सोमवार, 18 मई 2020

कोरोना काल में रचनात्‍मकता


//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
लॉकडाउन में लोगों की रचनात्मकता उफन-उफनकर निकली पड़ रही हैं जिसने जीवन में कभी रचनात्मक का नहीं जाना वह भी, जो हाथ में आए उठाकर रचनात्मक हुआ जा रहा है। पुराने जमाने के बाप आज होते तो लट्ठ लेकर अपनी औलादों पर पिल पड़ते- सालों, बहुत रचनात्मकता सूझ रही है? कोई ढंग का काम कर लो तो जीवन सुधर जाएगा। बापों की इसी घुड़की की वजह से बहुत सारे लोग अब तक नीरचअर्थात अरचनात्मकज़िन्दगी जी रहे थे। लॉकडाउन ने उनकी उसी दबी-कुचली रचनात्मकता को खोद-खोद कर बाहर निकाल दिया है।
ज़्यादातर मर्द किचन में रचनात्मक हो रहे हैं। जो चीज़ बीवी बनाने से साफ-साफ मना कर दे उसे बनाकर रचनात्मकता का सुख ले रहे हैं, फिर भले ही वह पापड़ भूनने की रचनात्मकता हो। लौकी, तुरई, कद्दू जैसी नीरस सब्ज़ियों के पकवान बना-बनाकर रचनात्मक शोषण में लगे पड़े हैं। वैसे तो किचन पारम्परिक रूप से महिलाओं की रचनात्मकता का क्षेत्र रहा है मगर सदियों से रोज़ किचन में खटने के बावजूद भी उन्हें कभी रचनात्मक होने का श्रेय नहीं मिला। मात्र महीना भर वही काम करके पुरुष लोग एक-दूसरे की पीठ ठोके ले रहे हैं।
किचन में तो कई लोगों की रचनात्मकता विकट किस्म की हो पड़ी है। वे पूरे हलवाई बनने पर उतारू हैं। माफ कीजिएगा हलवाईनहीं आजकल शेफकहा जाता है। तो ये नव शेफ गण ऐसे-ऐसे आयटम बना-बनाकर बमुश्किल हासिल किया हुआ घर का सारा किराना बरबाद कर रहे हैं जो शादी पार्टियों या बड़ी-बड़ी मिठाई की दुकानों में ही दिखाई पड़ते हैं। कुछ लोग बेकरी आयटमों में हाथ आजमा कर आटा-मैदा चीनी का सत्यानाश कर रहे हैं तो कुछ लोग जलेबी, इमरती बनाने की असफल कोशिशों में लगे हैं।
रचनात्मकता का यह दौरा लेखन में भी देखा जा सकता है। जो हमेशा काम-धंधे और पैसा कमाने की चिंता में जीवन-यापन करते रहें हैं वे कविता लिखने पर उतारू हैं। शेरो-शायरी लिख-लिख कर गालिब और ज़ौक की आत्मा को झकझोरा जा रहा है। कोरोना काल है तो लेखन की रचनात्मकता का केन्द्र बिन्दु ज़ाहिर है कोरोना ही होगा। कोरोना पर दोहा, चौपाई, कविता, सानेट, शायरी, व्यंग्य, व्‍यंग्‍य चित्रों, चुटकुलों, वन लाइनरों की बाढ़ आ गई है। उन्हें लग रहा है इस बाढ़ में कोरोना ज़रूर डूब मरेगा।
किचन और लेखन यह दोनों गूढ़ विषय जिन महानुभावों से नहीं सधते उनके लिए रचनात्मकता का तीसरा क्षेत्र है बागवानी। यूँ कभी ज़िन्दगी में गमले में पानी न डाला गया हो मगर आजकल वे हाथ में खुरपा-खुरपी लेकर अपनी बीवी के तैयार किए किचन गार्डन की ऐसी-तैसी करने पर तुले नज़र आ रहे हैं। लगे हैं ज़बरदस्ती पौधों की कटाई-छटाई, रिपॉटिंग, ग्राफ्टिंग, एयर लेयरिंग करने में। उन्हें कौन बताए कि भैया फिलहाल इन सब कामों को करने का मौसम नहीं है। पानी भर देते रहो पौधों में। मगर मुश्किल यह है कि पानी दिन भर तो नहीं दिया जा सकता न! सो जो कुछ कर के टाइम काटा जा सके वह कर रहे हैं।
कुछ भाई लोग तो रचनात्मकता को बड़े ही खतरनाक क्षेत्र में खोज रहे हैं। एक भाई साहब का मैसेज आया मेरे पास - घर में दारू बनाने की विधि आती है क्या। मैंने कहा- भाई इतने ज़्यादा रचनात्मक मत बन जाओ कि लेने के देने पड़ जाए। फिलहाल घर में ही क्वारनटाइन हो, दारू बनाने लगोगे तो जेल में क्वारनटाइन होना पड़ेगा।
देखते चलिए, कोरोना काल में रचनात्‍मकता और कितने दिन दिलो-दिमाग पर तारी रहती है।   

4 टिप्‍पणियां: