//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
नईदुनिया के होली विशेषांक में प्रकाशित |
होली आने वाली है। श्रीवास्तव साहब के परिवार ने जोर-शोर से तैयारियाँ शुरू कर दी हैं। जैसे-जैसे होली का दिन पास आता जाएगा, श्रीवास्तव साहब और उनका लम्बा चौड़ा परिवार पूरे उत्साह के साथ मोहल्ले की तमाम होलियों के हो-हल्ले, चंदा माँगने वाली टोलियों के आक्रमण, हुरियारों के हुड़दंग, होली-बाज़ यार दोस्तों के हाथों रंगने से बचने के उच्च स्तरीय प्रयासों में लग जाएगा। रोज़ाना शिखरवार्ताओं के कई-कई दौर चलेंगे, जिनमें किसी भी सूरत में होली से अप्रभावित रहने के योजनात्मक षड़यंत्र रचे जाएँगे।
सर्वप्रथम, होली के ठीक पहले सपरिवार कहीं ऐसी जगह निकल भागने की प्लानिंग की जाएगी जहाँ उनके परिवार को होली के त्योहार का उनका अपना निजी, परम्परागत संत्रास न झेलना पड़े। न चंदा देना पड़े, न टीन-टपारों का कर्णफोडू संगीत बर्दाश्त करना पड़े, ना रंग-रोगन से मुखारबिन्द और कपड़े खराब होने की संभावना हो। घर-आँगन की दीवारों, गाड़ी-घोड़ों, सोफा-दीवान और दूसरे लक्ज़री आयटमों को खराब होने से बचाने के लिए, साथ लादकर ले जाना फिलहाल अपने देश में काफी कष्टकारक और मँहगा है, इसलिए उन्हें मजबूरन छोड़ना पड़ेगा, फिर भी सफर में इन्हें भी साथ ले जाने के बारे में अवश्य सोचा जाएगा। परन्तु, किराए-भाड़े का महँगा होना, रिज़र्वेशनों का टोटा, बच्चों की परिक्षाओं और सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा सत्र के दौरान सरकार को श्रीवास्तव साहब की आपातकालीन सेवाओं की पड़ने वाली आवश्यकता के मद्देनज़र शहर छोड़कर भागने का कार्यक्रम हमेशा की तरह रद्द किया जाकर, घर को ही किसी मजबूत किले में तब्दील करने की योजना पर काम किया जाएगा।
पहला काम-बच्चों को झूठ बोलना सिखाया जाएगा। कोई भी टोली चंदा माँगने आए तो पहले उन्हें-‘‘दूसरी टोली को चंदा दे दिया गया है’’ कहकर चलता करने की कोशिश की जाएगी, फिर भी यदि वे टलने को तैयार न हों तो-‘‘पापा घर में नहीं हैं’’, कहकर उन्हें फुटाया जाएगा। जब वे मम्मी को बुलाने की ज़िद करेंगे तो मम्मी आटा सने हाथ लेकर उपस्थित होंगी और देश में महिलाओं की आर्थिक परतंत्रता पर रटा-रटाया निबंध सुनाकर अंत में, ‘‘उन्हें कोई आर्थिक अधिकार नहीं हैं’’, कहकर मुसीबत से छुटकार पाएँगी। मौके पर जब मम्मी चंदा गिरोह से बहस कर रही होंगी तब वे -‘‘कितनी महँगाई हो रही है! कहाँ से दें चंदा! घर में कोई हराम की कमाई तो आती नहीं!’’ या, ‘‘तुम लोग यह फालतू का काम आखिर करते क्यों हो, पढ़ाई-लिखाई में मन क्यों नहीं लगाते’’, आदि-आदि फिजूल की प्रगतिशीलता झाड़ने वाले जुमले बोलकर पैसा बचाने की कोशिश करेगी। बच्चे पीछे से-‘‘मम्मी दे दो न, मम्मी दे दो न’’ की पूर्व नियोजित ज़िद करेंगे, और मम्मी उन्हें दो-दो चाँटे लगाकर किवाड़ बंद कर लेगी। फिर दरवाजे़ की संध से चंदा माँगने वाली टोली को अपना सा मुँह लेकर वापस जाता देखकर ठहाके लगाए जाएँगे।
