वैसे तो हमारे खानदान में कभी किसी को कोई ईनाम-इकराम नहीं मिला, किसी की कोई लॉटरी नहीं लगी, किसी ने विरसे में हमारे लिए धनदौलत की कोई पोटली नहीं छोड़ी, मगर जबसे मैंने पत्राचार और ब्लॉगिंग के लिए इन्टरनेट का इस्तेमाल तेज़ किया है, दुनिया भर के सैकड़ों दयालु और उदार किस्म के बदमाश मुझे नाना तौर-तरीकों से जबरदस्ती मालामाल कर देने पर तुले हुए हैं। पता नहीं मेरे बारे में उन्हें यह गलतफहमी कैसे हो गई कि हिन्दी का लेखक है तो ज़रूर लॉटरीखोर और सट्टेबाज़ होगा। याकि उनका आकलन है कि भारतीय लेखक है तो मुफ्तखोर तो ज़रूर होगा, लालच का मारा पक्का जाल में आ फँसेगा। या फिर शायद वे सोच रहे हैं कि दुनिया में सबसे बेवकूफ कोई है तो वह है भारतीय लेखक, फिर व्यंग्यकार हो तो उससे मूर्ख तो कोई हो ही नहीं सकता, इसलिए इन दिनों सैकड़ों की तादात में इन्टरनेट के ठगों ने मेरे ऊपर कड़ी फील्डिंग लगा रखी है, जाल बिछा रखा है और इंतज़ार कर रहे हैं कि कब में उसमें जा फसूँ।
सुदूर विदेशों से, या क्या पता यहीं किसी होटल में बैठकर, कई लॉटरी और सट्टे वाले रोज़ मेरे ईमेल बाक्स में ढेरों बधाइयाँ भेज रहे हैं। कांग्रेच्यूलेशंस, यू हैव वन 1 लैख यू.एस. डालर्स। कांग्रेच्यूलेशंस, यू आर द विनर ऑफ द यू.एस. नेशनल लॉटरी, क्लेम फॉर ट्वेंटी फाइव थाउजेंड पाउंड। कांग्रेच्यूलेशंस, यू आर द जैकपॉट विनर......। और बधाइयों के साथ तुरन्त अपना नाम, पता, दूरभाष आदि जानकारी भेजने का निवेदन, व देरी होने की सूरत में दावा खारिज कर दिये जाने की सख्त धमकी भी होती है। सच कह रहा हूँ, अव्वल तो मैंने कभी कोई लॉटरी का टिकट खरीदा ही नहीं, ना ही कहीं कोई सट्टे की पर्ची ही लगाई है, फिर पता नहीं क्यों ये दानी लोग जबरदस्ती मेरी आर्थिक स्थिति सुधारने पर उतारू है। जब देश की अर्थव्यवस्था सैद्धातिक रूप से मेरी आर्थिक दशा सुधारने के सरासर खिलाफ है तो फिर ये बेचारे क्यों खामोखां परेशान हो रहे हैं, क्या पता !
एक कोई पीटर साहब हैं। वे मेरे नाम लाखों डॉलर छोड़कर मरे हैं। अब उनके वकील जैफरसन चुपचाप यह पैसा खा जाने की बजाय मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े हैं कि मैं अपनी अमानत हासिल करने के लिए उनसे सम्पर्क करूँ। मैंने अपने माँ-बाप से पूछ लिया है कि अपने खानदान में कभी कोई पीटर नाम का आदमी हुआ है क्या ? उन्होंने भी अपनी याददाश्त पर काफी ज़ोर डालकर देख लिया, पुराने पारिवारिक पोथी-पत्रों को भी पलट लिया, मगर कहीं से कोई सूत्र इन पीटर साहब से जुड़ता नज़र नहीं आ रहा।
