रविवार, 10 जनवरी 2010

उस सज्जन पुरुष को लंपट और औरतबाज मानने के लिए तैयार नहीं है चाहे कितनी भी "बिना बाप की औलादें" आकर उसे अपना नाज़ायज़ बाप घोषित करें।

// व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट //



चाहे कोई हथेली पर अंगार रखकर कहे या पूरा का पूरा अग्नि में खड़ा होकर मुनादी करे कि एक वयोवृद्ध महामहीम आदमी ने राजभवन में अय्याशी कांड रचाकर राजभवन की मर्यादा की वाट लगा दी है, तब भी हम यह मानने के लिए तैयार नहीं है। क्या बात कर दी ! हो ही नहीं सकता ! एक पड़दादा-पड़नाना की उम्र का कब्र में पाँव लटकाकर बैठा हुआ बूढ़ा, एक नहीं दो नहीं, तीन-तीन स्त्रियों के साथ अय्याशी का कृत्य करे, संभव ही नहीं है। एक क्षीण, शिथिल, निस्पंद, निस्तेज, ढीले, थके हुए निर्वाणोन्मुख शरीर से इतनी उच्च गत्यात्मक, ऊर्जाखाऊ गतिविधि की कल्पना कैसे की जा सकती है ! अगर जबरदस्ती यह कल्पना करना ही पड़ी तो वृद्धावस्था के प्रति भारतीय नज़रिया बदलकर ही यह संभव हो सकता है।
बता रहे हैं कि महामहीम तीन औरतों के साथ रासलीला करते हुए रंगे हाथों कैमरे में कैद किये गए हैं। यह भी कोई बात हुई! एक इतने आला रुतबे वाला, ऊँचे अख्तियार वाला, ताकतवर, संवैधानिक पद पर आसन्न राजनेता, महज तीन औरतों के साथ रंगरेलियाँ मनाए!! जबकि उसके एक इशारे पर तीन क्या, तीस क्या, तीन सौ औरतें राजभवन में आ खड़ी हो सकती हैं। सिर्फ तीन औरतों के साथ रंगरेलियाँ मनाने की बात कुछ गले नहीं उतरती। ज़रूर उस शरीफ आदमी के साथ कोई बहुत बड़ी साजिश रची गई है। राजनीति में बुढापा कई लोगों की आँखों में खटकता रहता है। जवान सोचते रहते हैं कि आखिर कब तक बुढ्ढा कुर्सी पर जमा रहेगा ! हमें भी मजे करने का मौका मिलना चाहिए, सो पत्ता साफ करने के लिए तिरिया तुरप चला गया हो, यह भी हो सकता है।
आम मान्यता है कि राज्यपाल तो रबर स्टेंप किस्म की चीज़ होता है। अब बताइये, एक रबर स्टेंप, जिसकी नियति है बिना हिले डुले एक जगह पड़े रहना, जो अपनी मर्जी से किसी कागज़ पर छप तक नहीं सकता वह लाचार, मजबूर रबर स्टेंप हाड़ मास वाले लंपट, कामातुर चरित्र वाले छिछोरे आदमी जैसी हरकतें कभी कर सकता है ? रबर स्टेंप कभी इस तरह का कोई जटिल काम कर सकता है भला जिसे करने के लिए किसी भी संवेदनशील इंसान को अपनी तमाम इन्द्रियाँ जाग्रत करनी होती हैं। देखा है किसी ने रबर स्टेंप को अपनी इन्द्रियाँ जाग्रत करते हुए ? अगर उसकी इन्द्रियाँ जाग्रत हो ही जातीं तो फिर वह यूँ हर किसी के हाथ का खिलौना बन पाता। फिर ! फालतू बेचारे एक सीधे-साधे आदमी को बुढापे में ऐसे काम में फँसाने का क्या मतलब है जिसे करते हुए अब तो उसके पोतों-पड़पोतों के फँसने की उम्र हो।
जो इन्सान चार कदम बिना किसी की मदद के चल नहीं सकता, समारोहों में दीप प्रज्वलन के लिए माचिस की तीली नहीं जला सकता, उद्घाटन में रिबिन काटने के लिए हल्की-फुल्की चाइनीज़ कैची नहीं उठा सकता, लोकार्पण-अनावरण में पर्दे की रस्सी नहीं खींच सकता, वह तीन-तीन औरतों के साथ मस्ती कैसे कर सकता है! और चलिए किसी की मदद से वह उपरोल्लेखित सारे काम कर भी लेता हो तो, उन तीन औरतों के साथ प्रणय लीला में भी तो किसी ने उसकी मदद की होगी! बुलाओं उसको, वह हाथ पकड़कर प्रणयलीला में मदद करने वाला शख्स भी अगर आकर यदि कहे कि हाँ हम चश्मदीद गवाह हैं, जो कुछ हुआ, हमारी आँखों के सामने हुआ, तब भी हम मानने के लिए तैयार नहीं होगे कि ऐसा कुछ हुआ होगा। फिर भी आप जबरदस्ती हमें मनवाने के लिए तुले हुए हैं, कि हम मान लें कि भारतीय राजनीति में लम्बे समय से जमा यह ‘नेता’ पुराना अय्याश है। हम तो बिल्कुल भी उस सज्जन पुरुष को लंपट और औरतबाज मानने के लिए तैयार नहीं है चाहे कितनी भी "बिना बाप की औलादें" आकर उसे अपना नाज़ायज़ बाप घोषित करें।
अखबार, पत्र-पत्रिकाएँ और मीडिया वाले चाहे जितना हल्ला मचाएँ, भाई हम तो सोहार्द की भारतीय संस्कृति में रचे बसे लोग हैं, ऐसी फालतू की बातों पर यू ही आँख-कान बंद करके विश्वास नहीं कर लेते चाहे कोई हमें स्टिंग का वीडियो ही क्यों ना दिखा दे। हमारे भी कुछ उसूल हैं, उसूलन बुजुर्गों को हम हमेशा अपना पथ प्रदर्शक, दिशादर्शक मानते आ रहे हैं और मानते रहेंगे चाहे उनकी कारस्तानियों से हमारा सिर शर्म से नीचे क्यों ना झुक जाए।

