधी सलाहें दिये चले जा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि उन्हें जिल्लेसुभानी का मुँह बंद कर शांति से तख्ते-ताऊस पर बैठना अच्छा नहीं लग रहा। जिल्लेसुभानी का थोड़ा बहुत भी इकबालजो इधर-उधर बुलन्द पड़ा हुआ दिखाई दे रहा है, वह उतावले सलाहकारों को बर्दाश्त नहीं हो रहा। हो सकता है किसी और को तख्तनशीन देखने की जल्दी में वे जिल्लेसुभानी का जल्द से जल्द बंटाधार कर देने पर तुले हुए हों।
कोई सलाहकार यदि बादशाह सलामत को बर्र के छत्ते में हाथ डालने की सलाह दे, या बादशाह सलामत को खामोश दूसरी ओर मुँह किये बैठा देख सलाहकार खुद ही छत्ते में पत्थर मार दे तो बताइये भला क्या हो।
देश दूसरे राष्ट्रपिताके नेतृत्व में दूसरी आजादीकी लड़ाई के लिए अंगड़ाइयाँ लेने की कोशिश कर रहा है, सलाहकार लोग उन्हें यह दुष्कृत्य करने नहीं देना चाहते। क्योंकि अगर देश को दूसरी आज़ादी मिल गई तो फिर पहली आज़ादी के मजे लूटने वाले कहाँ जाएँगे?

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