होलिका दहन के दिन, घर के बाहर कोई पलंग-वलंग, लकड़ी का सामान रखा न रह जाए यह सुनिश्चित किया जाएगा, फिर घर के खिड़की-दरवाज़ों, रोशनदानों से लाउड-स्पीकरों, ढोल-ढमाकों और हल्ले-गुल्ले का स्वर किसी भी कीमत पर प्रवेश न कर सके इसकी व्यवस्था चाक-चौबंद की जाएगी। बाज़ार से रुई का बंडल लाकर रखा जाएगा जिसके छोटे-छोटे गोले बनाकर पहले से ही तैयार रखें जाएँगे ताकि होली की रात उन्हें कान में घुसेड़कर मातमी मुद्रा बनाकर बैठा जा सके। मोहल्ले के शैतान बच्चे चंदा ना देने की क्या सज़ा देंगे इस बारे में सोच विचार किया जाएगा। घर में गोबर की हाँडी फेंकी जाने की स्थिति में कौन गोबर साफ करेगा, और पत्थर मारकर शीशा तोड़े जाने पर कौन झाड़ू लगाएगा यह पूर्व निर्धारित रहेगा। दोबारा काँच लगवाने का खर्चा चंदे से ज्यादा तो नहीं होगा यह भी चिन्तन का विषय होगा।
सारी व्यवस्थाएँ फुल-प्रूफ होने के बाद भी जैसे घुसपैठिये देश में घुसकर उत्पात मचा ही लेते हैं वैसे ही बावजूद तमाम चाक-चौबंदी के कुछ हुरियारे घर में धुसकर रंग-रोगन चुपड़ ही जाते हैं। इस खतरे से निबटने के लिए परिवार के सभी सदस्यों के लिए अप-अपनी पंसद के फटे-पुराने कपड़े पहले ही झाड़-झूड़कर धूप दिखाकर रखे जाएँगें ताकि होली के दिन उन्हें पहनकर खतरे का सामना बहादुरी से किया जा सके। रंगों को बदन पर स्थाई बसेरा बना लेने से बचने के लिये बाज़ार में उपलब्ध सबसे सस्ता तेल, भले ही वह जले मोबिल ऑइल की श्रेणी का हो, घर में स्टॉक करके रखा जाएगा ताकि अल्ल-सुबह होली के दिन उसे अंग-प्रत्यंग पर लगाकर घटिया केमिकल युक्त सस्ते रंगों, पेंट-वार्निश, आदि की परम्परा से जल्दी-छुटकारा पाया जा सके।
सिर पर कोई रंग की पुड़िया न उढे़ल दे, जो आठ दिन तक नहाते समय चीख-चीखकर अपनी उपस्थिति की गवाही देता रहे, इसलिए सबको बच्चा-टोपी नुमा अस्त्र उपलब्ध कराया जाएगा और खुद श्रीवास्तव साहब स्कूटर की सवारी के दौरान कभी न लगाये जाने वाले हेलमेट का साल में एक बार उपयोग करेंगे।
अंत में जब शहर भर के हुरियारे थक कर चूर अपने-अपने घरों में सुस्ता रहे होंगे, श्रीवास्तव साहब और उनका पूरा परिवार हर्षोल्लास और खुशियों के इस त्योहार होली के संकट से सफलतापूर्वक बच जाने की खुशी में पड़ोसियों की भिजवाई गुजिया और मिठाइयाँ खाकर जश्न मनाएगा और फिर हफ्तों-महिनों लोगों को अपनी बहादुरी के किस्से सुनाएगा।
आपका व्यंग्य केवल एक व्यंग्य नहीं बल्कि सच का आईना दिखाने वाला भी होता है.
जवाब देंहटाएंयह भी उनमे से ही एक बेहतरीन व्यंग्य है.
होली की हार्दिक शुभकामनाएं.
सादर
बड़ा आश्चर्य होता है लोगों को होली से भागते देखकर।
जवाब देंहटाएंहोली का त्यौहार आपके सुखद जीवन और सुखी परिवार में और भी रंग विरंगी खुशयां बिखेरे यही कामना
जवाब देंहटाएंफूलप्रूफ तैयारी चाकचौबन्द है श्रीवास्तवजी की ।
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनाएँ...
Badi bahadur family hai....
जवाब देंहटाएंArey Sahab Koi Hamen Stage Pe Khelne Ke Liye Natak Ki Script De Sakte Hai? Badi Mahan Kripa Hogi.
जवाब देंहटाएं@ Dady........श्रीमान आपने अपनी पहचान इस कदर छुपा कर रखी है कि महान तो क्या शूद्र सी कृपा भी करना मुश्किल है। कृपया अपना ईमेल पता ही दे दें। मेरा पता है tambatin@yahoo.co.in ।
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