//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट //
बहन मायावती ने नोटों की माला क्या पहनी भाइयों के पेट में दर्द होने लगा। इस देश में यहीं दिक्कत है, बहनें कुछ करें तो भाइयों को हज़म ही नहीं होता। तैतीस प्रतिशत् आरक्षण के मुद्दे पर हम देश भर में भाइयों का हड़बोंग देख ही चुके हैं। भाइयों को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं है कि लोकतांत्रिक लूटमार के उनके अभियान में बहनें भी हिस्सेदार बनें।
यूँ देखा जाए तो गुप्त आदान-प्रदान के इस जमाने में बहन मायावती के इस पारदर्शितापूर्ण नोट्यार्पण कार्यक्रम की आलोचना करने का अधिकार किसी को नहीं है। आखिर ऐसा किया क्या है उन्होंने ! चोरी तो की नही है! ना ही डाका डाला है! लोग, दबे-छुपे इस चतुराई से नोट ले लेते हैं कि किसी को कानों-कान खबर नहीं होती। दाएँ हाथ को सूचना नही मिल पाती कि बाएँ हाथ ने भ्रष्टाचार कर कुछ ले लिया है। मगर बहन मायावती ने ऐसा कुछ नहीं किया। चमचों के सत्कार को दुर्लभ विनम्रता के साथ खुलेआम, सारी दुनिया के सामने स्वीकार किया है। उनकी किस्मत से उन्हें करोड़ों नोटों की लाटरी लग गई तो इसमें उनका क्या कुसूर। उन्होंने औरों की तरह चुपचाप इस कमाई को अन्दर कर रजाई-गद्दों, डबल बेडों में तो छुपा नहीं दिया! ना संडास-बाथरूम के फर्श के नीचे गाड़कर रखा। परवारे-परवारे स्विस बैंक में भी नहीं पहुँचाया। बल्कि कलात्मक रूप से माला में गुँथे हाथों के इस मैल को अपने कीमती गले में अर्पणवाया है। नोटों का युक्तिसंगत आदान-प्रदान भी हर किसी के बस की बात नहीं है, इस मामले में बहन मायावती को मानना ही पडे़गा। भेंट-पूजा का ऐसा सार्वजनिक कार्यक्रम भारतीय राजनीति के इतिहास में पहले कभी देखना नसीब नहीं हुआ।
मुझे लगता है कि बहनजी के गले की यह माला अब मील के पत्थर की तरह हमेशा उनके गले में पड़ी रहने वाली है और मासूम फूलों को दुष्टों के गले में पड़े रहने की मजबूरी से छुटकारा मिलने वाला है। माल्यार्पण की जगह अब नोट्यार्पण का नया चलन अस्तित्व में आ जाएगा। यही अब नेताओं का कद नापने का नया पैमाना हो चलेगा। किसके गले में पड़ी माला कितने-कितने के कितने नोटों की पाई गई, इससे तय होगा कि कौन ज़्यादा कद्दावर नेता है। जितने ज़्यादा नोट माला में, उतने बड़े कद का नेता। माया बहन का कद छोटा दिखाने के लिए उस ऐतिहासिक माला से दो-चार पेटी ज़्यादा की माला तुरंत अगर किसी नेता ने अपने गले में नहीं पड़वाई तो फिर बहनजी को निर्विवाद बड़ा नेता माने जाने से कोई नहीं रोक पाएगा। वे ऐसी ही बड़ी-बड़ी मालाएँ पहनकर अपनी आकांक्षा की कुर्सी की ओर लगातार बढ़ती चलीं जाएंगी, बाकी लोग मुँह ताकते रह जाएंगे।
