सोमवार, 27 जुलाई 2020

लैंडलाइन में कोरोना वार्तालाप

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
          महानगर की एक खूबसूरत कोरोना पॉजीटिव दोशीज़ा ने किसी दूसरे शहर में अपने रिश्ते दार को लैंडलाइन फोन से सम्पर्क किया तो उसके अन्दर बैठा हुआ कोरोना वायरस खुशी से झूम उठा। उसे भी अपने रिश्ते्दार से बातचीत करने का मौका मिल गया, क्योंकि उधर फोन उठाने वाला आदमी खुद भी करोना पॉजीटिव होने का सिग्नल दे रहा था। सिग्नल से सिग्नल मिला और इधर वाले ने उधर वाले से चहकते हुए पूछा - क्यों बंधु, क्या चल रहा है।
          उधर वाला लापरवाही से बोला- और क्या, फॉग चल रहा है। हो कौन तुम?
          इधर वाला हँसता हुआ बोला – फॉग? टीवी बहुत देखते हो लगता है। अरे मैं तुम्हारा जाति भाई बोल रहा हूँ कोविड-19।
          उधर वाला प्रसन्न हो गया, बोला -अच्छा भैया तुम हो। क्या करें भैया ये साला बुढढा घर से निकलता ही नहीं, दिन-रात टीवी के सामने जमा बैठा रहता है। मैं भी मजबूरी में इसके आँख कान नाक में से झाँक-झाँक कर टीवी देखता रहता हूँ। वैसे बताएँ भैया, अभी टीवी के विज्ञापन वाला फॉग नहीं था, मुंसीपाल्टी वालों का दिखावे का फॉग था घर के बाहर। फालतू धुँआ छोड़ते रहते हैं कम्बख्त। उनके धुँए से मामूली अनलोडेड मच्छर तो मरता नहीं, हम तो सम्पूर्ण वायरस प्रजाति के बाप कोरोना वायरस हैं, कैसे मरेंगे भला? वैसे कहाँ से हो आप भैया?
          इधर वाला ठसक के साथ बोला-चीन से, एकदम ओरीजनल। फिलहाल मुम्बई में पड़े हुए हैं।
उधर वाले को लगा कि उसे कोई इंफीरियरिटी काम्प्लेक्स दिया जा रहा है। वह भी दम-दाटी के साथ बोला- हैं तो हम भी चीन ही से, ग्लोबलाईजेशन के कारण ईरान, दुबई घूमते-घामते यहाँ झूमरीतलैया में आ पहुँचे। अब यहाँ से आगे किस्मत में कहीं जाना लिखा लगता नहीं है। 
          इधर वाला थोड़ा डपटियाता हुआ बोला- क्यों बे, एक ही जगह जम कर बैठ जाओगे क्या? भूल गए अपनी परम्परा और संस्कृति? विश्व गुरू बनना है हमें विश्वगुरू। पूरी दुनिया पर राज करना है।
          उधर वाला बोला-भैया में तो अपना काम ईमानदारी से कर रहा हूँ। इस बुढ्ढे पर से होते हुए इसके सारे परिवार को चपेट में लेने ही वाला था कि यह बुढढा खाँसने लगा। सब के सब इसे अकेला छोड़कर भाग गए। बस एक बरतन वाली और दूध वाले पर ही हमला कर पाया हूँ। अब वे दोनोंं कहाँ हैं पता नहीं। अपने कुल का विस्तार हो भी रहा है या नहीं, आई डोंट नो। अगर कहीं क्वारेन्टाइन हो गए हों तो मेरा तो बर्थ कंट्रोल शुरू समझो। यह बुढढा भी आखिरी साँसें ले रहा है। पता नहीं कब चटक जाए। आपकी क्या हिस्ट्री है भैया? बताओ न।
          इधर वाला लम्बी साँस लेते हुए बोला- अपन तो थेट चीन से है भाई। माँ तो अपनी होती नहीं, बाप वुहान से है। एक घटिया चीनी इलेक्ट्रानिक आयटम के व्यापारी की मूँछ पर सवार होकर अपन इंडिया आ गए। अब तक हवाई जहाज, लोकल ट्रेन, बस, ऑटो में सैकड़ों लोगों के ऊपर फुदकते हुए अब इस महानगर में एक खूबसूरत हीरोइनी के ऊपर बैठे हुए है आजकल। 
          उधर वाला जलन के एहसास को दबाता हुआ बोला- वाह भैया, आप तो बड़े मज़े में हो। बढिया इंपोर्टेड परफ्यूम पाउडर की खुशबू में डूब उतरा रहे हो। 