11 टिप्‍पणियां:

  1. व्यंग्यकार तो शूद्र होता है भैया Anonymous ji!!!!

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  2. बेनामी भाई, क्या अब लम्पटता, बलात्कार और छिछोरेपन में भी आप ब्राह्मण-शूद्र ढूंढेंगे क्या??? ताम्बट जी ने इतना बढ़िया लिखा है, एक लाइन तारीफ़ की भी डाल देते…

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  3. tiwari ji k kisse to pahale se hi bahut charchit hain...agar unki jagah mulayam,lalu,hote to media ab tak unka jeena haram kar deta...parantu aap to tiwari ji ka bachaaw kar rahe hai,kaun nahi janta unke karnamo k bare me?
    @suresh ji..me to बलात्कार और छिछोरेपन me brahaman aur shudra me farak nahi karta hun parantu hamara media karta hai..aap mane chahe na mane...rahi baat tareef ki to ye subject tareef k layak nahi hai nahi tiwari ji tareef k layak hai...

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  4. बचाव !!! हा हा हा !!!!
    इससे करारा व्यंग्य और क्या हो सकता है। बेनामी जी लगता है व्यंग्य की भाषा ही नहीं समझ पा रहे हैं।

    प्रमोद ताम्बट

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  5. फालतू बेचारे एक सीधे-साधे आदमी को बुढापे में ऐसे काम में फँसाने का क्या मतलब है जिसे करते हुए अब तो उसके पोतों-पड़पोतों के फँसने की उम्र हो। हा हा हा.......वाह वाह!!

    नारदमुनि

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  6. हो न हो इन सब के पीछे जरूर कोई बहुत बडा षडयंत्र हैं :)

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  7. देर से आने के लिये क्षमा चाहती हूँ । ये भी सटीक व्यंग है शुभकामनायें आज तक जितने भी व्यंगकारों को पढा है आप सब से अधिक प्रभावित करते हैं धन्यवाद्

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  8. PRAMOD JI...VO VIKAS PURUSH AISE HEE NAHI HAIN...UNKE VIKAASON KEE GATHA HAR UTTRAKHAND VASEE KO KANTHAST HAI....RAJBHAVAN ME BHI VIKAS KAARYA PRAGATI PAR THA,,,LEKIN KATIPAY LOGON KO YAH VIKAAS RAAS NAHI AAYA AUR VE PAKDE GAE.....

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  9. Vishwamitra ka Tap Ek ne hi bhang kiya tha,Yeh to usse bhi adhik Mahan hain.Ab bhi woh Tapasya main Leen hain.

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