व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट
मालदीव वालों ने समुद्र की गहराई में और नेपाल वालों ने एवरेस्ट की चोटी पर बैठकर जलवायु परिवर्तन के बारे में सोच-विचार कर लिया, तो हम क्यों पीछे रहने वाले थे। देश का साम्प्रदायिक तापमान बढ़ाने में माहिर गुजरात के ‘मुख्यमंत्री’ महोदय ने भी कच्छ के रेगिस्तान में अपनी चिंता की दुकान सजाकर राजस्थान वालों से यह मौका छीन लिया। रेगिस्तानीपने की अधिकता के मद्देनजर धूल-बालू फाँकते हुए जलवायु परिवर्तन के बारे में चिंतामग्न होने का पहला हक राजस्थानियों का बनता था, मगर गुजरात वालों ने इसे बड़ी खूबसूरती से हथियारकर उन बेचारों के सामने प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है कि वे अब कहाँ बैठकर जलवायु के बारे में चिंता व्यक्त करें। गुजरात वाले चाहते तो ‘अलंग समुद्र तट’ पर जहाजों के कबाड़ और रासायनिक प्रदूषण के बीच बैठकर चिंता व्यक्त कर ले सकते थे और रेगिस्तान राजस्थानियों के चिंतित होने के लिए छोड़ सकते थे, मगर दोनों जगह अलग-अलग पार्टियों की सरकारें होने से यह परस्पर समभाव संभव नहीं हो सका। अब राजस्थानी चाहें तो सूखे पेड़ों के ठूठों पर बैठकर यह काम सम्पन्न कर ले सकते हैं क्योंकि वहाँ पेड़ों के टोटे से वायु हमेशा जल विहीन रहती है और जल के टोटे से पेड़-पौधे हरियाली विहीन रहते हैं।
अब चूँकि पहल हो ही गई है तो देश के दूसरे राज्यों को भी फटाफट यहाँ-वहाँ बैठकर जलवायु परिवर्तन पर चिंता व्यक्त कर लेना चाहिए। मध्यप्रदेश के लिए आदर्श स्थिति होगी कि वे हजार-दो हजार फुट गहरे बोर में बैठकर गिरते भूजल पर या सूखी नदियों-तालाबों में गाव-तकिए लगाकर जल संकट पर चिंता व्यक्त करें। उत्तरप्रदेश के लिए मुफीद होगा कि वे भी रासायनिक कीचड़ में तब्दील होती जा रही गंगा-जमुना के बीच नौका विहार का शाही लुत्फ लेते हुए चिंतन करें। बिहार वाले कृपया वार्षिक बाढ़ आयोजन का इंतजार कर लें और बाढ़ के पानी में बैठकर या उसके विनाश कर निकल जाने के बाद राहत सामग्री पर बैठकर यह काम निबटा सकते हैं।
झारखंड वालों के लिए बैठने के लिए अच्छी होंगी खदानें। कोड़ाओं द्वारा खनिज संपदा के अंधाधुंध दोहन से भूगर्भ गतिविधियाँ गड़बड़ा जाए इससे पहले ही किसी खदान में मंच लगाकर जलवायु परिवर्तन पर विचार किया जा सकता है।
दिल्ली वालों को तो किसी लम्बे चलने वाले दैनिक ट्राफिक जाम में बैठकर दुनिया भर को यह संदेश पहुँचाने का मौका है कि देखों रे पेट्रोल जला-जलाकर भी तुम जलवायु की खटियाखड़ी कर रहे हो। ट्राफिक जाम में गाड़ियों से निकलने वाली जहरीली गैसों से अगर कोई चिंतामग्न राजनयिक बेहोश होकर गिर पड़े तो संदेश दुनिया भर में सफलता से पहुँचा समझो।
पंजाब-हरियाणा वाले जहरीले पेस्टीसाइट्स की बोरियों पर बैठ लें। पश्चिम बंगाल वाले भी मजदूर-किसानों की खोपड़ी पर बैठकर मीटिंग कर दुनिया को बताएँ कि तुम्हारे यहाँ अगर जलवायु के सत्यानाश पर लोग बेवजह हल्ला मचा रहे हैं तो पश्चिम बंगाल आकर हमें मौका दें। हम अपने सोनार बाँग्ला में ग्रीन हाउस गैसों को ससम्मान जगह देंगे।
महाराष्ट्र में मुम्बई वाले उसी जगह चिंतन करने बैठें जो समुद्र स्तर बढ़ने से सबसे पहले डुबने वाली है। उत्तर-पूर्व और दक्षिण भारत वाले भी अपनी-अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर सुविधानुसार बैठने की जगह चुन लें और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर जल्द से जल्द अपनी चिंता व्यक्त कर लें। बाकी सारे प्रदेश भी युद्ध स्तर पर चिंताएँ व्यक्त करलें वर्ना अगर सारी चिंताएँ कोपेनहेगन में ही व्यक्त कर ली गईं तो फिर हम भारतीयों के पास हाथ पर हाथ रखे बैठने के अलावा कुछ बचेगा ही नहीं।
विनोद जी बहुत खूब खरी खरी सुना दी आपने बधाई
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