मंगलवार, 7 सितंबर 2010

डंडे के डर से गेहूँ का बँटना

//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
    पिताजी बचपन में डंडे से पिटाई किया करते थे। उस वक्त बड़ा बुरा लगता था, अब समझ में आ रहा है कि ज़रूर हम भी उन दिनों ‘शरद पंवार’ जैसी हरकतें करते रहे होंगे। बड़ा कोई कुछ कह रहा है, और तो और साफ साफ आदेशात्मक लहज़े में कह रहा है, और हम हैं कि मानने को तैयार नहीं है, तो फिर सामने वाले के पास ‘डंडा चालन’ के अलावा दूसरा चारा क्या है।
    माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भाई अनाज फालतू सड़ रहा है, गरीबों में बाँट दो, लेकिन नहीं, मंत्री जी हिलने को तैयार नहीं, जैसे ‘बाबा’ का माल हो। इधर गरीब बेचारे हाथ में फटी बोरी लेकर गेहूँ बँटने का इंतज़ार कर रहे थे, उधर कोर्ट के आदेश को मुफ्त की सलाह मानकर एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकालने की हमेशा की ट्रिक चलाई जा रही थी। ऐसा लगता है जैसे हमारे मंत्री महोदयों को आम जनता के हक में देश चलाने के लिए किसी की फालतू सलाहों की कोई ज़रूरत नहीं। वे खुद जो चाहेंगे करेंगे, देखते हैं कौन क्या बिगाड़ लेता है। अपने इस जन्मजात गुण की वजह से ही तो शराफत के किसी दूसरे काम में लगने की बजाय राजनीति के धंधे में लगे हैं। किसी की सुनने-सुनाने की सभ्यता से मुक्त अपनी वाली चलाने में ज़्यादा विश्वास रखते हैं। इसीलिए उन्होंने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की भी गुड़ीमुड़ी कर के एक कोने में डाल दिया और खड़े हो गए हमारी मुर्गी की एक टाँग के शाही अन्दाज़ में, और जब कोर्ट ने डंडा फटकारा तो चट से दूसरी टाँग बाहर निकाल ली और फौरन समझ गए कि कोर्ट का आदेश हवा में उड़ाने के लिए नहीं मानने के लिए होता है।
    हमारे देश में यह बीमारी आजकल बढ़ती जा रही है। कोई किसी की बात मानना नहीं चाहता, सब अपनी-अपनी चलाने में मशगूल हैं। जब तक कोई डंडा हाथ में उठाकर खोपड़ी तोड़ने की मुद्रा में नहीं आ जाता तब तक सामने वाले को लगता ही नहीं कि कभी कान और मस्तिष्क का आम जनता के प्रति सहानुभूति जगाने वाला हिस्सा भी इस्तेमाल करना है।
दरअसल हमारे देश में इन दिनों हुक्मरानों को हमेशा डर लगा रहता है कि बाज़ारवाद के इस दौर में कोई चीज़ अगर मुफ्त में बाँट दी तो फिर दुनिया का दरोगा अमेरिका नाराज़ हो जाएगा। आखिर हमने परोपकारी राज्य की अपनी पुरानी परम्परागत दकियानूसी छवि से बड़ी मुश्किल से छुटकारा पाया है। हम पानी को तो बोतलों में भर कर बेचने की अपनी प्रतिबद्धता को सफलता से निभा ही रहे हैं, हवा बेचने की दिशा में भी एक ना एक दिन आगे बढ़ेंगे, ऐसे में मुफ्त गेहूँ बाँटने की बात हज़म होना मुश्किल तो है। अब देखना है डंडे के डर से भी अब गेहूँ बँटता है या नहीं।

8 टिप्‍पणियां:

  1. प्रमोद जी आज के Times of India में पृष्ट १२ पर अपने माननीय प्रधानमंत्री महोदय की सुप्रीम कोर्ट से की गयी अपील छपी है जिसमे प्रधानमंत्री जी ने आग्रह किया है की सुप्रीम कोर्ट नीतिगत मामलों से खुद को दूर रखे. प्रधान मंत्री जी के भीतर बैठा economist जाग उठा है जो कहता हैं की अगर गरीबों को मुफ्त अनाज बाट दिया जायेगा तो किसान की कृषि करने की भावना ही मर जाएगी. शायद उन्हें लगता है की किसान अपनी उपज बाजार में बेच कर मालामाल हो रहे हैं. क्या अपने भोले प्रधानमंत्री जी को पता ही नहीं की जो भूखा मर रहा है और जिसे मुफ्त अनाज की जरुरत है वो किसान ही है.

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  2. वोनोद जी सही कहा है आपने मगर आजकल के डंडे मे भी शायद वो ताकत नही रही या फिर सिर इतने मजबूत हो गये हैं कि फूटते ही नही। धन्यवाद।

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  3. अच्छा लेख है ....
    यहाँ भी आइये ........
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_06.html

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  4. सामयिक विषय पर ज़ोरदार आलेख........

    सहेजनीय पोस्ट !

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  5. यह भिखारी अपनी ऒकात भुल गये है, जब चार साल बाद यह भीख मांगने आये तो इन की झोली मै लानत डालना कोई गरीब ना भुले, इन लानतियो को इन की ओकात जरुर याद दिलानी चाहिये, जेसे आनाज इन के बाप का हो....

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  6. Behtar to yehi hoga ki desh ka sanchalan swayam Nyayalay kare ta ki baar baar unhe sarkar ko nirdesh na dena pade!

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  7. achchha lekh hai par CG me 3 rupiya kilo chawal ne logo me mehanat karne ki aadat par lagam laga diya hai yadi muft me aanaj bata gaya to kya hoga .sochana padega.
    mohan

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