फूलों की मालाओं का तो बुरा हश्र होने को है, उसकी तुलना जूतों की माला से होने लगेगी। जिस मात्रा और कोटि की बेइज्जती कोई नालायक जूतों की माला पहनकर महसूस करता है उसी मात्रा और कोटि की बेइज्जती अब फूलों की माला से उपजा करेगी। लोग विरोधियों को जूते मारने के लिए जानबूझकर सार्वजनिक रूप से फूलों की माला पहना जाएंगे।
नोटों की माला के लोकप्रिय होने से मान-सम्मान के सारे प्रतिमान ध्वस्त होते नज़र आएंगे। लोग शिकायतें करते मिला करेंगें, हम पाँच हज़ार की माला के पात्र थे, कम्बख्तों ने पाँच सौ एक की माला पहनाकर चलता कर दिया, घोर बेइज्जती हो गई। इधर दूसरों को नीचा दिखाने के लिए चूरन के नकली नोटों का चलन भी निश्चित रूप से बढे़गा। आजकल यह चूरन का नोट बाज़ार में मिलता है कि नहीं पता नहीं, परन्तु नेता लोग बाज़ार में उपलब्ध तमाम चूरन के नोट उठाकर उसे कौशलपूर्वक माला में गुँथवाकर एक दूसरे की टोपी उछालने का काम किया करेंगे। कुछ तो शुद्ध बदमाशी और ठगी पर उतर आऐंगे, रद्दी पेपर, कॉपी-किताब के रंगीन पन्नों की माला गुथवाकर उसी को गले में पड़वा लेगे और चमचों के माध्यम से अफवाह उड़वाऐंगे कि-नेताजी पर दस करोड़ की माला की चढ़ी, अब उन्हें राष्ट्रीय स्तर का नेता होने से कोई नहीं रोक सकता।
माया की नोटों की माला की माया और भी ना जाने क्या-क्या परिवर्तन लाने वाली है। हो सकता है फानी दुनिया से रुख़सत हो गए लोगों के ऊपर भी श्रद्धाजंलि स्वरूप लोग नोटों की माला ही अर्पण करने लगें, ताकि इस फानी दुनिया में उसकी औकात का खुलासा हो जाए।
यूँ देखा जाए तो गुप्त आदान-प्रदान के इस जमाने में बहन मायावती के इस पारदर्शितापूर्ण नोट्यार्पण कार्यक्रम की आलोचना करने का अधिकार किसी को नहीं है। आखिर ऐसा किया क्या है उन्होंने ! चोरी तो की नही है! ना ही डाका डाला है! लोग, दबे-छुपे इस चतुराई से नोट ले लेते हैं कि किसी को कानों-कान खबर नहीं होती। दाएँ हाथ को सूचना नही मिल पाती कि बाएँ हाथ ने भ्रष्टाचार कर कुछ ले लिया है। मगर बहन मायावती ने ऐसा कुछ नहीं किया। चमचों के सत्कार को दुर्लभ विनम्रता के साथ खुलेआम, सारी दुनिया के सामने स्वीकार किया है। उनकी किस्मत से उन्हें करोड़ों नोटों की लाटरी लग गई तो इसमें उनका क्या कुसूर। उन्होंने औरों की तरह चुपचाप इस कमाई को अन्दर कर रजाई-गद्दों, डबल बेडों में तो छुपा नहीं दिया! ना संडास-बाथरूम के फर्श के नीचे गाड़कर रखा। परवारे-परवारे स्विस बैंक में भी नहीं पहुँचाया। बल्कि कलात्मक रूप से माला में गुँथे हाथों के इस मैल को अपने कीमती गले में अर्पणवाया है। नोटों का युक्तिसंगत आदान-प्रदान भी हर किसी के बस की बात नहीं है, इस मामले में बहन मायावती को मानना ही पडे़गा। भेंट-पूजा का ऐसा सार्वजनिक कार्यक्रम भारतीय राजनीति के इतिहास में पहले कभी देखना नसीब नहीं हुआ।