एक कोई मूसा महाशय हैं, जो नाम से ही गैंगस्टर प्रजाति के प्रतीत होते हैं। वे चाहते हैं कि उनका किसी बैंक में फँसा हंड्रेड बिलियन फाइव थाउजेंड यू.एस. पाउंड मेरे खाते में ट्रांसफर कर दिया जाए। किसी की भी कसम खवा लो, यह जो रकम ऊपर लिखी है, भारतीय मुद्रा में दरअसल कितनी होती है मुझे नहीं मालूम। मुझे भय है कि इतनी बड़ी रकम मेरे खाते में आने से कहीं मुझे हार्ट अटैक ना हो जाए या मेरी बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स कहीं खुशी के मारे पागल ना हों जाएँ।
एक साहब मुझे अपना बिजनेस पार्टनर बनाना चाहते हैं। दुनिया भर के बड़े-बडे़ देशों को छोड़कर वे भारत जैसे भुक्कड़ देश के एक, ‘बिजनेस’ ही से नफरत करने वाले शख्स की पाटनरी आखिर क्यों चाहते हैं और दुनिया के बड़े-बडे़ घरानों को लात मारकर वे मुझ ही से पाटनरी में धोका क्यों खाना चाहते हैं, यह एक बड़े रहस्य की बात हैं। लगता है उन्हें डूबने का शौक चर्रा रहा है और यह सच है कि दुनिया में अगर बिजनेस डुबाने में सचमुच कोई उनके काम आ सकता है तो वह मैं ही हूँ।
मुझे मालामाल करने के लिए की जा रही रोज़ की नई-नई विदेशी चिरौरियों से तंग आकर अब मैं इन्टरनेट पर रातों-रात अपना ठिकाना बदलने की तैयारी कर रहा हूँ, जैसे कोई किराएदार चुपचाप बिना किराया दिये मकान छोड़कर भाग जाता है। मगर मुश्किल यह है कि बिना किराया, फ्री-फंड के इस मकान इन्टरनेट पर कोई पता-ठिकाना ऐसा नहीं है जहाँ ये बदमाश आपको ढूँढ़ते हुए ना जा पहुँचें। आप चाहकर भी इनकी आपको मालामाल कर देने की चिरौरियों से बच नहीं सकते। एकबार आप इनके हत्थे लग भर जाओ, ये बिना थके यूँ आपके पीछे लग जाएंगे कि अरेबियन कहानियों का जिन्न भी शर्मा जाए।
सुदूर विदेशों से, या क्या पता यहीं किसी होटल में बैठकर, कई लॉटरी और सट्टे वाले रोज़ मेरे ईमेल बाक्स में ढेरों बधाइयाँ भेज रहे हैं। कांग्रेच्यूलेशंस, यू हैव वन 1 लैख यू.एस. डालर्स। कांग्रेच्यूलेशंस, यू आर द विनर ऑफ द यू.एस. नेशनल लॉटरी, क्लेम फॉर ट्वेंटी फाइव थाउजेंड पाउंड। कांग्रेच्यूलेशंस, यू आर द जैकपॉट विनर......। और बधाइयों के साथ तुरन्त अपना नाम, पता, दूरभाष आदि जानकारी भेजने का निवेदन, व देरी होने की सूरत में दावा खारिज कर दिये जाने की सख्त धमकी भी होती है। सच कह रहा हूँ, अव्वल तो मैंने कभी कोई लॉटरी का टिकट खरीदा ही नहीं, ना ही कहीं कोई सट्टे की पर्ची ही लगाई है, फिर पता नहीं क्यों ये दानी लोग जबरदस्ती मेरी आर्थिक स्थिति सुधारने पर उतारू है। जब देश की अर्थव्यवस्था सैद्धातिक रूप से मेरी आर्थिक दशा सुधारने के सरासर खिलाफ है तो फिर ये बेचारे क्यों खामोखां परेशान हो रहे हैं, क्या पता !