          इधर वाला मायूसी से बोला- नहीं रे, सारा स्टॉक खत्म कर दिया इस बन्दरिया ने। घर के बाहर क्वारेन्टाइन का बोर्ड लगा है तो बाहर जा नहीं पाती और ऑन लाइन वाले भी इधर फटकते नहीं। बस साबुन की खुशबू से ही काम चलाना पड़ रहा है, क्या करें। वो भी पता नहीं कपड़ा धोने के साबुन से नहा लेती है, क्या करती है, क्या पता। उल्टी सी आने लगती है। बहुत छुप-छुपा कर बैठना पड़ता है।
          उधर वाला बोला- अच्छा तो क्वारेन्टाइन का मज़ा ले रहे हो। खुशकिस्मत हो भैया आप। यहाँ तो ये बुढ्ढा पता नहीं क्या तो गोमूत्र वगैरा पीता रहता है। बदन पर गोबर नामक पदार्थ चुपड़ लेता है और दवा की तरह कभी-कभी खा भी लेता है गुनगने पानी से। रात-दिन घर में हवन करता रहता है ताकि हम सब धुए से खाँस-खाँस कर मर जाए। घर की सारी किताब-कॉपी हवन कुंड में जला मारी। मुझे पहले पता होता यह संकट तो कभी इस बुढढे की गली में झाँकता तक नहीं। 
          इधर वाला लम्बी आह भरता हुए बोला- यार सुखी तो इतने अपन भी नहीं। यह लड़की रात दिन सिगरेट पीती रहती है। दारू पीकर टुन्न हो जाती है। तुम्हें तो पता है दारू अपने लिए कितनी खतरनाक साबित हो सकती है। प्राण भी जा सकते हैं। जैसे ही वो पैग बनाती है मैं तो उसकी नाक में घुसकर बैठ जाता हूँ। 
          उधर वाला सहानुभूति प्रकट करता हुए बोला- सम्हल कर रहना भैया, ये लोग नाक से गोमूत्र तक पी जाते हैं, वो लड़की नाक से दारू न पी ले कभी।
          इधर वाला ठठाकर हँस पड़ा फिर बोला- और बताओ उधर अपने खिलाफ क्या-क्या षड़यंत्र चल रहे हैं?
          उधर वाला उदास सा बोला- काहे का षड़यंत्र\  लॉकडाउन उठा लिया है पब्लिक को खुला छोड़ दिया है। लोग लगे हुए हैं अपने मन से अपना इलाज करने में। कोई काढ़े पी रहा है तो कोई सेनेटाइज़र से हाथ धो-धोकर खाल उधड़वा रहा है। आयुर्वेद वालों की चांदी कट रही है। कोई अल्लाह के भरोसे है कोई भगवान के। मंदिर बनाने में लगे हैं। अस्पतालों की चिंता किसी को नहीं। उस पर तुर्रा यह कि मन्दिर बनते ही हमारी कोरोना प्रजाति का अस्तित्व नष्ट हो जाएगा।  
          इधर वाला बोला- चिन्ता मत करो भाई, मन्दिर-मस्जि़द से कुछ नहीं होने वाला। अपना कुल अजर-अमर हैं। अपन विश्व  विजेता बन कर रहेंगे। सब कुछ ठीक-ठाक रहा न तो अपन तीनों लोक, सकल ब्रम्हांड पर विजयश्री हासिल कर लेंगे। 
          उधर वाला जिज्ञासा से बोला- अपन कब विश्व विजेता बनेंगे भैया, मुझे अमेरिका जाना है। व्हाइट हाउस में घुसकर ट्रंप को मजा चखाना है। बहुत गरिया रहा है आजकल वो अपनी मातृ भूमि चीन को। 
          इधर वाला वायरस आशा एवं विश्वांस के मिले जुले स्वर में बोला- यदि हिन्दुस्तान की जनता ज्ञान-विज्ञान को ताक पर रख कर यूँ ही मूर्खतापूर्ण हरकतें करती रहीं तो अपन पूरे हिन्दुस्तान को लपेटते हुए दुनिया भर में घूम मचा देंगे। कोविड-19 से आगे बढ़ कर कोविड-20, कोविड-22, कोविड-25, कोविड-40, प्रगति करते चले जाएंगे।
          तभी टू टू टू टू की आवाज के साथ अचानक फोन कट गया। दोनों कोरोना वायरस बिल-बिलाकर रह गए। किसी तरल पदार्थ के ढाले जाने की आवाज के साथ इधर वाला कोरोना फुर्ती से हीरोइनी के मुँह से वापस नाक में घुस गया, क्योंकि हीरोइनी ने फिर से दारू का गिलास भर लिया था।

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