दिवाली आ गई है, किसी की उँगलियों में तो किसी की हथेली में खुजली मचने लगी है, वजह, ‘गिफ्ट’। हथेली में खुजली उनके मच रही है जो हमेशा से हाथ पसारने के आदि हैं, कोई भी गिफ्ट हासिल करने का मौका आया, लगे हथेली खुजाने। उँगलियों में खाज लिये घूमने वालों में वे लोग शामिल हैं जो या तो किसी ना किसी मतलब को साधने के लिए ‘गिफ्ट’ बाँटने फिरते हैं या फिर-‘तुम एक पैसा दोगे, वो दस लाख देगा’ वाले गीत पर भरोसा करके, अंटी का एक पैसा भी गवाँ आते हैं। बहरहाल देने का अपना सुख है, लेने का अपना। इस लेने-देने में अगर किसी को सुखद नींद आती है, तो हमें क्यों तकलीफ हो! हम तो सिर्फ देने वालों से एक गुजारिश करना चाहते हैं कि- भाई साहब, ‘गिफ्ट’ दें, ‘टेन्शन’ हरगिज़ ना दें।
सचमुच, कई बार लोग गिफ्ट देकर जाते हैं, मतलब उन्हें लगता है कि उन्होंने ‘गिफ्ट’ दिया है, मगर वह होता ‘टेन्शन’ है। जैसे, जो पधारेगा वह आधा-आधा किलो मावे की मिठाई दे जाएगा, अब खाए कौन ? अखबार वाले चीख-चीख कर बता रहे हैं, मावा नकली है, मावा नकली है.........., कुत्ते तक मावे की मिठाई सूँघ कर आगे बढ़ जाते हैं, तब किस इन्सान की हिम्मत है जो उसे खा ले। बेमौत मरने से सभी डरते हैं। फिर जिसे देखो वह मोटापा, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर का मरीज, सो मावे की मिठाई एक अलामत के रूप में घर भर को टेन्शन देती रहती है। दूसरा टेन्शन, आदमी सौहार्द पूर्वक मिठाई, ड्राईफ्रूट, चॉकलेट या कोई भी महँगा गिफ्ट दे गया, बस बन गए कर्ज़दार। लिया है तो कुछ ना कुछ लौटाना भी पड़ेगा, हो गया टेन्शन। दिवाली न हुई मुसीबत हो गई। जबरन घर बैठे खर्चा बढ़ गया। ना वह कम्बख्त कुछ देता ना अपने को फालतू का टेन्शन होता।
शादी, सालगिरह, जन्मदिन, गृहप्रवेश यहाँ तक कि साधारण से व्रतों-उपवासों के उद्यापनों में भी, जो कि आजकल मॉर्डन पार्टियों के रूप में होने लगे हैं, आदमी हाथ हिलाते हुए पहुँचने में गुस्ताखी समझने लगा है। निमत्रंण पर पहुँचने से पहले कुछ ना कुछ रास्ते से खरीदकर मेज़बान के सिर पर दे मारता है कि-ले रे, यह मत समझना कि हम फोकट में जीमने आ गए है। तीन लोग हैं, डेढ़ सौ रुपये का गिफ्ट लेकर आएँ हैं, पचास रुपये परहेड पड़ा, इससे ज़्यादा का खाऐंगे भी नहीं........। मेहमान का सा समर्पण भाव आजकल किसी को पसन्द ही नहीं, इसमें याचक होने की कुंठा साथ में चिपकी रहती है। इसलिए खाया-पीया और न अगर कुछ कचरा ‘काइंड’ के रूप में खरीद पाएँ हों तो जेब से मुड़ा-तुड़ा लिफाफा निकाला और दे मारा मेज़बान के मुँह पर।
यहाँ तक तो ठीक है, सबसे बड़ी परेशानी हैं वे जो ऊलजुलूल गिफ्ट दे जाते हैं। वह गिफ्ट हराम की वस्तु हासिल करने का सुख तो देता नहीं, टेन्शन जरूर दे देता है। जैसे किसी हीरोइनी की फ्रेम जड़ी फूहड़ सी फोटो दे गए, या सड़क छाप पेंटर की बनाई निहायत बकवास किस्म की मढ़ी हुई सीनरी दे गए। घटिया से फ्लावर पॉट में भड़कीले रंगों के कागज़ी फूल दे गए जिन्हें देखकर सर और दुखने लगे। हम जैसे नास्तिक को कोई जबरन दो-फुटा ‘दीपक’ दे जाए। अब करें क्या उसका! मूर्ति पूजक, फोटोफ्रेम पूजक हम हैं नहीं, किसके सामने जलाएँ! या, कोई प्लास्टर ऑफ पेरिस के गणेशजी, हनुमानजी अर्पित कर जाए, कि ले पापी भगवान तेरा भला करे। घिस चुके सॉचे में ढली सरस्वति की मूर्ति लाकर धर दे कि ले, माँ तुझ अज्ञानी को ज्ञान दे। अब रखें कहाँ उन्हें, घर भर में सारे नास्तिक भरे पड़े हैं। भगवान की छत्रछाया प्राप्त होने के तथाकथित सुख की जगह टेन्शन और हो गया कि ‘प्रगतिशील’ दोस्त लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे। बड़ी डींगे हॉका करते थे भौतिकवादी होने की, अब गणेशजी, हनुमानजी की शरण में पड़े हुए हैं।
