भौचक शेरा |
कॉमन वेल्थ खेलों के प्रारम्भ होने से पहले ही हमने अपनी पताका फहरा ली है, लापरवाही, बदइंतज़ामी और भ्रष्टाचार की पताका! पिछले दो-तीन सालों से यह पताका शांतिपूर्वक मंद-मंद फरफरा रही थी, कहीं कोई समस्या नहीं थी, सब कुछ आराम से चल रहा था। मगर देश में शान्ति से कुछ हो दुष्ट विघ्नसंतोषियों को यह बिल्कुल पसंद नहीं। जहाँ कोई चार पैसे हराम के कमाता हुआ दिखाई दिया कि लोगों का पेट दुखने लगता है, चढ़ बैठते हैं दाना-पानी लेकर। चोर चोर चोर का समवेत स्वर चारों ओर उठने लगता है और दुनिया भर के साहुकार डंडे लेकर इधर उधर दौड़ने लगते हैं। मूर्खों को इतना भी नहीं पता कि जब हम अमीर देशों की देखा-देखी बड़े आयोजनों में अपनी नाक घुसाते हैं तो, चोरी-चकारी और भ्रष्टाचार के अन्तर्राष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरने के लिए हमें उम्दा प्रदर्शन करना ही होता है, ताकि आगामी अन्य आयोजनों की मेजबानी के रास्ते खुलें।
पहले यहाँ-वहाँ जहाँ-तहाँ भ्रष्टाचार का ‘खेल’ खेलते देखा जाता था अब ‘खेलों’ में भ्रष्टाचार देखने को मिल रहा है। खेल-खेल में करोड़ों रुपयों को ठिकाने लगाकर कॉमनवेल्थ में जहाँ एक ओर कुछ महत्वाकांक्षी राजनीतिकों, खेल प्रशासकों और बड़े-बड़े उद्यमियों ने अपना राष्ट्रीय कर्त्तव्य निभाया है, वहीं कुछ विध्नसंतोषियों ने इसकी धुँआधार आलोचना कर अपना अन्तर्राष्ट्रीय कर्त्तव्य निभाया है और निभाते चले जा रहे हैं।
आगंतुक खिलाड़ियों, खेल प्रेमियों, पर्यटक समूहों, विदेशी पत्रकारों, मीडिया वालों को लूटने-ठगने का अपना कत्र्तव्य निभाने के लिए देश के अन्य छोटे-बड़े उद्यमी यथा आॅटो, रिक्शा वाले, होटलों-रेस्टोरेंटों ढाबे वाले, यहाँ तक कि पान-बिड़ी-सिगरेट वाले तक कमर कसकर बैठे हैं। मोटी कमाई की आस लगाए कई असली-नकली भिखारी भी सटीक मेकप, स्वर एवं वाणी के कठिन रियाज़ और अभिनय की तगड़ी रिहर्सल के साथ बिल्कुल तैयार हैं, कि बाहर की पब्लिक आना शुरू हो और वे आंगिक और वाचिक अभिनय की अपनी कला का प्रदर्शन कर उनसे भीख माँग सकें। चोर-गिरहकट, ठग-लुटेरे आतुरता से प्रतीक्षारत हैं कि ‘‘आओ कदम तो रखो भारत भूमि पर, हम तुम्हारी आरती उतारें।’’ बार बालाएँ और रेड लाइट सुन्दरियाँ थालियाँ सजाए, पलक पॉवड़े बिछाकर मेहमानों का स्वागत-वंदन कर माल बनाने की व्यूह रचना में व्यस्त हो गई हैं। जब देश के दिग्गजों ने कॉमनवेल्थ से वेल्थ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी तो फिर बाकी लोग क्यों पीछे रहेंगे। मगर ताज़ा परिस्थितियों ने सब के माथे पर चिंता की लकीरें खोद दी हैं, पता नहीं आयोजन होगा भी या नहीं! न हुआ तो बरसों बाद छप्पर फाड़ कमाई का यह मौका हाथ से निकल जाएगा। आगे फिर कभी इस तरह बहती गंगा में हाथ धोने का मौका मिले या ना मिले।
कुछ लोगों का खयाल शायद ज़्यादा दूरदृष्टिपूर्ण हो। रिश्वतें देकर कॉमनवेल्थ की मेजबानी हासिल करने से लेकर कमाई का हर संभव रास्ता हम अब जान गए हैं। सार्वजनिक धन की लुटाई में विशेषज्ञता, कौशल, निपुणता आदि-आदि सब कुछ हमने हासिल कर लिया है। भ्रष्ट इन्जीनियरों, ठेकदारों, लापरवाह अफसरों, ब्यूरोक्रेटों का यह आत्मविश्वास हमें आने वाले समय में और भी बड़े बड़े आयोजनों को हाथ में लेने का बल देता है। अब हम ओलम्पिक खेलों के लिए भी अपने इस अनुभव का इस्तेमाल बखूबी कर सकते हैं, एक बार कोई उसकी मेजबानी देकर तो देखें, फोड़ डालेंगे। इतना फैलारा कर के दिखाएँगे कि हमारे बाप से न सिमटे, अपने-अपने लोगों में रेवड़ियाँ बाँटेंगे और बदले में अपने बैंक बैलेंसों को समृद्ध कर के दिखाएँगे। खेलों की दुनिया में देश का नाम उससे भी ज़्यादा ऊँचा कर के दिखाएँगे जितना कॉमनवेल्थ खेलों में अब तक हुआ है। हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन, पूरा है विश्वास।
इधर खुलती पोलों, गिरती छतों, टूटते पलंगों, धँसती सड़कों के मद्देनज़र डर है कि हवाई अड्डे पर उतरते ही विदेशी खिलाड़ीगण पलट कर भाग ना खड़ें हों कि भाड़ में गया कॉमन वेल्थ, घर लौटकर अपने देशवासियों से पिट लेंगे भले, मगर भ्रष्टाचार की नींव पर खड़े कोर्टों मैदानों पर हाथ पॉव तुड़वाने के लिए हरगिज़ न उतरेंगे। भ्रष्टाचार की आबोहवा में कदम रखते ही कहीं वे गिड़गिड़ाने ना लगें कि हे महान भारतीय इंतज़ाम-अलियों, नही चाहिए हमें मैडल, हमें तो सही सलामत घर जाने दो, जान बख्श दो हमारी बस।
बड़ा खेल तो पहले खेल लिया। जो जूठन बची मेडलों की, उसके लिये खिलाड़ी जूझेंगे।
जवाब देंहटाएंpramod ji...bahut achchha laga ...aaj maine bhi isee vishay me ek vyangy post kiya hai...
जवाब देंहटाएंहां, प्रमोद भाई पर तब हिन्दुस्तानी महामंडलेश्वरों की ये खाऊ जमात उन्हें सही-सलामत वापस भी नहीं जाने देगी. भई, यहां तक आ ही गये हो तो अपनी कमीज, पैंट, जूते, बैग तो छोड़्ते जाओ और नहीं छोड़्ते हो तो बताओं हमें उतरवानी भी आती है.
जवाब देंहटाएंसर जी, आपको हमारा प्रणाम,
जवाब देंहटाएंआपका व्यंग अच्छा लगा
हमने लिखने की दुनिया में अभी-अभी कदम रखा है
आपके आशीर्वाद की राह में ...................................
रविन्द्र सोनी