एक कोई पीटर साहब हैं। वे मेरे नाम लाखों डॉलर छोड़कर मरे हैं। अब उनके वकील जैफरसन चुपचाप यह पैसा खा जाने की बजाय मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े हैं कि मैं अपनी अमानत हासिल करने के लिए उनसे सम्पर्क करूँ। मैंने अपने माँ-बाप से पूछ लिया है कि अपने खानदान में कभी कोई पीटर नाम का आदमी हुआ है क्या ? उन्होंने भी अपनी याददाश्त पर काफी ज़ोर डालकर देख लिया, पुराने पारिवारिक पोथी-पत्रों को भी पलट लिया, मगर कहीं से कोई सूत्र इन पीटर साहब से जुड़ता नज़र नहीं आ रहा।
एक कोई मूसा महाशय हैं, जो नाम से ही गैंगस्टर प्रजाति के प्रतीत होते हैं। वे चाहते हैं कि उनका किसी बैंक में फँसा हंड्रेड बिलियन फाइव थाउजेंड यू.एस. पाउंड मेरे खाते में ट्रांसफर कर दिया जाए। किसी की भी कसम खवा लो, यह जो रकम ऊपर लिखी है, भारतीय मुद्रा में दरअसल कितनी होती है मुझे नहीं मालूम। मुझे भय है कि इतनी बड़ी रकम मेरे खाते में आने से कहीं मुझे हार्ट अटैक ना हो जाए या मेरी बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स कहीं खुशी के मारे पागल ना हों जाएँ।
एक साहब मुझे अपना बिजनेस पार्टनर बनाना चाहते हैं। दुनिया भर के बड़े-बडे़ देशों को छोड़कर वे भारत जैसे भुक्कड़ देश के एक, ‘बिजनेस’ ही से नफरत करने वाले शख्स की पाटनरी आखिर क्यों चाहते हैं और दुनिया के बड़े-बडे़ घरानों को लात मारकर वे मुझ ही से पाटनरी में धोका क्यों खाना चाहते हैं, यह एक बड़े रहस्य की बात हैं। लगता है उन्हें डूबने का शौक चर्रा रहा है और यह सच है कि दुनिया में अगर बिजनेस डुबाने में सचमुच कोई उनके काम आ सकता है तो वह मैं ही हूँ।
मुझे मालामाल करने के लिए की जा रही रोज़ की नई-नई विदेशी चिरौरियों से तंग आकर अब मैं इन्टरनेट पर रातों-रात अपना ठिकाना बदलने की तैयारी कर रहा हूँ, जैसे कोई किराएदार चुपचाप बिना किराया दिये मकान छोड़कर भाग जाता है। मगर मुश्किल यह है कि बिना किराया, फ्री-फंड के इस मकान इन्टरनेट पर कोई पता-ठिकाना ऐसा नहीं है जहाँ ये बदमाश आपको ढूँढ़ते हुए ना जा पहुँचें। आप चाहकर भी इनकी आपको मालामाल कर देने की चिरौरियों से बच नहीं सकते। एकबार आप इनके हत्थे लग भर जाओ, ये बिना थके यूँ आपके पीछे लग जाएंगे कि अरेबियन कहानियों का जिन्न भी शर्मा जाए।
आईये जानें .... मन क्या है!
जवाब देंहटाएंआचार्य जी
अरे साहब यह पैसा ले लीजिये और सारे बेवजह बिलागरों में बांट दीजिये.. आप को तसल्ली, पीटर, मूसा वगैरा को भी तसल्ली और हम जैसे बिला वजह बिलागरों को भी...
जवाब देंहटाएंप्रमोद जी अच्छा किया आपने इन भिखमंगों के औलादों को यहाँ ब्लॉग पर जगह देकर ,कम से कम इससे इनकी यह असलियत तो पता चलेगी की इनके पास खुद तो एक फूटी कौरी नहीं है और दूसरों को मालामाल करने चले हैं ,वैसे नेट पे ठगों का पूरा गिरह नजर रखे हुए है ऐसी सूचना है ,इसलिए अगर किसी इ.मेल करने वाले के देश का पता चल जाये तो उस देश के रास्त्रपति को शिकायत के साथ इ.मेल की पूरी डिटेल्स इ.मेल करना ना भूलें |
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही दूर तक मारा है आपने प्रमोद जी । बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंsir tushi great ho fir kya likh mara hai ham to aapke fen ho gaye
जवाब देंहटाएंप्रमोद जी बड़ा सही विषय उठाया है आपने...एक बात समझ में नहीं आती ये जितने भी धन-दौलत देने वाले हैं सब के सब विदेशी ही क्यों होते हैं....कई भोले-भाले भारतीय इनके जाल में फंस चुके हैं.....बहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंPata nahi yeh log be vajah mujhe bhi karodpati banaaneke pichhe pade hue the woh achha hua ki pramodji ka yeh vyang padha hua tha varna lene ke dene pad jaate. ha..ha..ha..!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है प्रमोद जी...अब ये लोग हमें पैसा भले ही उपलब्ध न करवाएं हां, एक विषय तो करवा ही दिया है।
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