आजकल चीन से कुछ सस्ते किस्म के गिफ्ट खूब आ रहे हैं, इनमें एक बला फेंगशुई भी है। लोग आजकल वहीं फेंगशुई गिफ्ट के नाम पर पटक जाते हैं। हम ‘अभागे’ भले ना हों पर वे हमारे भाग्योदय की कामना के साथ अपना अंधविश्वास हमारे घर पटक जाते हैं। उन्हें पूरा विश्वास होता है कि उन्हीं की तरह हम भी ज़रूर अंधविश्वासी होंगे। या, जैसे वे दुनिया भर के टोने-टोटकों में अपनी परेशनियों का हल ढूँढ़ते रहते हैं, हम भी दीवारों पर सर फोड़ते फिरते होंगे।
हमारे एक मित्र महोदय ने गृह प्रवेश किया, जिन-जिन को आज तक गिफ्ट बाँटते आए थे उन सबको खाने पर विशेष तौर पर आमंत्रित किया, कि दिया हुआ गिफ्ट, रिटर्न गिफ्ट के रूप में वापस मिलेगा। मिला, मगर बीसेक गणेशजी, पन्द्रह राम-दरबार, दस साईबाबा, दस-बीस फोटोफ्रेम व दीवार घड़ियाँ और कम से कम दर्जन भर तुलसी के पौधे। अब वे टेन्शन में आ गए कि क्या करें इस सबका। मैने सलाह दी ‘दुकान खोल लो’ मगर वे नाराज़ हो गये, लगे बड़बड़ाने, साले लिफाफे में रुपैया रखकर नहीं दे सकते थे, टेंट का किराया ही चुका देते!
खाकसार, को सूट पहनने की तमी़ज कभी नहीं रही, मगर कोई दानवीर पिछली दिवाली पर महँगा सूट का कपड़ा गिफ्ट दे गया है। अब टेन्शन यह है कि तीन हज़ार रुपये से कम में सूट सिलवाने के लिए दर्जी, दुकान की देहरी तक चढ़ने नहीं देता। वे तो डाल गए महँगा सूट का कपड़ा हमारे सिर पर, अब हम उसको ना सिलवा पाने का टेन्शन माथे पर लिए ज़िन्दगी जी रहे हैं। हमारी तरह और भी ना जाने कितने होंगे जो गिफ्ट के साथ आए टेन्शन से परेशान होंगे। इसीलिए, सभी से करबद्ध निवेदन है, कि भाई साहब ‘गिफ्ट’ देना हो तो खूब दें, मगर कृपा कर ‘टेन्शन’ ना दें।
दिनाँक 29.10.2010 को हरिभूमि में प्रकाशित।
दिनाँक 29.10.2010 को हरिभूमि में प्रकाशित।
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जवाब देंहटाएं"ले पापी भगवान तेरा भला करे। घिस चुके सॉचे में ढली सरस्वति की मूर्ति लाकर धर दे कि ले, माँ तुझ अज्ञानी को ज्ञान दे।"
पठनीय पोस्ट
हंसने को बाध्य करती सुन्दर व्यंग-रचना.
इस टेंशन से हम सभी को दो-चार होना पड़ता है.
सही बात है। कुछ गिफ्ट, गिफ्ट कम टेंशन ज्यादा देते है। पढ़कर मजा आ गया। ऐसे ही लिखते रहे।
जवाब देंहटाएंगिफ्ट में कहीं पेड़ लगा कर उसका प्रमाण पथ्र दे जाये।
जवाब देंहटाएंsahi kaha aapne ye gifts gale ki haddi ban jate hai na rakhte banta hai na fekte......
जवाब देंहटाएंapki Vyang-Rachna vakai un logo k liye vishesh hai,jo samajhte hai ki mene 'Gift' dekar bada ehsaan kiya hai..yese log agar sirf Mann me Achchha sa Bhaav lekar hi aa jaye to badi kripa hogi..par haan,Mezbaan ko bhi bade dil se yese Mehmaano ka Achchhe mann se Aadar krna hoga...bina kudkudatey huye..ya bina Gift lene k bhaav se.. Dhanyabaad ! sirji.
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