मुझे लगता है कि बहनजी के गले की यह माला अब मील के पत्थर की तरह हमेशा उनके गले में पड़ी रहने वाली है और मासूम फूलों को दुष्टों के गले में पड़े रहने की मजबूरी से छुटकारा मिलने वाला है। माल्यार्पण की जगह अब नोट्यार्पण का नया चलन अस्तित्व में आ जाएगा। यही अब नेताओं का कद नापने का नया पैमाना हो चलेगा। किसके गले में पड़ी माला कितने-कितने के कितने नोटों की पाई गई, इससे तय होगा कि कौन ज़्यादा कद्दावर नेता है। जितने ज़्यादा नोट माला में, उतने बड़े कद का नेता। माया बहन का कद छोटा दिखाने के लिए उस ऐतिहासिक माला से दो-चार पेटी ज़्यादा की माला तुरंत अगर किसी नेता ने अपने गले में नहीं पड़वाई तो फिर बहनजी को निर्विवाद बड़ा नेता माने जाने से कोई नहीं रोक पाएगा। वे ऐसी ही बड़ी-बड़ी मालाएँ पहनकर अपनी आकांक्षा की कुर्सी की ओर लगातार बढ़ती चलीं जाएंगी, बाकी लोग मुँह ताकते रह जाएंगे।
फूलों की मालाओं का तो बुरा हश्र होने को है, उसकी तुलना जूतों की माला से होने लगेगी। जिस मात्रा और कोटि की बेइज्जती कोई नालायक जूतों की माला पहनकर महसूस करता है उसी मात्रा और कोटि की बेइज्जती अब फूलों की माला से उपजा करेगी। लोग विरोधियों को जूते मारने के लिए जानबूझकर सार्वजनिक रूप से फूलों की माला पहना जाएंगे।
नोटों की माला के लोकप्रिय होने से मान-सम्मान के सारे प्रतिमान ध्वस्त होते नज़र आएंगे। लोग शिकायतें करते मिला करेंगें, हम पाँच हज़ार की माला के पात्र थे, कम्बख्तों ने पाँच सौ एक की माला पहनाकर चलता कर दिया, घोर बेइज्जती हो गई। इधर दूसरों को नीचा दिखाने के लिए चूरन के नकली नोटों का चलन भी निश्चित रूप से बढे़गा। आजकल यह चूरन का नोट बाज़ार में मिलता है कि नहीं पता नहीं, परन्तु नेता लोग बाज़ार में उपलब्ध तमाम चूरन के नोट उठाकर उसे कौशलपूर्वक माला में गुँथवाकर एक दूसरे की टोपी उछालने का काम किया करेंगे। कुछ तो शुद्ध बदमाशी और ठगी पर उतर आऐंगे, रद्दी पेपर, कॉपी-किताब के रंगीन पन्नों की माला गुथवाकर उसी को गले में पड़वा लेगे और चमचों के माध्यम से अफवाह उड़वाऐंगे कि-नेताजी पर दस करोड़ की माला की चढ़ी, अब उन्हें राष्ट्रीय स्तर का नेता होने से कोई नहीं रोक सकता।
माया की नोटों की माला की माया और भी ना जाने क्या-क्या परिवर्तन लाने वाली है। हो सकता है फानी दुनिया से रुख़सत हो गए लोगों के ऊपर भी श्रद्धाजंलि स्वरूप लोग नोटों की माला ही अर्पण करने लगें, ताकि इस फानी दुनिया में उसकी औकात का खुलासा हो जाए।
बेहतर...
जवाब देंहटाएंवाह,क्या खूब लिखा है आपने .आपका ब्लॉग सबसे अलग है
जवाब देंहटाएंवाह,क्या खूब लिखा है आपने .आपका ब्लॉग सबसे अलग है
जवाब देंहटाएंDo you mind if I quote a few of your articles as long as I
जवाब देंहटाएंprovide credit and sources back to your webpage? My blog is in the very same niche as yours and my visitors would certainly benefit
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