//व्यंग्य-प्रमोद ताम्बट//
जनवाणी मेरठ में प्रकाशित |
अण्णा के अनशन से करन्ट लेकर देशभर के हैरान-परेशान लोग रीचार्ज हो गये हैं और नाना विधियों से दुष्ट अत्याचारियों का ध्यान अपनी और आकर्षित कर अपनी मांगों के लिए हवा बना रहे हैं। पंजाब का एक अनशनकारी अपना खटिया-बिस्तर लेकर एक ऊँचे पेड़ पर जा बैठा और मानव जीवन की समस्त क्रियाएँ वहीं सम्पन्न करने के साथ-साथ वहीं से बैठे-बैठे मीडिया के माइक से अपनी मांगों का पुलिदा खोल-खोलकर प्रशासन और सरकार को सुनाता रहा। उसकी मांगें पूरी हुईं या क्रेन से ऊपर चढ़कर अनशनकारी को डंडों का प्रसाद दिया गया, पता नहीं चला है। उधर राजस्थान में एक साधुबाबा गॉव के अस्पताल में डॉक्टर की तैनाती की मांग को लेकर पानी की टंकी के ठेठ ऊपर चढ़ बैठे जहाँ से गिरने पर हड्डियों के कचूमर के अलावा शरीर का कोई भाग सलामत मिलना मुश्किल था, मगर वे अपनी मांग मनवाने में सफल रहे, गॉव में डाक्टर की तैनाती हो गई।
निष्कर्ष यह निकलकर आ रहा है कि अनशन में कुछ अनोखापन होना चाहिए तभी शासन-प्रशासन के कानों को खड़ा करने लायक हवा बन सकती है। अण्णा के साथ तो चमत्कारी भीड़ थी सो प्रेस-मीडिया, भारत सरकार से लेकर अमरीकी सरकार तक अण्णा को सलाम की मुद्रा में नज़र आ रही थी, मगर जिनके पास चमत्कार के रूप में कुछ नहीं है उन्हें तो ऐसे अललटप्पू उपायों से ही अपनी मांगें मनवाना पड़ेंगी। इस मामले में व्यंग्यकारों की उर्वरा बुद्धि से काफी उपाय निकल सकते हैं। भविष्य में अनशन के लिए उतावले लोगों के लिए कुछ विधियाँ मैं सुझा देता हूँ।
पंजाब के वे सज्जन अकेले खटिया पेड़ पर लटकाकर उसपर जा चढ़े थे, मामला थोड़ा बड़ा हो तो गांव के सारे लोग अपनी-अपनी खटिया लेकर पेड़ों पर चढ़ जाएँ ज्यादा प्रभाव पडे़गा। किसी को उँचे पेड़ों पर चढ़ने में डर लगता हो तो चने के झाड़ को छोड़कर दूसरे किसी भी झाड़ पर बैठा सकता है, मगर झाड़ पुलिस के डंडे से छोटे होते हैं यह बात ध्यान रखना पड़ेगी। जिनके पास कुएं की सुलभता हो वे अनशनाभिलाषी भाई खटिया-बिस्तर रस्सी से कुएं के भीतर लटकाकर सौ-पचास फिट नीचे आसन जमा कर बैठ सकता है। पानी, कुएं के अंधेरे या गहराई से डर लगे तो बिजली के खंबे पर चढ़ बैठा जा सकता है मगर करंट से बचने के साधन साथ लेकर बैठना पड़ेगा। उपलब्ध समस्त बिजली के खंबों पर दो-दो आदमी चढ़कर बैठ जाएँ, दो रहेंगे तो बोरियत भी नहीं होगी, बातें करते रहेंगे या गीत-वीत गाकर अपना और तमाशबीनों का मनोरंजन करते रह सकते हैं।
साधु बाबा की तरह अकेले पानी की टंकी या ऊँची बिल्डिंग पर चढ़कर आत्महत्या की धमकी देना तो निजी किस्म के अनशन रहे हैं। आजकल सार्वजनिक मुद्दों पर सामूहिक अनशन की प्रासंगिता अधिक है इसके लिए समूहों में कार्यवाही की आवश्यकता है, इसलिए पानी की टंकियों पर बोरिया-बिस्तर, खाने-पकाने के सामान सहित एक पूरा मोहल्ला या गॉव चढ़ जाए तो असर दूरगामी हो सकता है। एक लाउडस्पीकर टंकी के शिखर पर बांधकर प्रशासन को डराने-धमकाने का प्रयास किया जा सकता है।
दो ऊँची इमारतों के बीच दही हंडी की तरह खटिया या कई खटियाएँ लटकाकर उसपर आराम फरमाते हुए अनशन कीजिए, देखिए मीडिया, प्रशासन, सरकार सब खटिया के नीचे आ जमा होंगे, और कई चैनलों के माइक ऊपर आप तक पहुँचाए जाकर आपकी डिमांड पूछी जायेगी, लाइव टेलीकास्ट चलेगा। अनशन हो तो ऐसा हो कि उसमें मीडिया को कुछ रस नज़र आए, तभी आपका अनशन सफल होगा।
कई तरीके हैं जिनसे मीडिया को आकर्षित कर दोस्ताना अन्दाज़ में खड़ा किया जा सकता है, अगर आप यह अचंभा कर पाए तो समझों अनशन सफल वर्ना नारे लगा-लगाकर हलक सूख जाएगा। मीडिया न आया तो किसी के कानों पर जू तक नहीं रेंगेंगी।
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बोरवेल में उतर कर बैठ जायें, तो कैसा रहेगा?? वो भी हाट स्पॉट है मीडिया के लिए. :)
जवाब देंहटाएंबहुत सही सर!
जवाब देंहटाएंसादर
अचूक नुस्खे सुझाए हैं आपने ध्यानाकर्षण के ।
जवाब देंहटाएं:-) बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंSAHI KAHA AAPNE. :)
जवाब देंहटाएं............
ब्लॉ ग समीक्षा की 12वीं कड़ी।
अंधविश्वास के नाम पर महिलाओं का अपमान!
पहले तो अतिशय बधाई। अनशन के तरीकों पर एक पुस्तक भी लिख दें आप।
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